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निर्मोही अखाड़ा अपनी शर्तो पर अड़ा

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हमें फॉलो करें निर्मोही अखाड़ा अयोध्या मामला भास्कर दास
अयोध्या , गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010 (16:34 IST)
श्रीराम जन्मभूमि/बाबरी मस्जिद भूमि के मालिकाना हक को सुलह समझौते से हल होने का पक्षधर निर्मोही अखाड़े ने आज स्पष्ट कहा कि समझौता सिर्फ उसकी शर्तों पर ही हो सकता है।

निर्मोही अखाड़े के महन्त भास्कर दास ने आज यह दो टूक बात हिन्दू महासभा के एक प्रतिनिधिमंडल से कही। प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलने गया था। महासभा मंदिर निर्माण को लेकर निर्मोही अखाड़े को समर्थन देने गई थी।

दास ने कहा कि उन्होंने हिन्दू महासभा और मुकदमे में पक्षकार 'रामलला विराजमान स्थल' के प्रतिनिधि के रूप में पिछले मंगलवार को उनसे मिले डॉ. रामविलास दास वेदान्ती से भी कह दिया है कि 'रामलला' के मंदिर पर पूजा और प्रबन्ध दोनों पर ही निर्मोही अखाड़े का अधिकार होने पर ही वह समझौता करेंगे।

दास ने कहा कि राम मंदिर निर्माण के लिए यदि कोई बोर्ड बनता है तो उसमें भी निर्मोही अखाड़े का प्रतिनिधित्व बहुमत के आधार पर होना चाहिए।

करीब 82 वर्षीय महन्त ने कहा कि 23 दिसम्बर 1949 को रामलला की पूजा अर्चना निर्मोही अखाड़े ने ही की थी। इसलिए इस पर उन्हीं के अखाडे का ही अधिकार है। उनका दावा है कि विवादित ढांचे को फैजाबाद के तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट के कुर्क करने से पहले 'गर्भगृह' पर निर्मोही अखाड़े का ही अधिकार था। वह अधिकार अभी भी छोड़ा नहीं गया है।

उन्होंने बताया कि मामले को सुलह समझौते की कोशिश में लगे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महन्त ज्ञानदास का आज फोन आया था। उन्हें भी शर्तों से अवगत करा दिया गया है। ज्ञानदास ने भी निर्मोही अखाड़े के साथ रहने की सहमति दी है। गौरतलब है कि ज्ञानदास ने न्यायालय में फैसले की तिथि टालने के लिए शपथपत्र देने के लिए निर्मोही अखाड़े की आलोचना की थी।

महन्त भास्कर दास ने कहा कि मामले का हल सुलह समझौते से हल की आशाएँ फिलहाल धूमिल नजर आ रही हैं क्योंकि मुकदमे के एक पक्षकार सेन्ट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में जाने का फैसला ले लिया है। वक्फ बोर्ड की वजह से अन्य पक्षकारों को भी उच्चतम न्यायालय में जाना मजबूरी हो जाएगा।

इस बीच इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के आए फैसले को चुनौती देने के लिए सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के उच्चतम न्यायालय में जाने के निर्णय के बावजूद बातचीत से इस मसले के हल की कोशिश लगातार जारी है और इसी क्रम में प्रमुख मुस्लिम पक्षकार मोहम्मद हाशिम अंसारी ने फिर साधु सन्तों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महन्त ज्ञानदास से बातचीत की थी।

अयोध्या के ही हाजी महबूब बाबू खान और बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमेटी के संयोजक और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी से सख्त नाराज अंसारी ने कहा था कि यदि इन लोगों को लगता है कि ज्ञानदास से बात नहीं की जानी चाहिए तो यही बताएँ कि बात आखिर हो किससे।

उन्होंने उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जुफर अहमद फरूकी के इस बयान को झूठ करार दिया कि बोर्ड ने किसी को भी पक्षकारों से बातचीत के लिये अधिकृत नहीं किया है। उन्होंने धमकी दी थी कि बोर्ड यदि ऐसे फैसले लेता रहा तो वह बाबरी मस्जिद के बारे में अदालत में पैरवी करना बंद कर देंगे। अंसारी ने कहा कि बोर्ड के कहने पर ही उन्होंने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत ज्ञानदास से बात शुरू की थी।

आतंकवाद विरोधी मोर्चे के अध्यक्ष मनिन्दर जीत सिंह बिट्टा ने भी कल हाशिम से मुलाकात की और बातचीत से इस मसले के हल के उनके प्रयास की सराहना की थी। उन्होंने कहा कि यदि हाशिम इसका हल निकालने का प्रयास कर रहे हैं तो उनकी मदद की जानी चाहिए।

अंसारी ने कहा कि वह यहीं पैदा हुए और यहीं जीवन के अन्तिम पड़ाव पर पहुँच रहे हैं। उनकी चाहत है कि मामला उनके जीवन में ही सुलझ जाए और आने वाली पीढ़ी का इसका दंश न झेलना पड़े। इस मुद्दे पर राजनीति बहुत हो चुकी अब समझौता होना चाहिए।

रामलला विराजमान स्थल के निकटस्थ मित्र के रुप में इस ऐतिहासिक मुकदमे के पक्षकार त्रिलोकी नाथ पाण्डेय ने कहा कि भव्य मंदिर निर्माण में सहयोग के लिये कांचिकामकोटि के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती का उनके पास फोन आया था। स्वामी स्वरूपानन्द ने भी अपनी शुभकामनाएँ दी हैं लेकिन इस मामले में अन्तिम फैसला उनके संगठन (विश्व हिन्दू परिषद) के केन्द्रीय पदाधिकारी लेंगे। पाण्डेय ने बताया कि निर्मोही अखाड़े से बातचीत चल रही है।

दोनों ही मिलजुल कर मंदिर निर्माण करने को तैयार हैं। छोटी-छोटी बाधाएँ हैं उन्हें मिल बैठकर तय कर लिया जाएगा।

उन्होंने बताया कि निर्मोही अखाड़े के महंत रामदास उनसे मिलने आए थे। मामले के एक अन्य पक्षकार धर्मदास से भी उनकी बात हुई है। सभी भव्य राम मंदिर निर्माण के पक्षधर हैं। सबका कहना है कि यह दुनिया के खूबसूरत मंदिरों में से एक होना चाहिए।

सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के उच्चतम न्यायालय में जाने के निर्णय से पाण्डेय जरा भी विचलित नजर नहीं आए। उनका कहना था कि उच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि की प्रमाणिकता सिद्ध कर दी है। उससे अब कोई इनकार नहीं कर सकता और जब विवादित स्थल राम जन्मभूमि है तो उस पर मंदिर निर्माण कौन रोक सकता है।

सन् 1989 में अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति देवकी नन्दन अग्रवाल ने रामलला के 'बेस्ट फ्रेन्ड' रूप में पक्षकार बनकर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उनकी मृत्यु के बाद पाण्डेय श्री अग्रवाल की जगह इस वाद में पैरवी कर रहे थे। (वार्ता)

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