झारखंड के कई इलाकों में नक्सलवादियों व माओवादी संगठनों ने मुक्त क्षेत्र बना लिए हैं, जहाँ पुलिस भी जाने से घबराती है। दिलचस्प बात यह है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में निजी टेलीफोन कंपनियों के मोबाइल टॉवर दिखाई देते हैं, लेकिन बीएसएनएल को मोबाइल टॉवर लगाने की अनुमति नहीं है।
झारखंड में नक्सली आंदोलन अब पूरी तरह लूट-खसोट का धंधा बन गया है। ठेकेदारों, निजी कंपनियों व वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों से धन ऐंठकर नक्सलवादी आदिवासियों को लालटेन व लड़कियों को साइकल तक बाँट रहे हैं। कैबिनेट सचिवालय ने पिछले दिनों कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को नक्सल प्रभावित इलाकों में भेजकर वहाँ की वास्तविक हालत का जायजा लेने का प्रयास किया है।
झारखंड के संबंध में वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दी गई रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि झारखंड में प्रशासन का हाल यह है कि 60 प्रतिशत से अधिक पद खाली पड़े हुए हैं।
पिछले कुछ महीनों के दौरान छत्तीसगढ़ व झारखंड में नक्सली हिंसा में चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है। केन्द्र सरकार ने इस संबंध में राज्य सरकारों द्वारा भेजी जाने वाली रिपोर्ट पर भरोसा करने की बजाय अपने वरिष्ठ अधिकारियों को प्रभावित इलाकों में भेजकर स्थिति का आकलन करवाया।
झारखंड से संबंधित रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में पुलिस अधिकारी स्वयं इस बात को स्वीकार करते हैं कि अमुक जगह के बाद नक्सलियों का क्षेत्र शुरू हो जाता है।
इन इलाकों में प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं है। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी जब नक्सल प्रभावित इलाकों में जाते हैं तो बारूदी सुरंगों की पहचान कर हटाने की मशीन पहले जाती है। फिर बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को रास्ते की सुरक्षा के लिए तैनात किया जाता है।
नक्सलियों ने खनिजों के दोहन में लगी कंपनियों से धन वसूली का एक तंत्र विकसित कर लिया है।