नवरात्रि में महानवमी का विशेष महत्व है। नौंवे दिन यानि नवमी तिथि को मां के सिद्धीदात्री का पूजन और आराधना की जाती है। मां का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाला है।
देवी पुराण के अनुसार इन्हीं सिद्धियों को महादेव ने देवी से प्राप्त किया था, जिससे उनका आधा शरीर देवी का हुआ और वे अर्धनारीश्वर कहलाए थे। भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र व कवच का पाठ करने से 'निर्वाण चक्र' जाग्रत हो जाता है। जानिए मां सिद्धीदात्री की आराधना हेतु ध्यान, स्तोत्र, कवच मंत्र...
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम दुर्गा त्रिनेत्राम।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम॥
पटाम्बर,परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम॥
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स्तोत्र पाठ
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
कवच
ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