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'मेक इन चाइना' की तर्ज पर ‘मेक इन इंडिया’

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भारत के निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'मेक इन इंडिया' पहल की शुरुआत 25 सितंबर, 2014 को नई दिल्ली से की थी। राजधानी के विज्ञान भवन में मौजूद शीर्ष ग्लोबल सीईओज सहित विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि 'एफडीआई' को 'प्रत्यक्ष विदेशी निवेश' के साथ 'फर्स्ट डेवलप इंडिया' के रूप में समझा जाना चाहिए। उन्होंने निवेशकों से आग्रह किया कि वे भारत को सिर्फ बाजार के रूप में न देखें बल्कि इसे एक अवसर समझें।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़नी चाहिए क्योंकि इससे मांग बढ़ेगी और निवेशकों को फायदा मिलने के साथ-साथ विकास को बढ़ावा मिलेगा। लोगों को जितनी तेजी से गरीबी से बाहर निकालकर मध्यम वर्ग में लाया जाएगा, वैश्विक व्यवसाय के लिए उतने ही अधिक अवसर खुलेंगे। उन्होंने कहा कि इसलिए विदेशों से निवेशकों को नौकरियां सृजित करनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि सस्ते निर्माण और उदार खरीददार- जिसके पास क्रयशक्ति हो- दोनों की ही जरूरत है। उन्होंने कहा कि अधिक रोजगार का अर्थ है अधिक क्रयशक्ति का होना।
 
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां लोकतंत्र, जनसंख्या और मांग का अनोखा मिश्रण है। उन्होंने कहा कि नई सरकार कौशल विकास के लिए पहल कर रही है ताकि निर्माण के लिए कुशल जनशक्ति सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने डिजीटल इंडिया मिशन का जिक्र करते हुए कहा कि इससे सुनिश्चित होगा कि सरकारी प्रक्रिया कॉर्पोरेट की प्रक्रिया के अनुकूल रहे।
 
प्रधानमंत्री ने दस्तावेजों का स्व-प्रमाणीकरण करने की सरकार की नई पहल का उदाहरण दिया और कहा कि यह इस बात को स्पष्ट करता है कि नई सरकार को अपने नागरिकों पर कितना विश्वास है। उन्होंने कहा कि विकास और विकासोन्मुख रोजगार सरकार की जिम्मेदारी है। मोदी ने कहा कि भारत में व्यवसाय करना कठिन माना जाता था। उन्होंने इस संबंध में सरकारी अधिकारियों को संवेदनशील बनाया। उन्होंने ‘प्रभावकारी’ शासन की जरूरत पर बल दिया।
 
'लुक ईस्ट' अभिव्यक्ति के साथ प्रधानमंत्री ने 'लिंक वेस्ट' को जोड़ा। उन्होंने कहा कि एक वैश्विक दूरदर्शिता आवश्यक है। उन्होंने कहा स्वच्छ भारत और 'कचरे से सम्पन्नता' मिशन अच्छी आमदनी और बिजनस का जरिया बन सकते हैं। उन्होंने सार्वजनिक निजी भागीदारी के जारिए भारत के 500 शहरों में बेकार पानी के प्रबंधन और ठोस कचरा प्रबंधन के बारे में अपने विजन का जिक्र किया।
 
प्रधानमंत्री ने राजमार्गों के अलावा आई-वेज सहित भविष्य के बुनियादी ढांचे की चर्चा की और बंदरगाह प्रमुख विकास, ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क, गैस ग्रिड और जल ग्रिडों का जिक्र किया। लेकिन ‘मेक इन इंडिया’ पहल वास्‍तव में आर्थिक विवेक, प्रशासनिक सुधार के न्‍यायसंगत मिश्रण के रूप में देखी जाती है। इस प्रकार यह पहल जनता जनादेश के आह्वान- ‘एक आकांक्षी भारत’ का समर्थन करती है।
अगले पन्ने पर, मेक इन इंडिया के लक्ष्य...
 
