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(वैशाख अमावस्या)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण अमावस्या
  • शुभ समय- 6:00 से 9:11, 5:00 से 6:30 तक
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देवी माता के नौ रूप और नौ विशेष भोग

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नवरात्र के 9 दिनों में आदिशक्ति दुर्गा के 9 रूपों का भी पूजन किया जाता है। माता के इन 9 रूपों को 'नवदुर्गा' के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के 9 दिनों में मां दुर्गा के जिन 9 रूपों का पूजन किया जाता है, उनमें पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवां स्कंदमाता, छठा कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी और नौवां सिद्धिदात्री की पूजन की जाती है।


 
नवरात्र के 9 दिनों तक विधिवत उपवास करने के बाद आश्विन मास, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन उपवासों का समापन किया जाता है। प्रत्येक उपवासक की यह जिज्ञासा रहती है कि वह माता को भोग में क्या दें कि माता शीघ्र प्रसन्न हों। हिन्दुओं का कोई भी उपवास भोग, प्रसाद के बिना पूरा नहीं होता है। व्रत किसी भी उद्देश्य के लिए किया गया हो, उसमें देवी-देवताओं को भोग अवश्य लगाया जाता है। नवरात्र के 9 दिनों में 9 देवियों को अलग-अलग भोग लगाया जाता है।

जानिए 9 देवियों के भोग : - 
 
 
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माता शैलपुत्री को लगाया जाने वाला भोग- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रथम नवरात्रा होता है। नवरात्र के पहले दिन माता के प्रथम रूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माता शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और इसी कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। इस दिन उपवास करने के बाद माता के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उपवास करने वाला निरोगी रहता है। 
 
 
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माता ब्रह्मचारिणी को लगाया जाने वाला भोग- आश्विन मास की द्वितीया तिथि के दिन श्री दुर्गा के द्वितीय रूप माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माता इस रूप में तपस्विनीस्वरूपा होती है। माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या-साधना की थी, उसी रूप के कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। इस दिन माता ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए उनको शकर का भोग लगाया जाता है। इस दिन माता को शकर का भोग लगाने से घर के सभी सदस्यों की आयु में बढ़ोतरी होती है।
 
 
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माता चंद्रघंटा को लगाया जाने वाला भोग- माता के तीसरे रूप में चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। माता चंद्रघंटा के माथे पर चंद्र अर्द्ध स्वरूप में विद्यमान है। नवरा‍त्र के तीसरे दिन इनका पूजन-अर्चन किया जाता है। माता चंद्रघंटा का पूजन करने से उपवासक की सभी मनोइच्छा स्वत: पूरी हो जाती है तथा वह सांसारिक कष्टों से मुक्ति पाता है। माता की पूजा करते समय उनको दूध या दूध से बनी मिठाई अथवा खीर का भोग लगाया जाता है। भोग लगाने के लिए एक थाल ब्राह्मण के लिए भी निकाली जाती है। ब्राह्मण को भोजन के साथ-साथ दक्षिणा आदि भी दान में दी जाती है। माता चंद्रघंटा को खीर का भोग लगाने से उपवासक को दु:खों से मुक्ति प्राप्त होती है और उसे परम आनंद की प्राप्ति होती है।
 
 
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माता कूष्मांडा को लगाया जाने वाला भोग- नवरात्रे का चौथा दिन माता कूष्मांडा की पूजा-आराधना करने का है। यह माता कूष्मांडा का चौथा रूप है। एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति माता कूष्मांडा के उदर से हुई है। नवरात्रे के चौथे दिन इनकी पूजा-आराधना की जाती है। चौथे नवरात्रे को जो जन पूर्ण विधि-विधान से उपवास करता है, उसके समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। माता कूष्मांडा की पूजा करने के बाद इस दिन उनको मालपुओं का भोग लगाया जाता है। यह प्रसाद मंदिरों में बांटना भी इस दिन शुभ रहता है। इस दिन माता को मालपुए का भोग लगाने से माता प्रसन्न होकर उपवासक की बुद्धि का विकास करती हैं और साथ-साथ निर्णय करने की शक्ति भी बढ़ाती है। 
 
 
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माता स्कंदमाता को लगाया जाने वाला भोग- आश्विन मास में माता दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र के पांचवें दिन माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है। माता स्कंदमाता कुमार कार्तिकेय की माता है। पांचवें दिन माता के इस रूप की आराधना करने से उपवासक को स्वत: ही सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इस पूरे दिन उपवास करने के बाद माता को केले का भोग लगाया जाता है। इस दिन माता को केले का भोग लगाने से शरीर स्वस्थ रहता है। 
 
 
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माता कात्यायनी को लगाया जाने वाला भोग- माता कात्यायनी माता दुर्गा का छठा रूप है। आश्विन मास की षष्ठी तिथि को माता के इस रूप की पूजा की जाती है। माता कात्यायनी ऋषि कात्यायन की पुत्री हैं। माता को अपनी तपस्या से प्रसन्न करने के बाद उनके यहां माता ने पुत्री रूप में जन्म लिया, इसी कारण वे कात्यायनी कहलाईं। नवरात्र के छठे दिन इनकी पूजा-आराधना की जाती है। इस दिन माता को भोग में शहद दिया जाता है। माता कात्यायनी को शहद का भोग लगाने से उपवासक की आकर्षण शक्ति में वृद्धि होती है।
 
 
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माता कालरात्रि को लगाया जाने वाला भोग- सप्तमी‍ तिथि में माता के कालरात्रि स्वरूप की पूजा-आराधना की जाती है। ये माता काल अर्थात बुरी शक्तियों का नाश करने वाली हैं इसलिए इन्हें कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के सातवें दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इ‍स दिन साधक को पूरे दिन का उपवास करने के बाद माता को गुड़ का भोग लगाया जाता है। इसी भोग की एक थाली भोजन सहित ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दी जाती है। इस प्रकार माता की पूजा करने से व्यक्ति पर आने वाले शोक से मुक्ति मिलती है व उपवासक पर आकस्मिक रूप से आने वाले संकट भी कम होते हैं।
 
 
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माता महागौरी को लगाया जाने वाला भोग- श्री दुर्गा अष्टमी के दिन माता के आठवें रूप महागौरी की पूजा की जाती है। अपने गोरे रंग के कारण इनका नाम महागौरी पड़ा है। माता के महागौरी रूप का पूजन करने पर माता प्रसन्न होकर उपवासक के हर असंभव कार्य को भी संभव कर आशीर्वाद देती हैं। इस दिन माता को भोग में नारियल का भोग लगाया जाता है और ब्राह्मण को भी नारियल दान में देने की प्रथा है। यह माता नि:संतानों की मनोकामना पूरी करती है। 
 
 
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माता सिद्धिदात्री को लगाया जाने वाला भोग- नवरात्र के नौवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा-आराधना का होता है। माता सिद्धिदात्री को सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली कहा गया है। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इन्हें सिद्धियों की स्वामिनी भी कहा जाता है। नवमी तिथि का व्रत कर, माता की पूजा-आराधना करने के बाद माता को तिल का भोग लगाना इस दिन कल्याणकारी रहता है। यह उपवास व्यक्ति को मृत्यु के भय से राहत देता है और अनहोनी घटनाओं से बचाता है। 


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