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असंतुष्ट पत्नियां करती हैं दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग

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नई दिल्ली , गुरुवार, 3 जुलाई 2014 (10:08 IST)
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नई दिल्ली। ‘असंतुष्ट’ पत्नियों द्वारा अपने पति और ससुराल के अन्य सदस्यों के खिलाफ दहेज विरोधी कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि ऐसे मामलों में पुलिस ‘स्वत:’ ही आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती और उसे ऐसे कदम की वजह बतानी होंगी जिनकी न्यायिक समीक्षा की जायेगी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पहले गिरफ्तारी और फिर बाकी कार्यवाही करने का रवैया ‘निन्दनीय’ है जिस पर अंकुश लगाना चाहिए। न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि दहेज प्रताड़ना मामले सहित सात साल तक की सजा के दंडनीय अपराधों में पुलिस गिरफ्तारी का सहारा नहीं ले।

न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा, 'हम सभी राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि वह अपने पुलिस अधिकारियों को हिदायत दे कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-क के तहत मामला दर्ज होने पर स्वत: ही गिरफ्तारी नहीं करे बल्कि पहले दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 में प्रदत्त मापदंडों के तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता के बारे में खुद को संतुष्ट करें।'

न्यायालय ने कहा कि पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार करने की जरूरत के बारे में मजिस्ट्रेट के समक्ष कारण और सामग्री पेश करनी होगी।

न्यायाधीशों ने कहा कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा स्त्री को प्रताड़ित करने की समस्या पर अंकुश पाने के इरादे से भारतीय दंड संहिता की धारा 498-क शामिल की गई थी। धारा 498-क को संज्ञेय और गैर जमानती अपराध होने के कारण प्रावधानों में इसे संदिग्ध स्थान प्राप्त है जिसे असंतुष्ट पत्नियां कवच की बजाय हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं। (भाषा)

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