अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर कांग्रेस व वामदल फिर टकराव की ओर बढ़ रहे हैं। 18 जून को यूपीए-वाम के संयुक्त पेनल की बैठक में कांग्रेस आक्रामक रुख अपनाएगी, वहीं वामदलों ने भी कमर कस ली है।
सरकार पर अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में सितंबर के पहले परमाणु समझौते को लागू करवाने का दबाव है। हाल ही में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी व विदेशमंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि ऊर्जा जरूरत को देखते हुए समझौता काफी अहम है।
प्रधानमंत्री का कहना था कि घरेलू दिक्कतों की वजह से समझौते पर अमल संभव नहीं हो पा रहा है। उनका मानना है कि इससे फ्रांस व रूस के साथ परमाणु सहयोग का रास्ता खुलेगा और भारत पर जारी परमाणु रंगभेद खत्म होगा।
गाँधी ने कहा था कि परमाणु ऊर्जा के माध्यम से ऊर्जा संकट का समाधान हो सकता है। इन बयानों पर माकपा नेता प्रकाश करात ने पलटवार करते हुए कहा कि समझौते का लक्ष्य भारत को अमेरिका-इसराईल धुरी का हिस्सा बनाना है, जो हम होने नहीं देंगे।
लोकसभा चुनाव के लिए वामपंथी दलों ने यूपीए से हटकर तीसरे विकल्प की तलाश शुरू की है, वहीं कांग्रेस अब वामपंथी ऑक्सीजन से बाहर निकलकर खुद को मजबूत करना चाहती है।