एक समय भगवान दक्ष प्रजापति से दोनों अश्विनी कुमारों ने पूछा- 'हे भगवान, हरीतकी (हरड़) किस प्रकार उत्पन्न हुई और हरीतकी की कितनी जातियाँ हैं तथा उसके कौन-कौन से रस, उप रस हैं एवं उसके कितने नाम हैं। इस पर दक्ष प्रजापति ने कहा- 'एक समय देवराज इंद्र अमृतपान कर रहे थे। अमृतपान करते समय उनके मुख से एक बूँद अमृत पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसी गिरी हुई अमृत की बूँद से सात जाति वाली हरीतकी उत्पन्न हुई।
हरीतकी की सात जातियाँ इस प्रकार हैं : 1. विजया 2. रोहिणी 3. पूतना 4. अमृता 5. अभया 6. जीवन्ती तथा 7. चेतकी।
हरड़ अमृत से उत्पन्न फल है, इसलिए अमृत गुणों के अधिकाँश लाभ प्रदान करती है। हरीतकी में मधुर अम्ल कटु कषाय तिक्त रस है। किंतु कषाय रस की अधिकता रहती है। हरड़ सब रोगों का हरण करती है। अतः हरीतकी कही जाती है। यह सब धातुओं के अनुकूल है। पथ्य और कल्याणकारिणी है। अतः शिवा कहलाती है। यह सब रोगों को जीतती है, इसलिए विजया कहलाती है। इसका सेवन करने वालों को सब प्रकार के रोगों से अभय तथा पूर्ण आयु मिलती है, अतः अभया कहलाती है।
हरीतकी ऊष्ण वीर्य, अग्नि दीपक, मेघा के लिए हितकर, नेत्रों के लिए लाभदायक, पाचन क्रिया सुचारु रूप से संचालित करने वाली व्याधियों को दूर करने वाली, आयुवर्धक होती है। इसके सेवन से श्वास, कास, प्रमेह, बवासीर, शोथ, पेट के कृमि, आवाज की खराबी, गृहिणी संबंधी रोग, वमन, हिचकी, खुजली, यकृत, प्लीहा एवं पेट संबंधी व्याधियाँ नष्ट होती हैं।
हरड़ में मधुर, तिक्त और कषाय रस रहता है। अतः यह पित्त नाशक, कटु, तिक्त और कषाय रस होने से यह कफनाशक तथा अम्ल रस होने से वायु का भी शमन होता है। अर्थात हरड़ तीनों दोषों का शमन करती है। हरड़ के गुणों का लाभ लेने के लिए विभिन्न ऋतुओं में इसका सेवन करना चाहिए :
*वर्षा ऋतु में सेंधा नमक के साथ।
*शरद ऋतु में शकर के साथ।
*हेमंत ऋतु में सोंठ के साथ।
*शिशिर ऋतु में पीपल के साथ।
*वसंत ऋतु में शहद के साथ।
*ग्रीष्म ऋतु में गुड़ के साथ।
हरीतकी (हरड़), बेहड़ा तथा आँवला का मिश्रण कर त्रिफला का निर्माण होता है। जो सर्वरोग नाशक, त्रिदोष नाशक, मेधा शक्ति, नेत्र शक्ति वृद्धिकारक होता है। शास्त्रोक्त विधि से हरड़ का सेवन करने से रक्तातिसार, अर्श, नेत्र रोग, अजीर्ण, प्रमेह, पाण्डु आदि रोगों में लाभ होता है।