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आराधना और शक्ति का पर्व नवरात्रि

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हमें फॉलो करें नवरात्रि
नवरात्रि एक हिन्दू पर्व है। 'नवरात्रि' संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है 9 रातें। यह पर्व साल में 4 बार आता है। चैत्र, आषाढ़, अश्विन, पौष प्रतिप्रदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि की 9 रातों में 3 देवियों- महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती या दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।

नौ देवियां हैं...

श्री शैलपुत्री

श्री ब्रह्मचारिणी

श्री चन्द्रघंटा

श्री कुष्मांडा

श्री स्कंदमाता

श्री कात्यायनी

श्री कालरात्रि

श्री महागौरी

श्री सिद्धिदात्री


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शक्ति की उपासना का पर्व प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित 9‍ तिथि, 9 नक्षत्र, 9 शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है।

आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के 9 दिनों में क्रमश: अलग-अलग पूजा की जाती है। मां दुर्गा की 9वीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार ‍की सिद्धियां देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के 9वें दिन इनकी उपासना की जाती है।

नवदुर्गा और 10 महाविधाओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं।

भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, 2 रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली 10 महाविधाएं अनंत सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। 10वें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से ‍वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।


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कथा

लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण-वध के लिए चंडीदेवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था की गई, वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया।

यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुंचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासंभव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी मां रुष्ट न हो जाएं।

दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग कमलनयन नवकंच लोचन कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राज जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूं और विजयश्री का आशीर्वाद दिया।


जब हनुमान ने बदलवाया एक अक्षर

वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धरकर हनुमानजी सेवा में जुट गए। नि:स्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर मांगने को कहा।

इस पर हनुमानजी ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए।

ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। 'भूर्तिहरिणी' यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया।

हनुमानजी महाराज ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवा कर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।


अन्य कथाएं-
श्रीनगर के निकट खीर भवानी मंदिर : इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंसरूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजेय होने का वरदान दे दिया।

उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। और प्रत्याशित प्रतिफलस्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देखकर देवता विस्मय की स्‍थिति में आ गए।

महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चंद्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्‍वी पर विचरण करना पड़ रहा है।

(2) तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था।

महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गई थीं। इन 9 दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अंतत: वे महिषासुरमर्दिनी कहलाईं


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