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डबडबाती आँखें, डोलता विश्वास

आँखों देखा दर्द

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आलोक मेहता

, बुधवार, 3 दिसंबर 2008 (01:30 IST)
गंगाधर बहुत दुःखी है, लेकिन गुस्सा भ्रष्ट नेताओं और अफसरों पर है, "अरे, वीटी स्टेशन और होटलों के बजाय आतंकवादी सचिवालय में बैठे बेईमान लोगों को निशाना बना देते तो कम से कम महाराष्ट्र पर राज करने वालों की अक्ल ठिकाने आती।"

गंगाधर अकेला नहीं है। शिवाजी हवाई अड्डे, सांताक्रुज, जुहू, पवई, बांद्रा, मरीन ड्राइव, मालाबार हिल्स जैसे किसी भी इलाके के ड्राइवर, मजदूर, दुकानदार, व्यापारी, उद्योगपति से बात करें तो भय और आक्रोश के स्वर सुनाई दे रहे हैं।

मुंबई में पिछले सप्ताह हुए आतंकवादी हमले ने सबको झकझोरकर रख दिया है। मैंने सप्ताहांत के लगभग 24 घंटे मुंबई में बिताए और महसूस हुआ कि हर कष्ट, अपराध, पराजय, धमाके, प्रदर्शन, गड़बड़ियाँ झेल जाने वाले मुंबई के लोग इस बार बेहद विचलित हैं।

आतंकवादियों के मारे जाने और भागती रहने वाली जिंदगी पुनः ढर्रे पर आने के बावजूद उन्हें भरोसा नहीं हो पा रहा है कि मुंबई में पहले की तरह 24 घंटों की मस्ती देखने को मिल सकेगी। विदेशी पर्यटक या व्यापारियों की आवाजाही कम होने से बड़ा खतरा यह हो गया है कि अपने इर्द-गिर्द आने-जाने, रहने वालों को लोग शंका से देखने लगेंगे।

दूसरी बड़ी चिंता की बात यह है कि पूरी सत्ता-व्यवस्था से विश्वास डगमगाने के कारण लोकतंत्र ही खतरे में पड़ने लगेगा। यदि राजनेता और उनके मातहत काम करने वाला प्रशासन उनकी सुरक्षा नहीं कर सकता और केवल भ्रष्ट तरीकों से धन ऐंठता रहेगा तो सरकार चुनने या वोट डालने का क्या फायदा है?

यह सोच मूल महाराष्ट्रीयन, बाहर से आकर मुंबई को अपना बना चुके उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम के लोगों में पनपा है। इसलिए संभवतः सबसे पहले राजनीतिक वर्ग को अपनी साख बचाने के लिए आत्म-मंथन करना होगा।

युवा जिज्ञेय, सचिन, केतकी, अभिषेक, बड़ी उम्र के जनक भाई, चेतना बहन, रत्नेश जैसे कितने ही नाम हो सकते हैं, जिन्हें पूरी व्यवस्था पर नाराजगी है। उन्हें लगता है कि पुलिस और प्रशासन अपराधियों को बचाता है तथा साधारण लोगों को तंग करता है। इस वजह से लोग संदिग्ध व्यक्ति और अपराध की रिपोर्ट पुलिस को करने से डरते हैं।

यदि कोई अपराधियों की जानकारी देता है तो पूछताछ में 10 चक्कर लगवाने के बाद उसे ही हिरासत में रख दिया जाता है। ऐसी स्थिति में आतंकवादियों की घुसपैठ भी आसान हो गई है। मुंबई में एक भय सरकारी एजेंसियों और जन-सामान्य में आज भी बैठा हुआ है कि मारे गए आतंकवादियों के साथ रहे कुछ लोग शहर में कहीं छिपे हो सकते हैं, इसलिए खतरा पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है।

वैसे सतर्कता बढ़ने के साथ सुरक्षा व्यवस्था को भी मजबूत किया जा रहा है। सामान्य लोगों का एक दर्द कष्टदायक है। उन्हें लगता है कि बड़े होटलों पर हुए आतंकवादी हमले तथा वहाँ मारे गए या घायलों पर सबने अधिक ध्यान दिया।

स्टेशन पर हुए गोलीकांड के मृतकों और घायलों की चिंता और चर्चा सरकार व मीडिया ने बहुत कम की। इससे स्टेशनों पर मारे गए लोगों की संख्या को लेकर भी अफवाहें जारी हैं। असल में बहादुरी से लड़ने वाले शहीदों के साथ घटना से प्रभावित हर व्यक्ति के लिए मुंबईवासियों की आँखों में आँसू, सहानुभूति और श्रद्धांजलि है।

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