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आज के शुभ मुहूर्त

(चतुर्थी व्रत)
  • तिथि- मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया
  • शुभ समय- 6:00 से 9:11, 5:00 से 6:30 तक
  • व्रत/मुहूर्त-विनायकी चतुर्थी/नौसेना दि., ब्रह्मानंद लोधी ज.
  • राहुकाल- दोप. 12:00 से 1:30 बजे तक
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दुर्गा आराधना का महत्व

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जगत्‌ की उत्पत्ति, पालन एवं लय तीनों व्यवस्थाएं जिस शक्ति के आधीन सम्पादित होती है वही पराम्वा भगवती आदि शक्ति हैं। इन्हीं के अनन्त रूप हैं लेकिन प्रधान नौ रूपों में नवदुर्गा बनकर आदि शक्ति सम्पूर्ण पृथ्वी लोक पर अपनी करूणा की वर्षा करती है, अपने भक्त और साधकों में अपनी ही शक्ति का संचार करते हुए, करूणा एवं परोपकार के द्वारा संसार के प्राणियों का हित करती है।

प्रथम नवरात्रि को मां की शैलपुत्री रूप में आराधना की जाती है। वस्तुतः नौ दुर्गा के रूप माता पार्वती के हैं। दक्ष प्रजापति के अहंकार को समाप्त कर प्रजापति क्रम में परिवर्तन लाने एवं अपने सती स्वरूप का संवरण कर पार्वती अवतार क्रम में नौ दुर्गा की नौ रूप मूर्तियों की उपासना का पर्व है नवरात्रि।

यद्यपि शक्ति अवतार को दक्ष यज्ञ में अपने योग बल से सम्पन्न करने से पूर्ण भगवती सती जी ने भगवान शंकर के समक्ष अपनी दस महाविधाओं को प्रकट किया तथा उनके सती जी के दग्ध छाया छाया देह के अंग-प्रत्यंगो से अनेक शक्ति पीठों में आदि शक्ति प्रतिष्ठित होकर पूजी जाने लगी पार्वती रूपा भगवती के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री की आराधना से साधक की योग यात्रा की पहली सीढ़ी बिना बाधाओं के पार हो जाती है।

योगीजन प्रथम नवरात्रि की साधना में अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित शक्ति केंद्र की जागृति मे तल्लीन कर देते हैं।

नवरात्रि आराधना, तन मन और इन्द्रिय संयम, साधना की उपासना है, उपवास से तन संतुलित होता है। तन के सन्तुलित होने पर योग साधना से इंद्रियां संयमित होती है। इन्द्रियों के संयमित होने पर मन अपनी आराध्या मां के चरणों में स्थिर हो जाता है।

शक्ति उपासना के महत्व के बारे में कहा जाता है कि जिसने अपने मन को स्थिर कर लिया वह संसार चक्र से छूट जाता है। संसार में रहते हुए उसके सामने कोई भी सांसारिक विध्न-बाधाएं टिक नहीं सकती।

वह भगवती दुर्गा के सिंह की तरह बन जाता है, ऐसे साधक भक्त एवं योगी महापुरुष को दर्शन मात्र से सिद्धियां मिलने लगती हैं। परंतु सावधान रहना चाहिए की सांसारिक उपलब्धि रूपी सिद्धियां संसार में भटका देती हैं। अतः उपासक एवं साधकों को यह भी सावधानी रखनी होती है कि उनका लक्ष्य केवल मां दुर्गा के श्री चरणों में समर्पण है और कुछ नहीं।

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