 

पहल के तहत हासिल जाने वाले लक्ष्‍य
 
-मध्‍यावधि की तुलना में विनिर्माण क्षेत्र में 12-14 प्रतिशत प्रतिवर्ष वृद्धि करने का लक्ष्‍य।
-देश के सकल घरेलू उत्‍पाद में विनिर्माण की हिस्‍सेदारी 2022 तक बढ़ाकर 16 से 25 प्रतिशत करना।
-विनिर्माण क्षेत्र में 2022 तक 10 करोड़ अतिरिक्‍त रोजगार सृजित करना।
-ग्रामीण प्रवासियों और शहरी गरीब लोगों में समग्र विकास के लिए समुचित कौशल का निर्माण करना।
-घरेलू मूल्‍य संवर्द्धन और विनिर्माण में तकनीकी ज्ञान में वृद्धि करना।
-भारतीय विनिर्माण क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्‍पर्धा में वृद्धि करना।
-भारतीय विशेष रूप से पर्यावरण के संबंध में विकास की स्थिरता सुनिश्चित करना।
 
भारत के सकारात्मक पक्ष
 
-भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में अपनी हाजिरी दर्ज करा चुका है।
-यह देश दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्‍यवस्‍थाओं में शामिल होने वाला है और उम्‍मीद की जाती है कि वर्ष 2020 तक यह दुनिया की सबसे बड़ा उत्‍पादक देश बन जाएगा।
-अगले दो तीन दशकों तक यहां की जनसंख्‍या वृद्धि उद्योगों के अनुकूल रहेगी। जनशक्ति काम करने के लिए बराबर उपलब्‍ध रहेगी।
-अन्‍य देशों के मुकाबले यहां जनशक्ति पर कम लागत आती है।
-यहां के व्‍यावसायिक घराने उत्‍तरदायित्‍वपूर्ण ढंग से, भरोसेमंद तरीकों से और व्‍यावसायिक रूप से काम करते हैं।
-घरेलू बाजार में यहां उपभोक्‍तावाद की हवा चल रही है।
-इस देश में तकनीकी और इंजीनियरिंग क्षमताएं मौजूद है और उनके पीछे वैज्ञानिक और तकनीकी संस्‍थानों का हाथ है।
-विदेशी निवेशकों के लिए बाजार खुला हुआ है और यह काफी अच्‍छी तरह से  विनियमित है।
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जनशक्ति प्रशिक्षण : कोई भी उत्‍पादन क्षेत्र बिना कुशल जनशक्ति के सफल नहीं हो सकता। इसी सिलसिले में यह संतोषजनक बात है कि सरकार ने कौशल विकास के लिए नए उपाय किए हैं। इनमें से निश्‍चय ही गांवों से रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन रुकेगा और शहरी गरीबों का अधिक समावेशी विकास हो सकेगा। यह उत्‍पादन क्षेत्र को मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्‍वपूर्ण कदम होगा।
 
नए मंत्रालय – कौशल विकास और उद्यमियता- ने राष्‍ट्रीय कौशल विकास पर राष्‍ट्रीय नीति में संशोधन शुरू कर दिया है। मोदी सरकार ने ग्राम विकास मंत्रालय के तहत एक नया कार्यक्रम शुरू कर दिया है। इस कार्यक्रम का नाम भाजपा के नेता स्व. पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय के नाम पर रखा गया है। नए प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत देशभर में 1500 से 2000 तक प्रशिक्षण केन्‍द्र खोले जाने का कार्यक्रम है। इस सारी परियोजना पर 2000 करोड़ रुपए खर्च आने का अनुमान है। यहां सार्वजनिक-निजी भागीदारी प्रारूप में संचालित की जाएगी।
 
नए प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत युवा वर्ग को उन कौशलों में प्रशिक्षित किया जाएगा, जिनकी विदेशों में मांग है। जिन देशों को नजर में रखकर यह कार्यक्रम बनाया गया है, उनमें स्‍पेन, अमेरिका, जापान, रूस, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन और पश्चिम एशिया शामिल हैं। सरकार ने हर साल लगभग तीन लाख लोगों को प्रशिक्षित करने का प्रस्‍ताव किया है और इस प्रकार से वर्ष 2017 के आखिर तक 10 लाख ग्रामीण युवाओं को लाभान्वित करने का कार्यक्रम बनाया गया है।
 
