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चैत्र नवरात्रि : तांत्रिकों की प्रमुख देवी माता तारा के 4 रहस्य

हमें फॉलो करें चैत्र नवरात्रि : तांत्रिकों की प्रमुख देवी माता तारा के 4 रहस्य

अनिरुद्ध जोशी

, सोमवार, 30 मार्च 2020 (12:23 IST)
चैत्र माह की शुक्ल अष्टमी अर्थात 1 अप्रैल 2020 को तारा अष्टमी है। दस महाविद्याओं में से द्वितीय महाविद्या तारा हैं। ये शक्ति की स्वरूप हैं। नवरात्रि पर अष्टमी के दिन मां तारा की पूजा की जाती है। कुछ लोग नवमी को महातारा की साधना करते हैं।
 
 
1.माता सती की बहन : माता सती ने ही पार्वती के रूप में दूसरा जन्म लिया था। माता सती राजा दक्ष की पुत्री थीं। राजा दक्ष की और भी पुत्रियां थीं जिसमें से एक का नाम तारा हैं। तारा एक महान देवी हैं जिनकी पूजा हिन्दू और बौद्ध दोनों ही धर्मों में होती है। तारने वाली कहने के कारण माता को तारा भी कहा जाता है।

हालांकि माता तारा के जन्म की कथा पुराणों में इसे अलग भी मिलती है। कहते हैं कि जब सृष्टि से पहले चारों ओर घोर अधंकार व्याप्त था, तब इस घोर अंधकार से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न होती है जो तारा कही गई। ब्रह्मांड में जितने भी पिंड हैं सभी की स्वामिनी देवी तारा ही है। विराट प्रकाश के रूप में इनका प्राकट्य हुआ इसलिए इन्हें महातारा भी कहा जाता है। यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है।

 
2.तांत्रिकों की प्रमुख देवी तारा : माता तारा को तांत्रिकों की देवी माना जाता है। चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है। जो भी साधक या भक्त माता की मन से प्रार्धना करता है उसकी कैसी भी मनोकामना हो वह तत्काल ही पूर्ण हो जाती है। शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।

 
3.तांत्रिक पीठ : तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है। यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला में स्थित है। इसलिए यह स्थान तारापीठ के नाम से विख्यात है। प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस मंदिर में वामाखेपा नामक एक साधक ने देवी तारा की साधना करके उनसे सिद्धियां हासिल की थीं।

 
तारा देवी का एक दूसरा मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित शोघी में है। देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा पर्वत पर बना हुआ है। तिब्‍बती बौद्ध धर्म के लिए भी हिन्दू धर्म की देवी 'तारा' का काफी महत्‍व है।
 
 
4.भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं:- उग्र तारा, एकजटा और नील सरस्वती। देवी तारा को महानीला या नील तारा भी कहा जाता है। सभी नाम की उत्पत्ति पीछे अलग अलग कथा है।

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