उज्जैन को सभी तीर्थों में प्रमुख और स्वर्ग से भी बढ़कर माना जाता है, क्योंकि यहां 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल ज्योतिर्लिंग, 108 शक्तिपीठों में से दो गढ़ कालिका और माता हरसिद्धि का मंदिर हैं। यहां पर श्मशान, ऊषर, क्षेत्र, पीठ एवं वन- ये 5 विशेष संयोग एक ही स्थल पर उपलब्ध हैं। यह संयोग उज्जैन की महिमा को और भी अधिक गरिमामय बनाता है। इस नगर की रक्षा करने वाली माता को नगरकोट की रानी कहते हैं।
1. नगर का अर्थ शहर और कोट का अर्थ होता है नगर की परिधि में बनी दीवार। इसीलिए यहां की माता को नगरकोट की रक्षक रानी माता कहा जाता है।
2. नगरकोट की रानी प्राचीन उज्जयिनी के दक्षिण-पश्चिम कोने की सुरक्षा देवी है। राजा विक्रमादित्य और राजा भर्तृहरि की अनेक कथाएं इस स्थान से जुड़ी हुई हैं। यह स्थान नाथ संप्रदाय की परंपरा से जुड़ा है। यह स्थान नगर के प्राचीन कच्चे परकोटे पर स्थित है इसलिए इसे नगरकोट की रानी कहा कहा जाता है।
3. हालांकि यह यह मंदिर उज्जैन शहर की उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है। इस मंदिर में एक जलकुंड है जो कि परमारकालीन माना जाता है। मंदिर में एक अन्य गुप्त कालीन मंदिर भी है जो कि शिवपुत्र कार्तिकेय का है।
4. ऐसी मान्यता है कि उज्जैन में नवरात्रि में अन्य माता मंदिर के दर्शन नगरकोट की रानी माता के बगैर अधूरे माने जाते हैं। वैसे तो इस मंदिर में हर दिन या विशेष अवसरों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि में यहां सुबह से लेकर रात तक श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। सुबह और शाम के समय भव्य आरती होती है तो नगाड़ों, घंटियों की गूंज से वातावरण आच्छादित हो उठता है।
5. उज्जैन अवंतिखंड की नवमातृकाओं में सातवीं कोटरी देवी के नाम से प्रसिद्ध है नगरकोट की रानी माता। स्कंद पुराण के अवंतिका क्षेत्र महात्म्य में वर्णित चैबीस देवियों में से नगरकोट माता मंदिर भी है। गोरधन सागर के पास स्थित मंदिर में माता की मूर्ति भव्य और मनोहारी है।
6. उज्जैन नगर का अति प्राचीन मंदिर है चौबीस खंबा माता का मंदिर। यहां पर महालय और महामाया दोनों माता की दो देवियों की प्रतिमा द्वारा पर विराजमान हैं। सम्राट विक्रमादित्य नगरकोट की रानी के साथ ही इन देवियों की आराधना किया करते थे। यहां नगर रक्षा के लिए चौबीस खबे लगे हुए हैं इसीलिए इसे चौबीस खंबा कहते हैं। यह महाकाल के पास स्थित है। शहर में लगभग 40 देवियों और भौरवों को भोग लगाया जाता है। यहां के कलेक्टर अष्टमी पर सभी को शराब चढ़ाते हैं।
सहस्र पद विस्तीर्ण महाकाल वनं शुभम।
द्वार माहघर्रत्नार्द्य खचितं सौभ्यदिग्भवम्।।
इस श्लोक से विदित होता है कि एक हजार पैर विस्तार वाला महाकाल-वन है जिसका द्वार बेशकीमती रत्नों से जड़ित रत्नों से जड़ित उत्तर दिशा को है। इसके अनुसार उत्तर दिशा की ओर यही प्रवेश-द्वार है।