माता वैष्णोदेवी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। उसमें से यह एक प्रामाणिक कहानी है। एक प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गांव में माता का भंडारा रखा और सभी गांव वालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया।
पहली बार तो गांव वालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भंडारा करा रहा है। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए मां वैष्णोदेवी कन्या का रूप धारण करके भंडारे में आईं। श्रीधर ने भैरवनाथ को भी अपने शिष्यों के साथ आमंत्रित किया था। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की, तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई।
भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्यारूपी माता वैष्णोदेवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक न मानी। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहां से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णोदेवी ने एक गुफा में 9 माह तक तपस्या की।
इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने पहरा दिया। इस पवित्र गुफा को 'अर्धक्वांरी' के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वांरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। गुफा से बाहर निकलकर कन्या ने मां वैष्णोदेवी का रूप धारण किया और भैरवनाथ को चेतावनी देकर वापस जाने को कहा। फिर भी भैरवनाथ नहीं माना। माता गुफा के भीतर चली गई। तब माता की रक्षा के लिए हनुमान जी ने गुफा के बाहर भैरवनाथ से युद्ध किया।
भैरवनाथ ने फिर भी हार नहीं मानी, पर जब वीर हनुमान निढा़ल होने लगे, तब माता वैष्णोदेवी ने महाकाली का रूप धारण कर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैरवनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर मां वैष्णोदेवी ने भैरवनाथ का वध किया था वह स्थान 'पवित्र गुफा' अथवा 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर दाएं में मां काली, मध्य में मां सरस्वती और बाएं में मां लक्ष्मी पिंडी के रूप में गुफा में विराजित हैं। इन तीनों के सम्मिलत रूप को ही मां वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
कहते हैं कि उस वक्त हनुमानजी मां की रक्षा के लिए मां वैष्णोदेवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियां दूर हो जाती हैं। त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित मां वैष्णोदेवी का स्थान हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जहां दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आते हैं।