अन्‍य जो उपाय किए जाने हैं उनमें मूल सुविधाओं और खासतौर से सड़कों और बिजली का विकास करना शामिल है। लंबे समय तक बहुराष्‍ट्रीय कंपनियां और सॉफ्टवेयर कंपनियां भारत में इसलिए काम करना पसंद करती थी, क्‍योंकि यहां एक विस्‍तृत बाजार और नागरिकों की खरीद क्षमता है। इसके अलावा इस देश में उत्‍पादन सुविधाएं  भी मौजूद हैं। 
 
सरकार दिल्‍ली और मुम्‍बई के बीच एक औद्योगिक गलियारा विकसित करने की कोशिशें  कर रही है। सरकार बहुपक्षीय नीतियों पर काम कर रही है। इनमें मुख्‍य संयंत्रों और मूल सुविधाओं के विकास में सम्‍पर्क स्‍थापित करने और पानी की सप्‍लाई सुनिश्चित करने, उच्‍च क्षमता की परिवहन सुविधा विकसित करने का काम शामिल है। इन क्षेत्रों में काम करते हुए सरकार ने पांच सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। 
 
सार्वजनिक क्षेत्र के 11 निगम ऐसे हैं, जिनके बारे में सरकार का विचार है कि छह निगमों को बंद कर दिए जाने की जरूरत है। 1000 करोड़ रुपए की लागत पर इन निगमों के कर्मचारियों के लिए स्‍वैच्छिक सेवानिव़ृत्ति योजना लाई जा रही है। यह एक बारगी समझौता होगा।
 
सरकार द्वारा संचालित जिन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को फिर से काम लायक बनाने का फैसला किया गया है। उनमें एचएमटी मशीन टूल्‍स लिमिटेड, हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन, नेपा लिमिटेड, नगालैंड पेपर एंड पल्‍प कंपनी लिमिटेड और त्रिवेणी स्‍ट्रक्‍चरल्स शामिल हैं।
 
'मेक इन इंडिया' भारत सरकार का अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का प्रयास है। देश-विदेश में एक साथ लॉन्च किए गए इस महत्वाकांक्षी अभियान में 30 देशों ने हिस्सा लिया था। मेक इन इंडिया अभियान का ‘लोगो’ एक खूबसूरत शेर है जो अशोक चक्र से प्रेरित है और भारत की हर क्षेत्र में सफलता दर्शाता है। 
 
दृष्टिकोण
 
वर्तमान में देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का योगदान 15 प्रतिशत है। मेक इन इंडिया अभियान का लक्ष्य एशिया के अन्य विकासशील देशों की तरह इस योगदान को बढ़ाकर 25 प्रतिशत करना है। इस प्रक्रिया में सरकार को उम्मीद है कि ज्यादा से ज्यादा रोजगार उत्पन्न होगा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित होगा और भारत को विनिर्माण केंद्र में तब्दील किया जा सकेगा। मेक इन इंडिया को बेहतर बनाने के लिए ‘डिजिटल इंडिया’ को भी मजबूत करने की भी योजना है। इस अभियान की सफलता रोजगार पैदा करने और गरीबी हटाने की रणनीति के साथ अंतःसंबंद्ध है।
 
