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शुभ और सुंदर जीवन देती है नवरात्रि

सुख-शांति व विजय चाहिए तो करें मां की आराधना

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- पं. प्रेमकुमार शर्मा

सम्पूर्ण ब्रह्मांड सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी, पेड़-पौधें, पर्वत, सागर, पशु-पक्षी, देव, दनुज, मनुज, नाग, किंन्नर, गधर्व, सदैव प्राण शक्ति व रक्षा शक्ति की इच्छा से चलायमान हैं।

मानव सभ्यता का उदय भी शक्ति की इच्छा से हुआ। उसे कहीं न कहीं प्राण व रक्षा शक्ति के अस्तित्व का एहसास होता रहा है।

जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर ने आदि शक्ति मां जगदम्बा को विश्व कल्याण के लिए प्रेरित किया।


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जिन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनः प्राण शक्ति व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया। बिना शक्ति की इच्छा एक कण भी नहीं हिल सकता। त्रैलोक्य दृष्टा शिव भी (इ की मात्रा, शक्ति) के हटते ही शव (मुर्दा) बन जाते हैं। अर्थात्‌ देवी भागवत, सूर्य पुराण, शिव पुराण, भागवत पुराण, मार्केंडेय आदि पुराणों में शिव व शक्ति की कल्याणकारी कथाओं का अद्वितीय वर्णन है।

शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु सम्पूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को प्रतिवर्ष बड़े श्रद्धा, भक्ति, हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जिसे शरदीय नवरात्रि व ग्रीष्मकालीन नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।

इस समय शारदीय नवरात्रि में खरीफ व ग्रीष्म में रवी की नई फसल तैयार हो जाती है। इन फसलों के रखरखाव व कीट पंतगों से रक्षा हेतु, घर, परिवार व जीवन को सुखी-समृद्ध बनाने तथा भयंकर कष्टों, दुख दरिद्रता से छुटकारा पाने हेतु सभी वर्ण के लोग नौ दिनों तक विशेष सफाई तथा पवित्रता को महत्व देते हुए नौ देवियों की आराधना करते हुए हवनादि यज्ञ क्रियाएं करते हैं।

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यज्ञ क्रियाओं द्वारा पुनः वर्षा होती है जो धन, धान्य से परिपूर्ण करती है तथा अनेक प्रकार की संक्रमित बीमारियों का अंत भी। भगवान श्रीराम ने भी आदि शक्ति जगदम्बा की आराधना नवरात्रि के विशेष पर्व में कर भगवती की अद्वितीय कृपा प्राप्त कर अत्याचारी रावण का वध किया था।

मां 'दुर्गा' की पूजा व साधना नवरात्रि में अनेक विद्वानों एवं साधकों ने बताई है। किन्तु सबसे प्रामाणिक व श्रेष्ठ आधार 'दुर्गा सप्तशती' है। जिसमें सात सौ श्लोकों के द्वारा भगवती दुर्गा की अर्चना व वंदना की गई है। नवरात्रि में श्रद्धा एवं विश्वास के साथ दुर्गा सप्तशती के श्लोकों द्वारा मां-दुर्गा देवी की पूजा नियमित शुद्वता व पवित्रता से की जाए तो निश्चित रूप से मां प्रसन्न हो इष्ट फल प्रदान करती हैं।

समयाभाव व व्यस्तता को ध्यान में रख दुर्गा-सप्तशती के कुछ सूक्ष्म पाठों को कम समय में कर अभीष्ट फल को प्राप्त किया जा सकता है। दुर्गा सप्तशती में कम समय में इच्छित फल पाने हेतु सात सौ श्लोकों के स्थान पर 'सप्तश्लोकी दुर्गा' पाठ का विधान है जिसे अत्यंत कम समय में करके भी मनवांछित फल प्राप्त किया जा सकता है।


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इसी तरह दुर्गा कवच, अर्गला, कीलक, रात्रिसूक्त, देवी सूक्त, अपराध क्षमा-प्रार्थना, अपराध क्षमा-स्त्रोत ऐसे हैं। जिन्हें किसी भी स्थान, देशकाल व परिस्थिति में करके भी मनोवांछित फल अधिक शीघ्रता से प्राप्त किया जा सकता है।

अतः नवरात्रि में भगवती जगदम्बा जो विश्व की प्राण आत्मा व रक्षा शक्ति हैं, उनकी स्थापना एवं पूजा विधि-विधान के साथ प्रत्येक व्यक्ति को करनी चाहिए। इस पूजा में पवित्रता, नियम व संयम तथा ब्रह्मचर्य का विशिष्ट महत्व है। इसलिए स्थापना राहु काल, यमघण्ट काल में कदापि नहीं करना चाहिए।

