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खूब जम रहा है साहित्य का कुंभ उत्सव

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निर्मला भुरा‍ड़‍िया

, शनिवार, 21 जनवरी 2012 (09:53 IST)
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जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आकर यही प्रतीत होता है। साहित्य और किताबों की दुनिया को अक्सर गुमसुम, हासिए पर पड़े देखा है, मगर यहां आलम कुछ और ही है। देशी-विदेशी, जवान, उम्रदराज हर तरह की जनता अपने साहित्यकर्मियों और संस्कृतिकर्मियों को देखने-सुनने को उमड़ पड़ी है। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के बावजूद, यहां रजिस्ट्रेशन की कतार में भीड़ दिखाई पड़ती है।

जयपुर के दिग्गी पैलेस में चार-पांच, पांडालों में जगह-जगह साहित्य के कार्यक्रम चल रहे हैं। हर पांडाल ठसाठस भरा है। सुबह भूटान की राजमाता असी दोरजी वांग्मो वांग्चुक ने उद्घाटन किया। एक पांडाल में उर्दू के कवि लेखक व फिल्म जगत की प्रसिद्ध हस्ती गुलजार ने कविता पाठ किया।

पवन के. वर्मा ने तुरंत ही उन कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रस्तुत किया, उन श्रोताओं के लिए जो विदेशों से आए हैं और हिंदी-उर्दू नहीं समझते हैं। इस कार्यक्रम का शीर्षक था 'दो दीवाने शहर में।'

हिंदी के एक बहुत महत्वपूर्ण लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि एक अन्य पांडाल में थे। 'एन इक्वल वर्ल्ड' विषय के अंतर्गत उन्होंने चर्चा की। साथ में तेलुगु की गोगु श्यामला हैं। दोनों ही दलित विश्व से संबंध रखते हैं। इस चर्चा के सूत्रधार थे एस आनंद, जिन्होंने वाल्मीकि के हिंदी वक्तव्य व श्यामला के तेलुगु वक्तव्य को अंग्रेजी में प्रस्तुत किया।

वाल्मीकि की आत्मकथा 'जूठन' हिंदी में काफी सराही गई है। बेबाक वाल्मीकि दलित होने के अपने दर्द को, अपने साथ भेदभाव के किस्सों को बयान करते हुए कहते हैं कि जब हम लोगों के साथ मंडल का नाम लिया जाता है तो हम कोटे की श्रेणी में आ जाते हैं।

दरअसल हमें प्यार की जरूरत है, घृणा की नहीं। आंबेडकर हमारे दिलों में जीते थे, मगर दलित पैंथर ने भेदभाव के खिलाफ लड़ने का जज्बा हमारी रगों में डाल दिया।

एक अन्य मंच पर कराची के लेखक मोहम्मद हनीफ थे। वे अपने उपन्यास अंग्रेजी में लिखते हैं, मगर वे मूलतः बहुभाषी हैं। पंजाबी, सिंधी, उर्दू में भी लिखते हैं। पंजाबी उनकी मातृभाषा है। हनीफ चुटकी लेते हैं-जब गाली लिखना होती है तो पंजाबी का इस्तेमाल करता हूं। सिंधी दोस्तों की मदद से लिखता हूं। उर्दू में अखबारी लेखन और रिपोर्टिंग करता हूं, ताकि ज्यादा लोगों तक बात पहुंचे। मगर उपन्यास अंग्रेजी में लिखता हूं, क्योंकि देशी-विदेशी लेखकों के उपन्यास इसी भाषा में पढ़े हैं।

मोहम्मद हनीफ ने मंटो और इस्मत चुगताई को अपनी प्रेरणा बताया। यहां और भी कई नामी संस्कृतिकर्मी नजर आए। कबीर बेदी, तरुण तेजपाल, गिरीश कर्नाड, ईला अरुण, गुरुचरण दास। गिरीश कनार्ड ने ब्रिटिश नाटककार से चर्चा की। इस कार्यक्रम का शीर्षक था स्टेज वाय स्टेज। गुरुचरण दास ने ऑस्कॉर पुजॉल और एलेक्स वाटसन से 'द आर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन इन एंशियंट इंडिया' विषय पर चर्चा की।

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