उद्देश्य
 
-किसी भी उद्योग को भारत छोड़कर जाने के लिए मजबूर न होना पड़े। साथ ही भारतीय कंपनियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरह विकास करें। भारत से बाहर जा रहे ज्यादातर उद्यमियों को रोकने के लिए भारत के प्रमुख क्षेत्रों में निर्माण व्यवसायों को पुनर्जीवित करना।
-दुनियाभर में व्यापार के अनुकूल माहौल के मामले में भारत का स्थान 135वां है, परन्तु नियमों में खुलापन के माध्यम से भारत को 50वें स्थान पर पहुंचाना।
-भारत में कुशल और सक्षम श्रमशक्ति का विकास करना। कौशल विकास के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल अपनाना।
-उत्पादों को कॉस्ट-इफेक्टिव बनाने के लिए 'हाईवे' (बुनियादी ढांचा विकास) के साथ-साथ 'आई-वे' (सूचना प्रौद्योगिकी) को समायोजित करना।
-सरकार, उद्योगपतियों, शिक्षाविदों और नौजवानों की सोच में एकरूपता लाना, जिससे प्रभावी सुशासन सुनिश्चित हो सके।  
-भारत के गतिशील लोकतंत्र, जनांकिकीय लाभ (युवा आबादी) और बड़े बाजार का लाभ उठाना। देश में उपलब्ध मानव संसाधन और एक अरब डॉलर से अधिक का उपभोक्ता बाजार इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
अगले पन्ने पर, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने पर निगाहें... 
 
 

प्राप्त करने योग्य लक्ष्य
 
-विनिर्माण क्षेत्र में 12-14 प्रतिशत प्रतिवर्ष वृद्धि करने का लक्ष्‍य।
-देश के सकल घरेलू उत्‍पाद में विनिर्माण की हिस्‍सेदारी 2022 तक बढ़ाकर 16 से 25 प्रतिशत करना।
-विनिर्माण क्षेत्र में 2022 तक 10 करोड़ अतिरिक्‍त रोजगार सृजित करना।
-ग्रामीण प्रवासियों और शहरी गरीब लोगों में समग्र विकास के लिए समुचित कौशल का निर्माण करना।
-घरेलू मूल्‍य संवर्द्धन और विनिर्माण में तकनीकी ज्ञान में वृद्धि करना।
-भारतीय विनिर्माण क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्‍पर्धा में वृद्धि करना।
-भारतीय विशेष रूप से पर्यावरण के संबंध में विकास की स्थिरता सुनिश्चित करना।
 
प्राथमिकता वाले 25 क्षेत्र
 
मेक इन इंडिया अभियान के लिए सरकार ने प्राथमिकता वाले 25 क्षेत्र चिन्हित किए हैं, जिन्हें प्रोत्साहन दिया जाएगा। इन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और रोजगार की संभावना सबसे अधिक है। भारत सरकार द्वारा भी इन क्षेत्रों में निवेश को बढ़ाया जाएगा। अभियान के शुभारंभ के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इन क्षेत्रों में विकास से पूरी दुनिया आसानी से एशिया, खासकर भारत में आ सकती है। विशेषकर भारत क्योंकि यहां की लोकतांत्रिक स्थितियां और विनिर्माण की श्रेष्ठता इसे निवेश का सबसे अच्छा स्थान बनाती हैं।  ये हैं 25 क्षेत्र- 
ऑटोमोबाइल।  फूड प्रोसेसिंग। अक्षय ऊर्जा। आईटी और बीपीएम। सड़क और राजमार्ग। एविएशन (विमानन)। चमड़ा। अंतरिक्ष। जैव प्रौद्योगिकी। 
मीडिया और मनोरंजन। कपड़ा और वस्त्र। रसायन। खनन।  थर्मल पावर। निर्माण। तेल और गैस। पर्यटन और हॉस्पिटेलिटी। रक्षा विनिर्माण। फार्मास्यूटिकल्स। कल्याण। इलेक्ट्रिकल मशीनरी। बंदरगाह। रेलवे
 
