Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल सप्तमी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-छठ पारणा, सहस्रार्जुन जयंती
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

Brahmacharini ki katha: नवदुर्गा नवरात्रि की द्वितीय देवी मां ब्रह्मचारिणी की कथा कहानी

हमें फॉलो करें Brahmacharini  ki katha

WD Feature Desk

, मंगलवार, 9 अप्रैल 2024 (15:26 IST)
Brahmacharini ki katha: चैत्र या शारदीय नवरात्रि यानी नवदुर्गा में 9 दिनों में 9 दुर्गा के 9 रूपों की पूजा होती है। माता दुर्गा के 9 स्वरूपों में दूसरे दिन द्वितीया की देवी है माता ब्रह्मचारिणी। नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी का पूजन किया जाता है। मां दुर्गा को दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजा जाता है। इसके बाद उनकी पौराणिक कथा या कहानी पढ़ी या सुनी जाती है। आओ जानते हैं माता ब्रह्मचारिणी की पावन कथा क्या है।
देवी का स्वरूप : देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
 
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
 
Brahmcharini ki Katha: ब्रह्मचारिणी की पावन कथा 
  • देवी ब्रह्मचारिणी की कथा के अनुसार पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी।
  • इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। 
  • एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
  • कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे।
  • तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। 
  • इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। 
  • कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
  • कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया।
  • देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- 
  • हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। 
  • तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे।
  • अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।
  • इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। 
  • मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Gangaur Puja 2024: गणगौर पूजा के खास 5 गीत