नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों की चुप्पी के बाद अब देश के प्रमुख राजनीतिक दलों ने अयोध्या विवाद को लेकर एक बार फिर बयानबाजी शुरू कर दी है। कांग्रेस और वाम दलों ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला किसी भी तरह बाबरी मस्जिद विध्वंस को जायज नहीं ठहराता वहीं भाजपा ने कहा कि इसे बढ़ा-चढ़ाकर नहीं आँका जाना चाहिए।
गैर भाजपाई दलों ने सांप्रदायिक ताकतों पर आरोप लगाया कि वे फैसले का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह व्यापक राष्ट्रीय हितों के लिए नुकसानदेह होगा और शांति तथा सौहार्द की आकांक्षा को नुकसान पहुँचाएगा।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने का फैसला किया है।
अयोध्या पर अदालती फैसले को अपनी रथयात्रा को जायज ठहराने के लिए इस्तेमाल करने संबंधी भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के बयान की आलोचना करते हुए केन्द्रीय मानव संसाधान विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने आज कहा कि यह बयान उनकी अदूरदर्शिता का परिचायक है क्योंकि इस मामले में अभी उच्चतम न्यायालय में सुनवाई होनी है, जो किसी भी पक्ष में फैसला दे सकती है।
कांग्रेस ने पार्टी कार्यसमिति की बैठक के बाद कहा कि इस बात को रेखांकित करना महत्वपूर्ण है कि फैसले ने किसी भी तरीके से छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को गिराए जाने को माफ नहीं किया है। वह शर्मनाक और आपराधिक कृत्य था और उसके अपराधियों को निश्चित तौर पर न्याय के दायरे में लाया जाना चाहिए।
कांग्रेस ने यह भी चेतावनी दी कि सांप्रदायिक ताकतों द्वारा फैसले को तोड़ना-मरोड़ना व्यापक राष्ट्रीय हित के लिए नुकसानदेह होगा और यह राष्ट्र की भावना और शांति तथा सौहार्द की आकांक्षा को नुकसान पहुँचाएगा। सिब्बल ने कहा कि वे आडवाणी की उस बात से भी सहमत नहीं हैं कि अदालती फैसले ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है क्योंकि वे मानते हैं कि इस मामले में अभी कुछ भी कहना कि अपरिपक्वता होगा।
माकपा ने कहा कि अयोध्या मामले में फैसला ‘खतरनाक नजीर’ स्थापित करेगा क्योंकि यह आस्था और मान्यता पर आधारित है और उसने उम्मीद जताई कि उच्चतम न्यायालय अपील में इन मुद्दों का निराकरण करेगा।
माकपा पोलितब्यूरो की दो दिवसीय बैठक समाप्त होने के बाद पार्टी महासचिव प्रकाश करात ने यहाँ कहा कि ऐसी आशंकाएँ हैं कि मालिकाना हक मुकदमे के फैसले में जो कारण दिए गए हैं उनमें से कुछ को मस्जिद के विध्वंस को जायज ठहराए जाने के तौर पर लिया जा सकता है, जो एक आपराधिक कृत्य था।
एक अन्य वामपंथी पार्टी भाकपा ने भी कहा कि उच्च न्यायालय का फैसला आस्था और धार्मिक मान्यता पर आधारित है। इसने विधि के शासन और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के सिद्धांतों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
भाजपा ने अदालत के फैसले को मस्जिद विध्वंस के मुद्दे से जोड़ने के लिए कांग्रेस पर पलटवार किया। भाजपा प्रवक्ता निर्मला सीतारमन ने कहा कि इस मोड़ पर उच्च न्यायालय ने अनेक दीवानी मुकदमों के आधार पर कुछ मुद्दों पर फैसला सुनाया है। उस हद तक हम फैसले में जो कुछ भी आया है उसका सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि आपराधिक मामला विचाराधीन है और फैसले के साथ उसे जोड़ने का कोई मतलब नहीं है।
वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जफर अहमद फारूकी ने लखनऊ में कहा कि एक आपात बैठक में उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने का फैसला किया गया। फारूकी ने यह भी कहा कि बोर्ड ने किसी भी व्यक्ति को अदालत के बाहर इस मुद्दे का समाधान निकालने के लिए अधिकृत नहीं किया है। (भाषा)