इस पूजा के समय घर व देवालय को तोरण व विविध प्रकार के मांगलिक पत्र, पुष्पों से सजा सुन्दर सर्वतोभद्र मण्डल, स्वास्तिक, नवग्रहादि, ओंकार आदि की स्थापना विधवत शास्त्रोक्त विधि से करने या कराने तथा स्थापित समस्त देवी-देवताओं का आवाह्‌न उनके 'नाम मंत्रो' द्वारा कर षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए जो विशेष फलदायिनी है।

पूजा के समय ज्योति जो साक्षात्‌ शक्ति का प्रतिरूप है उसे अखंड ज्योति के रूप में शुद्ध देशी घी या गाय घी हो तो सर्वोत्तम है प्रज्ज्वलित करना चाहिए। इस अखंड ज्योति को सर्वतोभद्र मण्डल के अग्नि कोण में स्थापित करना चाहिए। ज्योति द्वारा ही प्रत्येक जीवन को प्राण शक्ति प्राप्त होती है, इस ज्योति से ही आर्थिक समृद्धि के द्वार खुलते हैं।

अंधकार, दुख भय में खोए हुए व्यक्ति को ज्योति शक्ति के रूप सदैव सहायता करती है। ज्योति शब्द का अर्थ प्रकाश या रोशनी से है जिसके बिना जीवन का संचालन असंभव ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है।

इसलिए नवरात्रि में अखंड ज्योति का विशेष महत्व है, जो जीवन के हर रास्ते को सुखद प्रकाशमय बना जाती है। इसलिए जहां तक संभव हो अखंड ज्योति का प्रज्ज्वलन विधिवत संकल्प के साथ प्रत्येक घर में होना चाहिए। जिसके प्रत्यक्ष प्रभाव से सारी विघ्न बाधाएं, कष्ट परेशानियां, बीमारियां इत्यादि समाप्त हो जाती हैं।

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दुर्गा सप्तशती का पाठ घर या देवालय में नियम व श्रद्वा से किया जा सकता है। इस पूजा के पूर्व शौचादि क्रियाओं को विविधत ढंग से कर स्नानादि द्वारा पवित्र हो, शुद्ध धुले हुए वस्त्रों को धारण कर शुद्ध आसन में असीन हो, मन में किसी प्रकार की कुण्ठा व ईर्ष्या, द्वेष, आशंका, क्रोध न हो तथा सदाचार, सत्य वचन, दया, क्षमा व कायिक, वाचिक, मानसिक श्रद्धा से परिपूर्ण होकर पूजा की शुरुआत की जाए तो निश्चित रूप से मां जगदम्बा मनोवांछित फल श्रद्धालु भक्त को प्रदान करती हैं।

नवरात्रि में व्रत का विधान भी है जिसमें पहले, अंतिम और पूरे नौ दिनों तक का व्रत रखा जा सकता है। इस पर्व में सभी स्वस्थ व्यक्तियों को समर्थ व श्रद्धा अनुसार व्रत रखना चाहिए। किन्तु जो बीमार व रोगी हो उन्हें व्रत रखना जरूरी नहीं है। किन्तु मां भगवती का गुणगान कर या करवा, सुन या सुनाकर रोग व पीड़ाओं से मुक्त हो सकते हैं।

व्रत में शुद्ध शाकाहारी व शुद्ध व्यंजनों का ही प्रयोग करना चाहिए। सर्वसाधारण व्रती व्यक्तियों को प्याज, लहसुन आदि तामसिक व मांसाहारी पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए। व्रत में फलाहार अति उत्तम तथा श्रेष्ठ माना गया है किन्तु कुछ लोग स्थानीय रीतियों व अन्य कारणों से नमकीनयुक्त पदार्थों के उपयोग के साथ ही सायंकाल में अन्नादि का प्रयोग करते हैं जो ठीक हो सकता है। किन्तु उत्तम नहीं।

इस प्रकार मां आदि शक्ति जगदम्बा अपनी इच्छा से नवग्रहों, नौ अंकों सहित समस्त ब्रह्मांड की दृश्य व अदृश्य वस्तुओं, विद्याओं व कलाओं को शक्ति दे संचालित कर रही हैं। भगवती के नव रूपों की शक्ति से ही संपूर्ण संसार संचालित हो रहा है। अतः मां दुर्गा-देवी की कृपा हेतु नियमित रूप से नौ दिनों तक 'नवार्ण मंत्रों' द्वारा वंदना करना चाहिए।

नवरात्रि में नव कन्याओं का पूजन कर उन्हें श्रद्धा विश्वास के साथ सामर्थ्यानुसार भोजन व दक्षिण देना अत्यंत शुभ व श्रेष्ठ माना गया है। इस कलिकाल में सर्वबाधाओं, विघ्नों से मुक्त हो सुखद जीवन के पथ अग्रसर होने का सबसे सरल उपाय शक्ति रूपा जगदम्बा का नवरात्रि में विधि-विधान द्वारा पूजा अर्चना ही एक साधन है। जो मानव जीवन को भयंकर कष्टों रोगों, शोकों, दरिद्रता से उबार प्रसन्नता की नई ज्योति के साथ मनोवांछित फलों की दात्री है




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