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जायफल : उपयोगी जड़ी-बूटी

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हमें फॉलो करें जायफल जड़ी बूटी जावा सुमात्रा
जायफल के नाम से अधिकांश लोग परिचित हैं, लेकिन इसका उपयोग औषधि के रूप में सिर्फ रोगियों द्वारा ही किया जाता है। इसका वृक्ष ज्यादातर जावा, सुमात्रा, मलेशिया आदि द्वीपों में और न्यून मात्रा में दक्षिण भारत व श्रीलंका में पैदा होता है।

भारत में इसकी पूर्ति आयात करके की जाती है। इस फल का छिलका सूखकर अलग हो जाता है, उसे जातिपत्री या जावित्री कहते हैं। यह छिलका भी बहुत उपयोगी होता है।

अनेक भाषाओं में इसके नाम अलग हैं, जैसे संस्कृत- जातिफल। हिन्दी- जायफल। मराठी, गुजराती, बंगला- जायफल। तेलुगू- जाजिकाया। तामिल- जाजिकई। कन्नड़- जाईफल। मलयालम- जाजिकाई। फारसी- जौजबुया। इंगलिश- नट मेघ। लैटिन- मिरिस्टिका फ्रेगरेन्स।

गुण : जायफल रस में कड़वा, तीक्ष्ण, गरम, रुचिकारक, हलका, चटपटा, अग्नि दीपक ग्राही, स्वर को हितकारी, कफ तथा वात को नष्ट करने वाला, मुख का फीकापन दूर करने वाला, मल की दुर्गन्ध व कालिमा तथा कृमि, खांसी, वमन, श्वास, शोष, पीनस और हृदय रोग दूर करने वाला है। जायफल का तेल उत्तेजक, बल्य और अग्निप्रदीपक होता है और जीर्ण अतिसार, आध्यमान, आक्षेप, शूल, आमवात, दांतों से पस आना और वृण (घाव) आदि व्याधियों को नष्ट करने वाला वाजीकारक है।

आमाशय के लिए उत्तेजक होने से आमाशय में पाचक रस बढ़ता है, जिससे भूख लगती है। आंतों में पहुंचकर वहां से वायु हटाता है। ज्यादा मात्रा में यह मादक प्रभाव करता है। इसका प्रभाव मस्तिष्क पर कपूर के समान होता है, जिससे चक्कर आना, प्रलाप आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

परिचय : जायफल के वृक्ष की कई जातियां होती हैं, जिनमें से कुछ जातियां भारत में पाई जाती हैं। मलयद्वीप में इसके वृक्ष 70-80 फुट तक ऊंचे होते हैं। इन वृक्षों में नर और मादा के वृक्ष अलग-अलग होते हैं। भारत में इसकी पैदावार बंगाल, नीलगिरि, त्रावणकोर, मलाबार में होती है। इसका वृक्ष सदा हरा बना रहता है। जायफल लम्बा, गोल होता है जो देशभर में पंसारी या किराना दुकान पर मिलता है।

रासायनिक संघटन : जायफल में उड़नशील तेल 6-16 प्रतिशत, एक स्थिर तेल 38-43 प्रतिशत, प्रोटीन 7.5 प्रतिशत, स्टार्च 14.6-24.2 व खनिज द्रव्य 1-7 प्रतिशत होते हैं।

उपयोग : शोथ हर, वेदना नाशक, वातशामक और कृमिनाशक होने से स्नायविक संस्थान के लिए उपयोगी होता है तथा रोचक, दीपक, पाचक, यकृत को सक्रिय करने वाला और ग्राही होने से पाचन संस्थान के लिए उपयोगी होता है। अनिद्रा, शूल, अग्निमांद्य, कास (खांसी), श्वास, हिचकी, शीघ्रपतन और नपुंसकता आदि व्याधियां दूर करने में उपयोगी होता है। इसके चूर्ण और तेल को उपयोग में लिया जाता है।

झाई धब्बे : पत्थर पर पानी के साथ जायफल को घिसें और लेप तैयार कर लें। इस लेप को नेत्रों की पलकों पर और नेत्रों के चारों तरफ लगाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है, चेहरे की त्वचा की झाइयां और धब्बे आदि दूर होते हैं। लगातार कुछ दिनों तक लेप लगाना चाहिए।

दूध पचना : शिशु का दूध छुड़ाकर ऊपर का दूध पिलाने पर यदि दूध पचता न हो तो दूध में आधा पानी मिलाकर, इसमें एक जायफल डालकर उबालें। इस दूध को थोडा ठण्डा करके कुनकुना गर्म, चम्मच कटोरी से शिशु को पिलाएं, यह दूध शिशु को हजम हो जाएगा और मल बंधा हुआ तथा दुर्गन्धरहित होने लगेगा।

