Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(तृतीया तिथि)
  • तिथि- आश्विन शुक्ल तृतीया
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00
  • दिवस विशेष-रवि उस्सानी मा.प्रा., रानी दुर्गावती ज.
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

क्यों खेला जाता है बंगाल में दशहरे के एक दिन पहले दुर्गा अष्टमी पर सिन्दूर खेला

जानिए सिन्दूर खेला पर्व की परंपराएं और क्या है इसका महत्व

हमें फॉलो करें क्यों खेला जाता है बंगाल में दशहरे के एक दिन पहले दुर्गा अष्टमी पर सिन्दूर खेला

WD Feature Desk

, शनिवार, 5 अक्टूबर 2024 (15:45 IST)
Sindur Khela

Sindur Khela 2024 : दुर्गा पूजा पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। विशेषकर पश्चिम बंगाल में यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है। इस पर्व की महत्वपूर्ण दिन है दुर्गा अष्टमी, जो नवरात्रि के आठवें दिन आती है। दुर्गा अष्टमी के दिन विशेष रूप से “सिन्दूर खेला” का आयोजन किया जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को इस परंपरा की जानकारी होती है। तो चलिए जानते हैं क्या है यह सिंदूर खेला? इस परंपरा की शुरुआत कब हुई क्या हैं इसका इतिहास? 

सिन्दूर खेला की परंपरा का सामजिक महत्व
सिन्दूर खेला दुर्गा पूजा की एक बहुत ही पुरानी परंपरा है। मां की विदाई के खुशी में सिंदूर खेला मनाया जाता है। महाआरती के बाद विवाहित महिलाएं देवी के माथे और पैरों पर सिंदूर लगाती हैं फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाने की परंपरा है।

यह परंपरा मुख्यतः बंगाली महिलाओं के बीच लोकप्रिय है। इस दिन, विवाहित महिलाएँ देवी दुर्गा को सिन्दूर (हल्दी) अर्पित करती हैं और फिर आपस में सिन्दूर खेलती हैं और मिठाई खिलाती हैं। यह न केवल एक धार्मिक क्रिया है, बल्कि महिलाओं के लिए एक सामाजिक समारोह भी है, जिसमें वे एक-दूसरे के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत करती हैं।

सिन्दूर खेला का धार्मिक महत्व
सिन्दूर खेला का उद्देश्य विवाह का सुख और सौभाग्य बढ़ाना है। विवाहित महिलाएँ देवी के सामने सिन्दूर लगाकर अपनी खुशियों और समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन, सभी महिलाएँ एक साथ मिलकर नृत्य करती हैं, गाना गाती हैं और खुशी मनाती हैं। यह दृश्य न केवल मनमोहक होता है, बल्कि यह बंगाली संस्कृति की एक अद्भुत झलक भी प्रस्तुत करता है।

कैसे मनाया जाता है सिन्दूर खेला?
महाआरती के साथ इस दिन की शुरुआत होती है। आरती के बाद भक्तगण मां देवी को कोचुर, शाक, इलिश, पंता भात आदि पकवानों का प्रसाद चढ़ाते हैं। इसके बाद इस प्रसाद को सभी में बांटा जाता है। मां दुर्गा के सामने एक शीशा रखा जाता है, जिसमें माता के चरणों के दर्शन होते हैं। ऐसा मानते हैं कि इससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
सिन्दूर खेला के इस समारोह में महिलाएँ अपनी पारंपरिक बंगाली परिधानों में सजती हैं। आमतौर पर, वे लाल और सफेद रंग की साड़ी पहनती हैं, जो इस पर्व की विशिष्टता को और बढ़ाती है। महिलाएँ एकत्र होकर दुर्गा मूर्ति के पास जाती हैं, जहाँ वे पहले देवी को सिन्दूर अर्पित करती हैं फिर सिंदूर खेला शुरू होता है। जिसमें महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर और धुनुची नृत्य कर माता की विदाई का जश्न मनाती हैं। अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दुर्गा विसर्जन किया जाता है।

कब हुई सिंदूर खेला की शुरुआत
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सिंदूर खेला की शुरुआत 450 साल पहले हुई थी। जिसके बाद से बंगाल में दुर्गा विसर्जन के दिन सिंदूर खेला का उत्सव मनाया जाने लगा। बंगाल मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती हैं, जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है।

बंगाल की सांस्कृतिक पहचान है सिन्दूर खेला
सिन्दूर खेला केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह बंगाल की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। यह पर्व महिलाओं के सामूहिक रूप से एकत्रित होने और आपस में प्रेम और स्नेह का आदान-प्रदान करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।

दुर्गा अष्टमी पर सिन्दूर खेला एक ऐसा पर्व है जो बंगाल की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखता है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज में महिलाओं की भूमिका और एकता को भी दर्शाता है। इस दिन की खुशी और उल्लास हर बंगाली परिवार में महसूस किया जाता है, और यह पर्व आने वाले वर्षों में भी इसी तरह धूमधाम से मनाया जाएगा।

अस्वीकरण (Disclaimer) : सेहत, ब्यूटी केयर, आयुर्वेद, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार जनरुचि को ध्यान में रखते हुए सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इससे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Guru vakri 2024: मिथुन राशि में गुरु की वक्री चाल, इन राशियों को कर देगी बेहाल