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भारतीय पैसे पर है बुश की नजर

वैज्ञानिक रोड्रिग्ज ने करार पर जताई आशंका

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हमें फॉलो करें करार के बहाने उपकरण बेचना चाहते हैं बुश
बेंगलुरु (भाषा) , सोमवार, 14 जुलाई 2008 (23:41 IST)
एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक ने आशंका जताई है कि भारत के साथ असैन्य परमाणु करार के बाद हो सकता है कि अमेरिका अपने कृषि एजेंडे और रक्षा उपकरणों की बिक्री पर जोर दे।

भारतीय परमाणु सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष और इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसंधान केंद्र के पूर्व निदेशक प्लेसिड रोड्रिग्ज ने कहा है कि यह करार एक रणनीतिक गठजोड़ के तहत किया जा रहा है। इसमें रक्षा अंतरिक्ष परमाणु और कृषि के मुद्दे शामिल हैं।

रोड्रिग्ज ने बताया करार को लेकर मेरी बड़ी आशंका यह है कि भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक गठबंधन कृषि क्षेत्र की तरफ जा रहा है। कारण, अन्य तीन क्षेत्रों रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु में हम मजबूत हैं। हम इन क्षेत्रों में खुद के बल पर आगे बढ़ सकते हैं और बढ़ेंगे।

उन्होंने कहा हमारे कृषि विश्वविद्यालय, राज्यों के विश्वविद्यालयों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की प्रयोगशालाओं पर 'मोनसाटो' जैसे बड़े प्रतिष्ठान पूर्ण रूप से हावी हो जाएँगे, जिनके पास भरपूर संसाधन हैं और मकसद महज एकाधिकार है।

उन्होंने कहा बीटी कॉटन के बाद अब आनुवांशिक रूप से उन्नत बैंगन की बारी है, जिसे भारत लाया जाएगा। हम नहीं जानते कि आगे क्या होगा। यहाँ तक की यूरोपीय आयोग ने भी आनुवांशिक रूप से उन्नत किस्म के खाद्यान्नों को स्वीकार नहीं किया है और हम इसके सभी नतीजों की जाँच नहीं कर रहे हैं।

रोड्रिग्ज ने कहा भारत के साथ 123 समझौते पर अमेरिका के हस्ताक्षर करने के पीछे एक और आकर्षण यह है कि इसके जरिए वह भारत में रक्षा उपकरणों की बिक्री की काफी संभावनाएँ देखता है।

रोड्रिग्ज ने कहा हम 125 लड़ाकू विमानों (कई अरब डॉलर की व्यापारिक संभावनाओं) के बाजार में हैं। असल में हम अमेरिका से 20 वर्ष तक कोई संयंत्र नहीं खरीदेंगे। हम रूस और फ्रांस से संयंत्र खरीदेंगे।

उन्होंने कहा ऐसे में जब रूस, फ्रांस और कुछ हद तक इसराइल भी रक्षा उपकरणों के क्षेत्र में भारत का सहयोगी है, अमेरिका भारतीय रक्षा बाजार में बड़ा हिस्सा चाहता है।

रोड्रिग्ज ने कहा यह करार असल में अंतरराष्ट्रीय असैन्य परमाणु सहयोग समझौता है। यह भारत तथा विश्व समुदाय के बीच एक करार है और इसका गलत आशय निकाला जा रहा है कि यह भारत-अमेरिका परमाणु करार है, जिसका वाम दलों की ओर से विरोध हो रहा है।

प्रधानमंत्री सहित समझौते को लेकर उत्सुक समर्थकों ने करार की काफी ज्यादा तरफदारी की है। उन्होंने कहा आखिरकार आईएईए 145 सदस्यीय निकाय है, जिसमें अमेरिका भी एक सदस्य है।

एनएसजी भी 45 देशों का समूह है, इसलिए असल में यह समझौता दो समूहों के बीच है और अमेरिका इन समूहों का मजबूत तथा सर्वाधिक शक्तिशाली सदस्य है।

करार को मंजूर करने योग्य मानते हुए रोड्रिग्ज ने कहा निश्चित रूप से इसके साथ कुछ सवालिया निशान भी जुड़े हैं। उन्होंने कहा अगर आईएईए और एनएसजी के साथ सुरक्षा उपाय मानक समझौते के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति यह कहते हैं कि फैसले हाइड एक्ट से संचालित होंगे, जो सर्वोपरि है, तब क्या होगा।

उन्होंने कहा भारत 123 समझौते के इस प्रावधान को मान चुका है कि करार दोनों देशों के राष्ट्रीय कानूनों पर निर्भर करेगा, लेकिन यह कहना बेहतर होगा कि करार मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानूनों पर निर्भर करेगा।

रोड्रिग्ज ने कहा यह सुझाव दिए जा रहे हैं कि हमें भी एक राष्ट्रीय कानून पारित करना चाहिए, जिसमें यह कहा गया हो कि हम हाइड एक्ट को लेकर बाध्य नहीं हैं।

उससे बाहर निकलने का यही एक रास्ता है। वे इस मत से भी असहमत दिखे कि अमेरिका के साथ समझौता पूरी तरह से असैन्य परमाणु सहयोग करार है। उन्होंने कहा कि पुनर्प्रक्रिया भारी जल प्रौद्योगिकी और संवर्धन को करार की परिधि से बाहर रखा गया है।

उन्होंने कहा पुनर्प्रक्रिया के मुद्दे पर कुछ शर्तें भी हैं। हमें आयातित ईंधन सामग्री से एक नया संयंत्र बनाना होगा और इसके बाद हमें पुनर्प्रक्रिया के नतीजे देने होंगे। इसके एक वर्ष के बाद वह लोग कोई फैसला करेंगे और यह नहीं कहा गया है कि कोई अनुकूल निर्णय ही किया जाएगा।

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