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कुर्सी की दौड़ में देश को आग में मत झोंको

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सुरेश बाफना

अंग्रेजों ने धर्म व जाति के आधार पर भारत को विभाजित करके अपने साम्राज्यवादी शासन को स्थायी बनाने की कोशिश की थी। आज देश में जिस तरह का वातावरण निर्मित कर दिया गया है, उससे यही लगता है कि हमारे देशी हुक्मरानों ने भी अंग्रेजों की 'बाँटो और राज करो' की नीति को अपनाकर सत्ता हथियाने का खूनी खेल शुरू कर दिया है। भयानक बात यह है कि अबकी बार हुक्मरानों ने यह खेल संवेदनशील राज्य जम्मू व कश्मीर से शुरू किया है, जो भारत की अनूठी संस्कृति का प्रतीक है।

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अमरनाथ गुफा की खोज एक मुस्लिम परिवार ने की थी और इस परिवार के वंशज आज भी इस गुफा की देखभाल करते हैं। इतना ही इस गुफा में जितना चढ़ावा आता है उसका एक हिस्सा इस परिवार को दिया जाता है। सैंकड़ों मुस्लिम परिवार अमरनाथ यात्रा को सफल बनाने में खुलकर मदद करते हैं। अमरनाथ यात्रा के माध्यम से कई मुस्लिम परिवारों की आजीविका चलती है। हमारे हुक्मरानों ने कुर्सी के चक्कर में साम्प्रदायिक सौहार्द की इस अनूठी परम्परा को रक्तरंजित कर दिया है।

  भारतीय जनता पार्टी को लग रहा है कि अमरनाथ में जारी जमीन विवाद को अयोध्या के रूप में तब्दील कर दिल्ली के सिंहासन को फतह किया जा सकता है। संघ परिवार ने कम्युनिस्टों व समाजवादियों की तरह देश में बंद और चक्का जाम का आत्मघाती दौर शुरू कर दिया है      
भारतीय जनता पार्टी को लग रहा है कि अमरनाथ में जारी जमीन विवाद को अयोध्या के रूप में तब्दील कर दिल्ली के सिंहासन को फतह किया जा सकता है। संघ परिवार ने कम्युनिस्टों व समाजवादियों की तरह देश में बंद और चक्का जाम का आत्मघाती दौर शुरू कर दिया है। इन लोगों को इस बात की भी परवाह नहीं है कि चक्का जाम में फँसा गंभीर रूप से बीमार आदमी मौत की नींद सो जाए। भाजपा प्रवक्ता की यह टिप्पणी दुखद है कि इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ हो जाती हैं।

अमेरिका पर जब अल-कायदा का आतंकवादी हमला हुआ था, तब वहाँ विपक्षी दल ने सत्ता पक्ष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हालात का मुकाबला किया था। भारत का दुर्भाग्य है कि यहाँ जब भी आतंकवादी हमला होता है तो सत्ता पक्ष व विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है।

इस मामले में भाजपा व कांग्रेस नेताओं के व्यवहार में कोई खास अंतर नहीं है। कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी झंडे लहरा रहे हैं, लेकिन भाजपा नेता प्रधानमंत्री की इस अपील पर गौर करने के लिए भी तैयार नहीं है कि अमरनाथ से जुड़े आंदोलन को स्थगित कर बातचीत के माध्यम से समाधान निकालने की कोशिश की जाए।

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हम सभी को यह बात समझनी होगी कि बंदूक व कानून के बल पर आतंकवाद व अलगाववाद को खत्म नहीं किया जा सकता है। आतंकवाद व अलगाववाद के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार साम्प्रदायिक सौहार्द व भाईचारा है।

समस्याओं का समाधान त्रिशूल व तलवारों से नहीं, बल्कि बातचीत के माध्यम से ही निकलेगा। नेताओं का काम आग लगाना नहीं, वरन आग बुझाना होना चाहिए। नेताओं को जीत-हार की मानसिकता से बाहर निकलकर सहनशीलता के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए।

भारतीय राजनीति आज इस दु:खद मुकाम पर पहुँच गई है कि प्रधानमंत्री व विपक्ष के नेता के बीच सामान्य संवाद भी दुर्लभ हो गया है। भाजपा में अतिवादी तत्वों का प्रभुत्व इतना अधिक बढ़ गया है कि नेता कई बार असहाय नजर आते हैं। देश के हित पर चुनावी लाभ हावी हो गया है। ऐसी हालत में देश के युवा नेताओं की पीढ़ी को ही आगे आकर नए दृष्टिकोण के साथ देश के भविष्य को सँवारना होगा।

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