Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

इंदौर की जड़ी-बूटी विदेशी दवाओं में

गजेन्द्र शर्मा

हमें फॉलो करें इंदौर की जड़ी-बूटी विदेशी दवाओं में
ND
ND
औषधीय फसलों के उत्पादन में इंदौर जिले का नाम तेजी से आगे आ रहा है। यहाँ पैदा होने वाली अश्वगंधा, शतावर, कालमेघ और सफेद मूसली विदेशों तक जा रही है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्घति का चलन बढ़ने के कारण इन पौधों का उपयोग बड़े पैमाने पर विदेशों में दवाइयाँ बनाने में हो रहा है। केंद्र सरकार के प्रोजेक्ट के तहत यहाँ कृषि महाविद्यालय में भी औषधीय पौधों की नई किस्मों पर शोध चल रहा है।

जिले में अश्वगंधा, इसबगोल, चंद्रशूर, कलौंजी, सफेद मूसली और शतावर का उत्पादन किया जा रहा है। कृषि महाविद्यालय में नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड के सहयोग से औषधीय एवं सुगंधित पौधों की उन्नत कृषि तकनीक पर शोध चल रहा है।

हाल ही में महाविद्यालय में अश्वगंधा, कालमेघ और सर्पगंधा की नई किस्में विकसित की गई हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है। इनमें से अश्वगंधा का उपयोग अमेरिका और योरपीय देशों में ताकत की दवाई बनाने में बड़े पैमाने हो रहा है।

तीन हजार किसान जुड़े
औषधीय फसलों की खेती के मामले में इंदौर जिला तेजी से आगे जा रहा है। जबलपुर, मंडला, पन्ना, सतना, छिंदवाड़ा जैसे प्रमुख उत्पादक जिलों को पीछे छोड़ते हुए इंदौर के किसानों ने पिछले दो साल में इन फसलों के उत्पादन में रुचि दिखाई है। जिले के 3 हजार से ज्यादा किसान औषधीय फसलों के उत्पादन में लगे हैं।

webdunia
ND
ND
मुख्य फसलें
आँवला, बेल, अश्वगंधा, इसबगोल, शतावर, चंद्रशूर, कालमेघ, कियोकंद, सफेद मूसली, बच, सर्पगंधा, गुड़मार, नागरमोथा, गिलोय।

औषधीय फसलों पर चल रहा है शोध
दुनिया भर में आयुर्वेदिक, यूनानी और सिद्घ दवाओं के साथ हर्बल उत्पादों की माँग बढ़ने के कारण देश के विभिन्ना राज्यों में केंद्र सरकार के नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड (एनएमपीबी) के सहयोग से औषधीय पौधों के उत्पादन को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं। मप्र में एमपी स्टेट माइनर फॉरेस्ट प्रोड्यूस फेडरेशन यह काम कर रहा है।

मप्र सरकार ने औषधीय पौधों के उत्पादन और इनके क्रय-विक्रय के लिए बाजार तैयार करने के उद्देश्य से 1996 में मेडिसिनल प्लांट टास्क फोर्स का गठन किया था। इस फोर्स ने जून-2002 में मप्र सरकार को औषधीय पौधों का बिजनेस प्लान सौंपा। इसके बाद वर्ष 2003-4 में एनएमपीबी ने मप्र के 367 औषधीय फसलों के प्रोजेक्ट के लिए 877 लाख रुपए की मंजूरी दी। इसी प्रोजेक्ट के तहत इंदौर में शोध चल रहा है।

webdunia
ND
ND
1200 मिलियन का निर्यात
विदेशों में इस समय सबसे ज्यादा भारतीय औषधीय पौधों की माँग है। इसीलिए भारत से प्रतिवर्ष 250 प्रकार के औषधीय पौधों, उनकी जड़, फल और पत्तियों आदि का भारी मात्रा में निर्यात किया जाता है। यह कारोबार 1200 मिलियन रुपए तक पहुँच गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर के विकासशील देशों में 80 प्रश लोग बीमारियों में पारंपरिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही अमेरिका और योरप के कई देशों में आयुर्वेदिक पद्घति पर लोगों का विश्वास बढ़ा है। यही कारण है कि भारतीय औषधीय फसलों को विदेशों में पसंद किया जा रहा है।

दो हजार टन दवाई का उत्पादन
औषधीय पौधों को दवाई के रूप में इस्तेमाल करने से कोई साइड इफेक्ट नहीं होते हैं इसलिए ये ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं। भारतीय चिकित्सा पद्घति में करीब 25 हजार प्रभावी पौधों का इस्तेमाल किया जा रहा है। देश भर के 15 लाख से ज्यादा प्रैक्टिशनर्स इनसे बनी दवाएँ मरीजों को लिखते हैं। देश में इस वक्त आयुर्वेदिक दवाएँ बनाने में 7800 कंपनियाँ लगी हैं जो प्रतिवर्ष 2000 टन दवाओं का उत्पादन करती हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi