आरक्षण विरोधी याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को तर्क दिया कि केंद्र सरकार पिछड़े वर्ग की पहचान किए बगैर उच्च शिक्षण संस्थानों में 27 प्रश ओबीसी कोटा लागू नहीं कर सकती है।
गुरुवार को प्रधान न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि अनुच्छेद 15 (4) नागरिकों के उस विशेष वर्ग को राहत देता है, जो सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है। यह सरकार का काम है कि वह इस वर्ग की पहचान करे।
उन्होंने कहा कि यदि संसद ने ओबीसी के लिए कानून बना दिया है तो सरकार स्पष्ट करे कि वह पिछड़े वर्ग की पहचान के लिए क्या करने जा रही है। जिन लोगों को 27 प्रश ओबीसी कोटा का लाभ मिलना है, उनकी पहचान भी जरूरी है।
साल्वे ने कहा कि मोईली समिति ने कहा कि 27 प्रश ओबीसी कोटा के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों को जरूरी बुनियादी ढाँचा करने पर 18000 करोड़ रु. की जरूरत होगी लेकिन सरकार इस वर्ग की पहचान के लिए कोई प्रयास नहीं कर रही है, जबकि इस राशि का एक प्रतिशत भी इस पर खर्च नहीं होगा। सरकार आँकड़े नहीं जुटाना चाहती क्योंकि यह उसकी चिंता का कारण भी बन सकता है।
सभी दलों से विचार होगा : शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के आरक्षण के क्रियान्वयन पर अदालती रोक के मसले पर सरकार अन्य राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श करेगी। सर्वदलीय बैठक शीघ्र बुलाई जाएगी।
मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुनसिंह ने इग्नू में इंदिरा गाँधी स्वाधीनता संग्राम अध्ययन केंद्र का उद्घाटन करने के बाद पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में यह टिप्पणी की।
सिंह ने कहा कि ओबीसी आरक्षण का मसला अभी खत्म नहीं हुआ। केवल इसके क्रियान्वयन पर रोक लगी है। हम अन्य दलों के साथ विचार-विमर्श करेंगे तथा इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक भी बुला सकते हैं।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने यह भी कहा कि गैर सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए विधेयक तैयार है और उम्मीद है कि संसद के मानसून सत्र में इसे पेश किया जाएगा।
मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से पिछड़े वर्ग के छात्र जरुर निराश हुए हैं। मामले की सुनवाई में देर जरुर हुई है, लेकिन किसी भी रुप में फैसला हमारे लिए दु:खद नहीं है। कारण यह है कि हमने पूरे मनोयोग से मामले की पैरवी की और आगे भी करते रहेंगे।