Kalparambha Puja 2023: कल्पारम्भ पर्व का पश्चिम बंगाल में खासा महत्व है। इसे कोलाबोऊ भी कहते हैं। यह नवपत्रिाक पूजा से एक दिन पहले होता है। अधिकांश वर्षों में, कल्पारम्भ का दिन शुक्ल षष्ठी तिथि पर आता है। कल्पारंभ की पूजा पर देवी दुर्गा को बिल्व वृक्ष या कलश में निवास करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। यह दुर्गा पूजा के विशेष अनुष्ठान को प्रारंभ करने का प्रतीक है। इस दिन को अकाल बोधन भी कहते हैं।
कल्पारंभ क्या होता है?
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नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर कल्पारंभ का शुभारंभ होता है।
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कल्पारंभ यानी विशेष पूजा का शुभारंभ करना।
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देवी दुर्गा को आमन्त्रित करने के अनुष्ठान को कल्पारंभ कहते हैं।
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कल्पारम्भ को अकाल बोधन भी कहते हैं।
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अकाल बोधन का अर्थ होता है देवी दुर्गा का असामयिक आह्वान करना।
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बोधन यानी जगाना अर्थात असमय देवी को नींद से जगाना।
कोलाबोऊ पूजा क्यों की जाती है?
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इस दिन माता दुर्गा को बिल्व पत्र या कलश में निवास करने के लिए निमंत्रण दिया जाता है।
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माता के निवास करने के पश्चात नवपत्रिका पूजा होती है।
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देवी दुर्गा का आवाहन कर उनकी पूजा करने का सबसे अच्छा समय सायंकाल है।
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सायंकाल सूर्यास्त से लगभग 2 घण्टे 24 मिनट पहले का समय होता है।
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सबसे पहले श्रीराम ने ही रावण से युद्ध करने के पहले देवी दुर्गा का आवाहन किया था।
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मान्यता अनुसार तभी से शरद नवरात्रि तथा दुर्गा पूजा की परम्परा में आवाहन पूजा का आरम्भ हुआ था।
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यह पूजा नवरात्रि की घट स्थापना या कलश स्थापना जैसी पूजा होती है।
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कई राज्यों या घरों में नौ दिन की नवरात्रि की जगह सप्तदिवसीय नवरात्रि, पञ्चदिवसीय नवरात्रि, त्रिदिवसीय नवरात्रि , द्विदिवसीय नवरात्रि तथा एकदिवसीय नवरात्रि पूजा होती है। इसीलिए सप्तमी के पहले कोलाबोऊ पूजा की जाती है।
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यह नौ दिवसीय नवरात्रि का एक लघु संस्करण उन लोगों के लिए है जो नौ दिनों तक नवरात्रि मनाने में सक्षम नहीं हैं।