अभियान की सफलता के कारक तत्व- 
 
-यह देश दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्‍यवस्‍थाओं में शामिल होने वाला है और उम्‍मीद की जाती है कि वर्ष 2020 तक यह दुनिया की सबसे बड़ा उत्‍पादक देश बन जाएगा।
-अगले दो तीन दशकों तक यहां की जनसंख्‍या वृद्धि उद्योगों के अनुकूल रहेगी। अन्‍य देशों के मुकाबले यहां जनशक्ति पर कम लागत आती है।
-यहां के व्‍यावसायिक घराने उत्‍तरदायित्‍वपूर्ण ढंग से, भरोसेमंद तरीकों से और व्‍यावसायिक रूप से काम करते हैं।
-उपभोक्तावादी प्रवृति और बङा घरेलू बाजार।
-देश में उपलब्ध तकनीकी और इंजीनियरिंग क्षमताएं ।
-विदेशी निवेशकों के लिए खुला बाजार ।
-सार्वजनिक-निजी भागीदारी से संचालित पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय योजना के तहत नए प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत देशभर में 1500 से 2000 तक प्रशिक्षण केन्‍द्र खोले जाने का कार्यक्रम है। इस परियोजना पर 2000 करोड़ रुपए खर्च आने का अनुमान है। सरकार ने हर साल लगभग तीन लाख लोगों को प्रशिक्षित करने का प्रस्‍ताव किया है और इस प्रकार से वर्ष 2017 के आखिर तक 10 लाख ग्रामीण युवाओं को लाभान्वित करने का कार्यक्रम बनाया गया है।
-जिला औद्योगिक केंद्र को विकसित करने की सरकार की योजना है।
-बैंकों और दूसरे स्रोतों से एमएसएमई सेक्टर को पूंजी प्रदान करने के लिए शुरुआत में 500 मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर को जोड़ने की योजना है। इसके तहत इन क्लस्टर को बैंकों को ज्यादा से ज्यादा कर्ज देने पर फोकस रहेगा।
अगले पन्ने पर, ये हैं बाधाएं... 
 
 

'मेक इन इंडिया' की बाधाएं 
 
-कानून में सुधार की जरूरत क्योंकि देश का श्रम कानून ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के लिए सहायक नहीं हैं।
-वस्तु एवं सेवा कर लागू करना ताकि साझा बाजार विकसित किसा जा सके।
-लाइसेंसिंग भूमि अधिग्रहण नीति।
-‘आसान व्यापार करने के सूचकांक’ में भारत का स्थान बहुत नीचे है।
-भारत का खराब बुनियादी ढ़ांचा और खराब संचालन व्यवस्था।
-सरकारों का नौकरशाही नजरिया, मजबूत परिवहन की कमी और बड़े पैमाने पर फैला भ्रष्टाचार।
-चीन के ‘मेक इन चाईना’ अभियान से प्रतिस्पर्धा क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र में अभी भी चीन का वर्चस्व है।
 
इंफ्रास्ट्रक्चर (बुनियादी ढांचा)
 
मेक इन इंडिया के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा भारत में रेल-सड़क यातायात और अपर्याप्त बंदरगाह हैं। अगर भारत में निर्माण इकाइयां स्थापित की जाती हैं, तो उत्पाद को गंतव्य तक पहुंचाने के लिए जरूरी ट्रांसपोर्ट सुविधा का इंतजाम करना जरूरी होगा।
 
भारत का एक बड़ा हिस्सा ऊर्जा की कमी से जूझ रहा है। निवेशकों के लिए यह भी चिंता का विषय हो सकता है। 
 
राज्य-केंद्र समन्वय :  एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका जाते हैं तो वहीं बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम माझी निवेशकों को लुभाने के लिए लंदन जा पहुंचते हैं। स्पष्ट है कि सभी राज्य निवेश चाहते हैं। लेकिन निवेश के रास्ते में एक बड़ी समस्या राज्यों और केंद्र की नीतियों की जटिलता है।  हालांकि समन्वय के इस काम में पीएमओ और केंद्र सरकार के अन्य विभाग निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
 
भ्रष्टाचार :  यूपीए सरकार का दूसरा कार्यकाल घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों के साए में बीता। इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचा। पुराने और नए निवेशकों का विश्वास कमाना मोदी सरकार के आगे एक बड़ी चुनौती होगी।
 
