Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(सूर्य धनु संक्रांति)
  • तिथि- पौष कृष्ण एकम
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत/मुहूर्त- सूर्य धनु संक्रांति, खरमास प्रारंभ
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

Navratri Saptami devi maa Kalratri: शारदीय नवरात्रि की सप्तमी की देवी कालरात्रि की पूजा विधि, मंत्र, आरती, कथा और शुभ मुहूर्त

Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है, जानें मां का स्वरूप और कथा

हमें फॉलो करें Navratri Saptami devi maa Kalratri: शारदीय नवरात्रि की सप्तमी की देवी कालरात्रि की पूजा विधि, मंत्र, आरती, कथा और शुभ मुहूर्त

WD Feature Desk

, मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024 (18:05 IST)
Maa Kalratri Puja Vidhi In Hindi: चैत्र या शारदीय नवरात्रि यानी नवदुर्गा में सातवें दिन सप्तमी की देवी मां कालरात्रि का पूजन किया जाता है। इसके बाद उनकी पौराणिक कथा या कहानी पढ़ी या सुनी जाती है। आओ जानते हैं माता कालरात्रि की पावन कथा, पूजा, आरती, मंत्र सहित सभी कुछ।
 
  • सप्तमी देवी कालरात्रि की पूजा विधि और भोग
  • सप्तमी देवी कालरात्रि का बीज मंत्र और आरती
  • सप्तमी देवी कालरात्रि की पौराणिक कथा
 
10 अक्टूबर 2024 शारदीय नवरात्रि सातवें दिन की देवी कालरात्रि की पूजा का शुभ मुहूर्त:
प्रात: पूजा का मुहूर्त- प्रात: 04:40 से 06:19 के बीच।
दोपर की पूजा का मुहूर्त: दोपहर 11:44 से 12:31 के बीच।
शाम की पूजा का मुहूर्त : शाम 05:56 से 07:11 के बीच।
 
मां कालरात्रि का स्वरूप : जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है। इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं अर्थात् इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है। 
 
मां कालरात्रि  मंत्र- 
मंत्र- 'ॐ कालरात्र्यै नम:।'
या देवी सर्वभू‍तेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
 
मां कालरात्रि देवी का प्रसाद/ भोग-  नवरात्रि में सातवें नवरात्रि पर मां कालरात्रि को गुड़ का नैवेद्य चढ़ाने व उसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है एवं आकस्मिक आने वाले संकटों से रक्षा भी होती है। अत: इस दिन गुड़ का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान अवश्य करें।
 
शारदीय नवरात्रि में कालरात्रि माता की पूजा विधि:-
- नवरात्रि की सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि के पूजन के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। 
- अब रोली, अक्षत, दीप, धूप अर्पित करें। 
- मां कालरात्रि को रातरानी का फूल चढाएं।
- गुड़ का भोग अर्पित करें। 
- मां की आरती करें। 
- इसके साथ ही दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा तथा मंत्र जपें। 
- इस दिन लाल कंबल के आसन तथा लाला चंदन की माला से मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें। 
- अगर लाला चंदन की माला उपलब्ध न हो तो रूद्राक्ष की माला का उपयोग कर सकते हैं। 
 
मां कालरात्रि की आरती:-
कालरात्रि जय जय महाकाली
काल के मुंह से बचाने वाली
दुष्ट संहारिणी नाम तुम्हारा
महा चंडी तेरा अवतारा
पृथ्वी और आकाश पर सारा
महाकाली है तेरा पसारा
खंडा खप्पर रखने वाली
दुष्टों का लहू चखने वाली
कलकत्ता स्थान तुम्हारा
सब जगह देखूं तेरा नजारा
सभी देवता सब नर नारी
गावे स्तुति सभी तुम्हारी
रक्तदंता और अन्नपूर्णा
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी
ना कोई गम ना संकट भारी
उस पर कभी कष्ट ना आवे
महाकाली मां जिसे बचावे
तू भी 'भक्त' प्रेम से कह
कालरात्रि मां तेरी जय।
 
नवरात्रि की सप्तमी की देवी मां कालरात्रि की पौराणिक कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज नामक राक्षस ने देववा और मनुष्य सभी त्रस्त थे। रक्तबीज राक्षस की विशेषता यह थी कि जैसे ही उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरती तो उसके जैसा एक और राक्षस पैदा हो जाता था। इस राक्षस से परेशान होकर समस्या का हल जानने सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव को पता था कि इसका वध अंत में देव पार्वती ही करेंगी। भगवान शिव ने माता से अनुरोध किया। इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति व तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस रूप में मां पार्वती कालरात्रि कहलाई।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Dussehra 2024 date: दशहरा कब है, क्या है रावण दहन, शस्त्र पूजा और शमी पूजा का शुभ मुहूर्त?