Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
  • तिथि- वैशाख कृष्ण प्रतिपदा
  • शुभ समय- 6:00 से 9:11, 5:00 से 6:30 तक
  • व्रत/मुहूर्त- कच्छापवतार, सत्य सांईं महा.दि.
  • राहुकाल- दोप. 12:00 से 1:30 बजे तक
webdunia
Advertiesment

नवरात्रि में अंतिम दिन इन 4 वस्तुओं की करें पूजा

हमें फॉलो करें नवरात्रि में अंतिम दिन इन 4 वस्तुओं की करें पूजा
webdunia

पं. हेमन्त रिछारिया

यूं तो इन 4 सामग्रियों का पूजन नवरात्रि के नौ दिनों तक करने का महत्व है लेकिन किसी कारणवश अगर आप नौ दिनों तक इनकी पूजा न कर सके हैं तो नवमी तिथि पर इन्हें लाकर पूजन कर सकते हैं.... (जवारे को छोड़कर 3 सामग्री लाई जा सकती है। ) 
 
1. जवारे- नवरात्रि के दिनों में जवारों की पूजा का बहुत महत्त्व होता है। शारदीय नवरात्र हो या गुप्त नवरात्र, जवारे के बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है। घट-स्थापना के साथ ही जवारे हेतु गेहूं बोया जाता है। तत्पश्चात् नौ दिन तक इन अंकुरित गेहूं जिन्हें 'जवारे' कहा जाता है, उनकी पूर्ण श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना की जाती है। सामान्यत: जवारे के आकार के आधार पर  ही साधना की पूर्णता व सफ़लता का आकलन किया जाता है। हरे-भरे व बड़े जवारे सुख-समृद्धि व साधना की सफ़लता का प्रतीक माने जाते हैं।
 
2. हत्थाजोड़ी- नवरात्रि के नौ दिनों में 'हत्थाजोड़ी' की पूजा-अर्चना भी आशातीत लाभ प्रदान करती है। "हत्थाजोड़ी" एक प्रकार की जड़ होती है जिसका आकार मनुष्य के जुड़े हुए हाथों की भान्ति होता है। 'हत्थाजोड़ी' को मां चामुण्डा का साक्षात् स्वरूप माना जाता है। इसमें वशीकरण की अद्भुत शक्ति होती है। सिद्ध हत्थाजोड़ी जिस घर में रहती है वहां सुख-सम्पत्ति का अभाव नहीं रहता। इसे कुछ ख़ास मुहूर्त में ही सिद्ध किया जाता है, नवरात्रि उनमें से एक है।
 
3. सियारसिंगी- "सियारसिंगी" एक प्रकार की गांठ होती है जो एक विशेष सियार के माथे पर होती है। यह भूरे रंग के बालों से ढंकी रहती है और इसमें चावल के दाने के आकार का एक सींग होता है। यह वशीकरण का अद्भुत प्रभाव रखती है। नवरात्रि के अंतिम दिन में इसकी पूजा व सिद्धि करना लाभदायक रहता है।
 
4. तांत्रोक्त छुआरा- छुआरा सेहत के लिए तो लाभदायक रहता ही है किन्तु पूजा-पाठ में भी छुआरे का विशेष महत्त्व होता है। छुआरे के बीज (गुठली) में सामान्यत: बीच में एक लकीर होती है किन्तु किसी-किसी छुआरे में एक के स्थान पर तीन लकीरें होती हैं। इसे तांत्रोक्त छुआरा कहते हैं। तन्त्र-शास्त्र में इसे कामाख्या देवी की योनि का स्वरूप माना गया है। यह बड़ा ही दुर्लभ होता है।

लाखों छुआरे में से किसी एक छुआरे में ऐसा बीज निकलता है। ऐसी मान्यता है कि जिस किसी साधक या भक्त पर मां कामाख्या की विशेष कृपा होती है उसे ही यह अति-दुर्लभ छुआरा प्राप्त होता है। नवरात्रि की नवमी पर इस छुआरे की विधिवत् पूजा-अर्चना करने से मां  कामाख्या की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
सम्पर्क: [email protected]

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या हम छोड़ सकते हैं दशहरे पर अपनी कोई एक बुराई