परीक्षा के दिनों में ज्यादा याद करने की जरूरत होती है और ऐसे में छात्र-छात्राएँ गोलियों का सहारा लेते हैं। कुछ लोग इसी तरह के सीरप भी लेते हैं। विज्ञापनों में दावे किए जाते हैं कि फलाँ सीरप से लाभ होगा, परंतु ऐसा होता नहीं है। इन दवाओं को मेमोरी पिल्स कहा जाता है।
सुमित का कहना है कि मैं भी जब स्कूल में था तो इन दवाइयों का सेवन करता था पर इन दवाइयों से मुझे कुछ फायदा नहीं हुआ। साथ में इन दवाइयों का स्वाद कड़वा और अजीब-सा था। इसलिए मैंने ये दवाइयाँ लेनी बंद कर दीं।
अगर कुछ छात्र या बच्चे यह मानते हैं कि इन दवाइयों से उनकी परफारमेंस अच्छी हो जाएगी तो इसे 'टलेसेबो इफेक्ट' कहते हैं।
ये दवाइयाँ इन लोगों को अच्छा महसूस करने में मदद करती हैं। केमिस्ट मानते हैं कि इनकी बिक्री खतरे का इशारा नहीं करतीं। बल्कि ये तभी बिकती हैं, जब परीक्षाएँ शुरू होती हैं।
उस वक्त बच्चे और माता-पिता दोनों ही इन दवाइयों के बारे में पूछते हैं। पर कई ऐसे बच्चे हैं जो इन दवाइयों के सेवन के बगैर कुछ नहीं कर पाते। बीई कर रहे विशाल की भी हालत कुछ ऐसी है, वह दसवीं कक्षा से ही इन दवाओं को ले रहा है। अब तो ये उसकी आदत बन चुकी है।
उसका कहना है जब तक वह गोली नहीं खाता तब तक वह पढ़ नहीं सकता। कुछ देर पढ़ने के बाद जब वह एक ब्रेक लेता है तो वापस पढ़ने जाने पर भी बगैर गोलियों के वह पढ़ नहीं पाता।
जितनी एलोपैथिक दवाओं में 'मेमोरी पिल्स' की बिक्री बढ़ रही है उससे कहीं ज्यादा आयुर्वेदिक दवाइयाँ बिक रही हैं। याददाश्त के नाम पर इन आयुर्वेदिक दवाओं में नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं।
लोगों का मानना है कि यह पेट और दिमाग को ठंडा रखकर याददाश्त को बढ़ाने में मदद करती है। छात्र एलोपैथिक दवाओं से ज्यादा आयुर्वेदिक दवाइयों का सेवन करना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है इसका प्रतिकूल असर नहीं होगा।
हालाँकि कुछ लोग इन चीजों से दूर रहकर चाय और कॉफी पीते हैं ताकि वे देर तक जाग कर पढ़ सकें।
चाहे वह बोर्ड की परीक्षा हो या फिर कोई प्रतियोगिता। हर किसी में प्रतियोगी इन दवाइयों को लेना चाहते हैं। नतीजा मिला-जुला ही होता है। परीक्षाएँ शुरू होते ही केमिस्ट की दुकान पर इन दवाइयों की माँग बढ़ जाती है।
याददाश्त बढ़ाने के लिए युवा इसे खरीदते दिखजाते हैं। कई मनोचिकित्सक यह मानते हैं कि इन दवाओं का असर छात्रों की सफलता या याददाश्त बढ़ाने में नहीं होता।
सफलता का एक मात्र रास्ता है- कड़ी मेहनत, लगन और खूब पढ़ाई। कई चिकित्सक इन गोलियों को न लेने की सलाह देते हैं। उनका मानना है कि ये गोलियाँ याददाश्त नहीं बढ़ातीं, और न ही बढ़ाने में मदद करती हैं।
पुराना फार्मूला : याददाश्त बढ़ाने का पुराना फार्मूला जैसे दूध-बादाम लेना, समय पर सोना और उठना अब पुरानी बातें हो गई हैं। लोग इन सब चीजों को छो़ड़ दवाइयों का सहारा लेने लगे हैं। माता-पिता भी अब इन दवाइयों को खरीदकर अपने बच्चे को दे रहे हैं। जो भी हो, याददाश्त के नाम पर बिक रही इन दवाओं से कुछ हासिल नहीं होता।
डॉक्टरों की राय में छात्रों को परीक्षा के समय ये दवाइयाँ नहीं लेनी चाहिए। ज्यादा पिल्स लेने पर आपकी याददाश्त घट जाती है। सिवाय बेचैनी के आपको कुछ नहीं मिलता। बेहतर तो यही है कि दिमाग पर ज्यादा दबाव न डालते हुए योजना बनाकर अपने पाठ्यक्रम पूरा करें। पिछले चार-पाँच सालों के प्रश्न पत्रों को हल कर अभ्यास करें।
(नईदुनिया)