अड़ूसा एक अमृत समान औषधि है, इसका उपयोग विभिन्न रोगों को दूर करने में किया जाता है। इसका उपयोग करने के बाद इसका असर जल्दी होता है। यह वातकारक, स्वशोधक, कड़वी, कसैली, हृदय को हितकारी, हलकी, शीतल और कफ, पित्त, रक्त विकार, प्यास, श्वास, खांसी, ज्वर, वमन, प्रमेह तथा क्षय का नाश करने वाली वनौषधि है।
विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- वासक। हिन्दी- वासा, अडूसा। मराठी- अडुलसा। गुजराती- अरडुसो। बंगाली- वासक। कन्नड़- शोगा, शोडी मलट। तेलुगू- आदासरा। तमिल- एधाडड। इंग्लिश- मलाबार नट। लैटिन- अधाटोडा वासिका।
परिचय : इसके झाड़ीदार पौधे 4 से 8 फीट तक ऊंचे होते हैं और सारे भारत में पैदा होते हैं। इसके पत्ते लम्बे और अमरूद के पत्तों जैसे होते हैं। यह काला और सफेद दो प्रकार का होता है। फरवरी-मार्च में इसमें फूल लगते हैं। यह गांव के बाहर खेतों के पास, बाग-बगीचों के किनारे झुण्ड के रूप में उत्पन्न होता है। इसे बागवान, कृषक और बुजुर्ग लोग जानते-पहचानते हैं। इसके सूखे पत्ते कच्ची जड़ी-बूटी बेचने वाली दुकान से खरीदे जा सकते हैं।
उपयोग : इसका उपयोग कफ प्रकोप और खांसी की चिकित्सा में किया जाता है। इससे बने आयुर्वेदिक योग वासावलेह, वासरिष्ट, वासाचन्दनादि तेल बाजार में मिलते हैं। इसके ताजे पत्तों का रस निकालकर अथवा सूखे पत्तों को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर उपयोग में लिया जाता है।
अड़ूसा के घरेलू उपयोग
कफ प्रकोप एवं खांसी : इसके ताजे पत्ते मिल सकें तो उनका रस निकाल लें। 1 चम्मच रस और एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह, दोपहर और शाम को चाटने से कफ पिघलकर ढीला हो जाता है और आसानी से निकल जाता है, जिससे कफ प्रकोप शान्त होता है और खांसी में आराम होता है।
हरे ताजे पत्ते न मिलें तो कच्ची औषधि की दुकान से इसके सूखे पत्ते ले आएं। 5-10 पत्तों को तोड़-मरोड़कर या मसलकर एक गिलास पानी में डालकर उबालें। इसमें दो काली मिर्च और आधी छोटी पीपल पीसकर डाल दें। जब चौथाई जल शेष बचे तब उतारकर छान लें। इसे 2-2 चम्मच सुबह, दोपहर और शाम को सेवन करने से पुरानी खांसी ठीक होती है।
श्वास कष्ट और शोथ : इसके सूखे पत्तों को मसलकर चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमा और श्वास के रोगी को आराम मिलता है। इसके सूखे पत्तों का काढ़ा या ताजे पत्तों का रस 50 मि.ली. तैयार कर इसमें समान भाग शहद, 4 काली मिर्च, 2 चम्मच अदरक का रस डाल दें। इसे दो खुराक में सुबह-शाम पीने से फेफड़ों की सूजन और कफ का गाढ़ापन दूर होने से सांस लेने में आराम व खांसी में लाभ मिलता है।
वासकादि क्वाथ भी श्वास कष्ट और खांसी को निश्चय ही नष्ट करता है। इसका नुस्खा इस प्रकार है-
अडूसा, सोंठ, नागरमोथा, भारंगी, चिरायता और नीम की छाल- इनको 5-5 ग्राम मात्रा में लेकर 2 कप पानी में डालकर काढ़ा करें। आधा कप शेष बचे तब उतारकर ठण्डा कर लें। 2 चम्मच काढ़ा और 2 चम्मच शहद मिलाकर सुबह, दोपहर व शाम को चाटने से बहुत आराम होता है।
परहेज : कफ प्रकोप, खांसी और दमे के रोगी के लिए खटाई, मीठी और ठण्डी तासीर की चीजें, तले पदार्थ और कब्ज करने वाले पदार्थों का सेवन करना सर्वथा निषिद्ध है।
लाभ : यह सरल और सस्ता योग होते हुए भी रसायन जैसे गुण और लाभ देने वाला है। युवा, छात्र-छात्रा, प्रौढ़, वृद्ध सब आयु वालों के लिए सभी ऋतुओं में सेवन योग्य है। यह वात, पित्त और कफ सभी प्रकृति वालों के लिए अनुकूल रहता है। शरीर में बल, स्फूर्ति और ओज की वृद्धि करता है, सब धातुओं की शुद्धि एवं वृद्धि करता है, स्मरण शक्ति, धारणा शक्ति और दिमागी शक्ति की वृद्धि करता है। इसे अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए। रोगी व्यक्ति भी रोगशामक दवा लेते हुए इसका सेवन कर सकता है।