* कैसे करें शतचण्डी विधि से दुर्गा सप्तशती पाठ, जानिए... 
	 
 
									
										
								
																	
									
			
			 
 			
 
 			
					
			        							
								
																	
	 
	नवरात्रि के पावन पर्व पर मां की प्रसन्नता हेतु किसी भी दुर्गा मंदिर के समीप सुंदर मण्डप व हवन कुंड स्थापित करके (पश्चिम या मध्य भाग में) दस उत्तम ब्राह्मणों (योग्य) को बुलाकर उन सभी के द्वारा पृथक-पृथक मार्कण्डेय पुराणोक्त श्री दुर्गा सप्तशती का दस बार पाठ करवाएं। इसके अलावा प्रत्येक ब्राह्मण से एक-एक हजार नवार्ण मंत्र भी करवाने चाहिए। 
 
									
										
								
																	
	 
	 
	शतचण्डी विधि से करें पूजन :- 
	 
	शक्ति संप्रदाय वाले शतचण्डी (108) पाठ विधि हेतु अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा का दिन शुभ मानते हैं। इस अनुष्ठान विधि में नौ कुमारियों का पूजन करना चाहिए जो 2 से 10 वर्ष तक की होनी चाहिए।
 
									
											
									
			        							
								
																	इन कन्याओं को क्रमशः कुमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, शाम्भवी, दुर्गा, चंडिका तथा मुद्रा नाम मंत्रों से पूजना चाहिए।
 
									
											
								
								
								
								
								
								
										
			        							
								
																	
	 
	किस कन्या पूजन का क्या फल :- 
	 
	* इस कन्या पूजन में संपूर्ण मनोरथ सिद्धि हेतु ब्राह्मण कन्या। 
 
									
					
			        							
								
																	
	* यश हेतु क्षत्रिय कन्या। 
	* धन के लिए वेश्य कन्यास 
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	* पुत्र प्राप्ति हेतु शूद्र कन्या का पूजन करें। 
	 
	इन सभी कन्याओं का आवाहन प्रत्येक देवी का नाम लेकर यथा 'मैं मंत्राक्षरमयी लक्ष्मीरुपिणी, मातृरुपधारिणी तथा साक्षात् नव दुर्गा स्वरूपिणी कन्याओं का आवाहन करता हूं तथा प्रत्येक देवी को नमस्कार करता हूं।' इस प्रकार से प्रार्थना करनी चाहिए।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	वेदी पर सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर कलश स्थापना कर पूजन करें। शतचण्डी विधि अनुष्ठान में यंत्रस्थ कलश, श्री गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तऋषि, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी 50 क्षेत्रपाल तथा अन्याय देवताओं का वैदिक पूजन होता है। जिसके पश्चात् चार दिनों तक पूजा सहित पाठ करना चाहिए। पांचवें दिन हवन होता है। 
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	इन सब विधियों (अनुष्ठानों) के अतिरिक्त प्रतिलोम विधि, कृष्ण विधि, चतुर्दशी विधि, अष्टमी विधि, सहस्त्रचण्डी विधि (1008) पाठ, ददाति विधि, प्रतिगृहणाति विधि आदि अत्यंत गोपनीय विधियां भी हैं जिनसे साधक इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति कर सकता है।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	सावधानी : इस विधि को करने वाले साधक कृपया ध्यान रहे कि शक्ति की आराधना में किसी भी प्रकार की कमी न रहने पाए।