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नवरात्रि विशेष : कैसे बने माता के प्रमुख शक्तिपीठ

हमें फॉलो करें नवरात्रि विशेष : कैसे बने माता के प्रमुख शक्तिपीठ
- ऋषि गौतम
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नवरात्रि व्रत शुरू हो चुका है। शक्ति स्वरूपा देवी मां की पूजा के लिए श्रद्धालु देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में पहुंच रहे हैं। आप में से अधिकांश लोग माता के बहुत से शक्तिपीठों का दर्शन पहले भी कर चुके होंगे और बहुत से लोगों ने पुराणों आदि में इसके बारे में पढ़ा भी होगा। लेकिन क्या आपको पता है कि इन शक्तिपीठों का जन्म कैसे हुआ? इसकी संख्या कितनी हैं? यह शक्तिपीठ कहां-कहां हैं? और उसकी महत्ता क्या है?

यूं तो मुख्य रूप से 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। लेकिन देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा सप्तशती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। लेकिन संख्याओं के इन मकड़जाल से अगर आप बाहर निकलेंगे तो आप पाएंगे कि सभी शक्तिपीठों की स्थापना के बारे में जो कथा बताई जाती है वह एक ही है।

शक्तिपीठ के बनने की कहानी : -

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कहा जाता है कि प्रजापति दक्ष की पुत्री बनकर माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और बाद में भगवान शिव से विवाह किया। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे।

एक बार की बात है, दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन अपने बेटी-दामाद को नहीं बुलाया। तब सती बिना बुलाए ही यज्ञ में शामिल होने चली गईं।

यज्ञ-स्थल पहुंचने पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित नहीं करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर के बारे में अपशब्द कहे। सती अपने पति के इस अपमान को सह नहीं पाईं और यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।

भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। भगवान शंकर के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गए।

भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य किया। ऐसे में हर तरफ हाहाकार मच गया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए।

जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े,धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ का निर्माण हुआ। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठ अस्तित्व में आए।

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