लाल-फीताशाही :  भ्रष्टाचार के अलावा भारत के सरकारी दफ्तरों की दूसरी सबसे बड़ी समस्या लाल फीताशाही है। ‘मेक इन इंडिया’ निवेशक जटिल प्रक्रियाओं के जाल में फंसकर अपना समय गंवाना पसंद नहीं करेंगे। लिहाज़ा सरकार को ऐसी आसान व्यवस्थाएं बनानी होंगी और सिंगल विंडो सिस्टम्स पर ज़ोर देना होगा।
 
टैक्स व्यवस्था :  भारत में पिछले कई वर्षों से टैक्स व्यवस्था में सुधार की मांग की जा रही है। अब तक टेलिकॉम से लेकर कई अन्य क्षेत्र की कंपनियां टैक्स संबंधी मामलों के सिलसिले में भारतीय अदालतों के चक्कर काट चुकी हैं। ऐसे में आसान और पारदर्शी टैक्स व्यवस्था की जरूरत महसूस होती है।
अगले पन्ने पर, यह है वास्तविकता...
 
 

'मेक इन इंडि‍या' और चीन का ‘मेक इन चाइना’ :  अपनी 'मेक इन इंडि‍या' मुहिम के सिलसिले में प्रधानमंत्री मोदी ने चीन की कंपनि‍यों को यह बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि‍ भारत कारोबार करने के लि‍हाज से बेहतर स्‍थि‍ति‍ में पहुंच रहा है। लेकि‍न वास्तविकता क्या है? वर्ल्‍ड बैंक के ईज ऑफ डूइंग बि‍जनेस इंडेक्‍स में भारत का पायदान 142वां और चीन का 90वां है। इस इंडेक्‍स से यह भी पता चलता है कि‍ कारोबार शुरू करने से लेकर जमीन लेने, इलेक्‍ट्रि‍सि‍टी मि‍लने, कर का भुगतान करने, कॉन्‍ट्रैक्‍ट हासि‍ल करने के मामले में चीन भारत से कहीं आगे है। 
 
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है आखि‍र क्‍यों चीन की कंपनि‍यां भारत आएंगी और मोदी इस बार चीन से क्‍या सीख कर आएंगे? वैसे भी गुजरात के मुख्‍यमंत्री के तौर पर मोदी चीन की चार बार यात्रा कर चुके हैं। यही वजह है कि‍ गुजरात में चीन की कंपनि‍यों का नि‍वेश ज्‍यादा है।
 
कारोबार शुरू करने के मामले चीन बेहतर :  ईज ऑफ डूइंग बि‍जनेस इंडेक्‍स के मुताबि‍क, कारोबार शुरू करने के मामले में भारत का स्‍थान दुनि‍या में 158वां है, जबकि‍ चीन 128वें पायदान पर खड़ा है। चीन में इसके लि‍ए 11 प्रक्रि‍याओं को पूरा करना करना पड़ता है। वहीं, भारत में यह आंकड़ा 11.9 है। भारत में कारोबार शुरू करने की लागत (आय के हि‍साब से‍ पूंजी) 12.2 फीसदी है, जबकि‍ चीन में यह आंकड़ा 0.9 फीसदी का है।
 
भारत में प्रॉपर्टी रजि‍स्‍ट्रेशन में लगता है वक्‍त :  इस मामले में भारत की रैंकिंग 121 है, जबकि‍ चीन 37वें पायदान पर है। भारत में प्रॉपर्टी रजि‍स्‍ट्रेशन कराने में 7 प्रक्रि‍याओं से गुजरना पड़ता है, लेकि‍न चीन में ये प्रक्रि‍याएं केवल 4 हैं। भारत में रजि‍स्‍ट्रेशन कराने में 47 दि‍न लग जाते हैं, वहीं चीन में यह काम 19 में ही हो जाता है।
 
चीन में तेजी से शुरू होता है प्रोजेक्‍ट  : प्रोजेक्‍ट शुरू करने के मामले में चीन का स्‍थान 35वां है, जबकि‍ भारत 186वें पायदान पर है। इसके लि‍ए भारत में 1,420 दि‍न का वक्‍त लगता है, वहीं चीन में 452 दि‍न में यह काम हो जाता है।
 