जोड़ों का दर्द : शरीर के जोड़ों में दर्द होना गठिया यानी सन्धिवात रोग का लक्षण होता है। गठिया के अलावा चोट, मोच और पुरानी सूजन के लिए जायफल और सरसों के तेल के मिलाकर मालिश करने से आराम होता है। इसकी मालिश से शरीर में गर्मी आती है, चुस्ती फुर्ती आती है और पसीने के रूप में विकार निकल जाता है।

उदर शूल : पेट में दर्द हो, आद्यमान हो तो जायफल के तेल की 2-3 बूंद शकर में या बताशे में टपकाकर खाने से फौरन आराम होता है। इसी तरह दांत में दर्द होने पर जायफल के तेल में रूई का फाहा डुबोकर इसे दांत-दाढ़ के कोचर में रखने से कीड़े मर जाते हैं और दर्द दूर हो जाता है। इस तेल में वेदना स्थापना करने का गुण होता है, इसलिए यह तेल उस अंग को थोड़े समय के लिए संज्ञाशून्य कर देता है और दर्द का अनुभव होना बन्द हो जाता है।

घाव भरना : पुराने और बिगड़े हुए घाव को ठीक करने के लिए, मल्हम में जायफल का तेल मिलाकर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है।

विभिन्न रोग : उदर पीड़ा, हैजा और अतिसार होने पर जायफल को आग में भूनकर इसका चूर्ण एक ग्राम की दो खुराक करके एक एक खुराक सुबह-शाम शहद में मिलाकर चाटने से आराम होता है।

* हैजे में जायफल का चूर्ण, एक ग्राम की आठ मात्रा बनाकर, एक-एक घण्टे से शहद में मिलाकर चाटना चाहिए। हैजा होने पर हाथ-पैरों में ऐंठन हो तो एक जायफल का चूर्ण, 100 ग्राम सरसों के तेल में मिलाकर गर्म करें। खूब उबालकर उतार लें, कुनकुना गर्म रहे, तब इस तेल से शरीर पर मालिश करें, इससे ऐंठन बन्द हो जाती है।

* सर्दी और सिर दर्द में कुनकुने गर्म पानी के साथ जायफल को पत्थर पर घिसकर इस लेप को नाक के ऊपर और कपाल पर लगाएं।

* प्यास और वमन-अजीर्ण होने पर जायफल का चूर्ण 10 ग्राम एक लीटर उबलते पानी में डालें और ढंककर रख दें। ठण्डा होने पर इसे थोड़ी मात्रा में दिनभर पिलाएं।

* प्रसव के बाद स्त्रियों को कमर दर्द होने लगता है। जायफल को शराब में घिसकर लेप बनाएं और कमर पर लेप लगाएं और बंगला पान में जायफल का चूर्ण एक ग्राम डालकर खिलाएं।

* शिशु की छाती में कफ जमा हो जाने पर जायफल को पानी में घिसकर लेप तैयार करें। इसे थोड़ा कुनकुना गर्म करें, शिशु की छाती और पीठ पर लेप करके, कपड़ा गर्म करके थोड़ी देर सेक कर दें। शिशु का श्वास कष्ट दूर हो जाएगा।

* शिशु को सर्दी-जुकाम हो जाए तो जायफल और सौंठ को गाय के दूध से बने घी के साथ पत्थर पर घिस लें। इसे दिन में तीन बार, अंगुली से शिशु को चटाएं। सर्दी ठीक हो जाएगी।

* रात को नींद न आती हो तो जायफल, पानी के साथ पत्थर पर घिसकर, लेप आंखों की पलकों के ऊपर लगाएं। जायफल व जावित्री का चूर्ण 1-1 ग्राम दूध में डालकर उबालें और उतार कर ठण्डा कर लें। इसमें 1 चम्मच मिश्री डालकर सोने से 2-3 घण्टे पहले पानी के साथ लें।

जायफल से बनने वाले योग : जातिफलादि वटी, वीर्य स्तम्भन वटी, मृगनाभ्यादि वटी ये आयुर्वेद के उत्तम वाजीकारक योगों में से एक योग है। इसी प्रकार जायफल का उपयोग मकरध्वज वटी, विगोजेम टेबलेट, कामचूड़ामणि रस, सालम पाक, गर्भधारक योग, अश्वगन्धा पाक, फेसकेयर, मुसली पाक, बादाम पाक, कौंच पाक, चन्द्रोदय वटी, अतिसोल वटी आदि अनेक बलवीर्यवर्द्धक आयुर्वेदिक योगों के घटक द्रव्यों में किया जाता है।

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