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इलाहाबाद उच्च न्यायालय को फटकार

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हमें फॉलो करें उच्चतम न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय फटकार
नई दिल्ली (वार्ता) , शनिवार, 11 अगस्त 2007 (22:56 IST)
उच्चतम न्यायालय ने हत्या के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि उसने लापरवाह रवैया अपनाया।

उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने लोकनाथ एवं नवल किशोर की हत्या के मामले में अभियुक्त गोविन्द दास को मौत की सजा और दो अन्य को आजीवन कारावास एवं बीस-बीस हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी।

मौत की सजा की पुष्टि के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की गई थी, जिसमें फैसले की प्रति मिलने के छह महीने के अंदर इसकी पुष्टि करने की माँग की गई थी। मौत की सजा प्राप्त गोविन्द दास ने सजा की पुष्टि करने सबंधी अपील को खारिज करने का अनुरोध किया था। इसके बाद उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। इस फैसले को उत्तरप्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।

न्यायमूर्ति अरिजीत पसायत एवं न्यायमूर्ति डीके जैन की खंडपीठ ने उच्च न्यायालय के संदेहास्पद फैसले को दरकिनार करते हुए कहा कि इस मामले में उच्च न्यायालय ने जो रवैया अपनाया वह निश्चित रूप से समर्थन करने योग्य नहीं है।

मामले का निपटारा करते हुए साक्ष्यों का विश्लेषण करने या निचली अदालत के रिकॉर्डों को देखने की जहमत भी नहीं उठाई गई। यह कोई तर्क नहीं है कि मामले के किसी सहअभियुक्त को निचली अदालत ने बरी कर दिया है, तो अन्य अभियुक्तों को भी बरी कर दिया जाए।

खंडपीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने मौत की सजा की पुष्टि के लिए की गई अपील पर जो रवैया अपनाया वैसा नहीं किया जाना चाहिए। उसने कहा कि जब निचली अदालत के फैसले को दरकिनार किया जा रहा है, तो उसे यह तो देखना ही चाहिए कि निचली अदालत ने किन सबूतों और साक्ष्यों के आधार पर यह फैसला सुनाया है। इस मामले में ऐसा नहीं किया गया है।

उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर कोई मत व्यक्त नहीं करते हुए संदेहास्पद फैसले को दरकिनार कर दिया और मामले को पुनर्विचार के लिए उच्च न्यायालय को भेज दिया।

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