एक नजर ईज ऑफ डूइंग इंडेक्‍स पर
सेक्‍शन          भारत (रैंकिंग)  चीन (रैंकिंग)
कारोबार शुरू करना  158  128
कंस्‍ट्रक्‍शन परमि‍ट  184  179
रजि‍स्‍टर प्रॉपर्टी  121  37
दि‍वालि‍या कंपनि‍यों के 
मामले सुलझाना   137  53
प्रोजेक्‍ट शुरू करना  186  35
टैक्‍स का भुगतान करना  156  120
 
इंजीनि‍यरिंग और ऑटोमोबाइल सेक्‍टर की 39 भारतीय कंपनि‍यां चीन में कारोबार कर रही हैं। इसमें बड़ी कंपनि‍यों के अलावा कई छोटी-छोटी कंपनि‍यों ने भी नि‍वेश कि‍या है। चीन के यांगचेन में महिंद्रा एंड महिंद्रा की ट्रैक्टर बनाने की फैक्‍ट्री है। महिन्द्रा ट्रैक्टर के लिए ये फैसला बड़ा था, लेकिन आज चीन में महिंद्रा की गिनती ट्रैक्टर बनाने वाली बड़ी कंपनियों में होती है।
 
एम एंड एम एक बड़ी कंपनी है, लेकिन कई छोटे निवेशक भी हैं जिन्होंने भारत की बजाए चीन में फैक्‍ट्री लगाने का फैसला किया है। इन्ही में जियांगसु में फैक्टरी लगाने वाले जयकिशन भगवानी भी हैं। भगवानी के मुताबि‍क, चीन-भारत दोनों जगह एक समान काम किया भारत एक साल धीमा था तो चीन तेज। प्रोडक्ट डिलीवरी चीन की अच्छी थी और इंडिया ज्यादा बिजनेस फ्रेंडली भी नहीं था।
 
चीन की सरकार भी कारोबार हितैषी :  किसी नि‍वेशक को अगर चीन में जाना है तो उसे जाकर किसी को खोजना नहीं होता क्योंकि चीन में कुछ सरकारी वि‍भाग ऐसे हैं जो निवेशकों को अपने आप तलाशते हैं। उन्‍हें आमंत्रि‍त करते हैं, लगातार उनके साथ संपर्क करते हैं जि‍ससे कारोबारि‍यों को काफी सहूलि‍यत महसूस होती है।
 
चीन में वि‍शालकाय एसईजेड :  चीन के एसईजेड में जमीन अधिग्रहण की समस्या नहीं है जबकि भारत के ज्यादतर एसईजेड के लिए जमीन अधिग्रहण ही एक बड़ा मुद्दा है। चीन के एसईजेड काफी बड़े हैं। चीन के शेंजेन शहर में स्पेशल इकोनॉमि‍क जोन्स, जहां इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाए जाते हैं, वह 49,500 हेक्टेयर में फैला है। चीन का कोई भी स्पेशल इकोनॉमिक जोन 30,000 हेक्टेयर से छोटा नहीं है जबकि भारत में सिर्फ 10 हेक्टेयर जमीन को भी एसईजेड बना दिया गया।
 
स्पेशल इकोनॉमि‍क जोन के बाद चीन ने अपने राज्यों में स्पेशल डेवलपमेंट जोन भी बनाए हैं। एक डेवलपमेंट जोन में एक तरह के उत्पाद बनाने वाली फैक्ट्रियां होती हैं। इसलिए चीन का एक राज्य सिर्फ खिलौने बनाने के लिए मशहूर है तो एक होजियरी उत्पादन में अग्रणी है। अब हम अंदाजा लगा सकते हैं कि चीन के 'मेक इन चाइना' की तुलना में हमारा 'मेक इन इंडिया' कहां है?   
 
एक चीनी मंत्री पहले ही सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि वह मेक इन इंडिया और मेक इन चाइना का विलय चाहते हैं? लेकिन भारत का शुरुआती उत्साह अब मंद पड़ता दिख रहा है। शायद उसे लग रहा है कि चीन के प्रस्ताव के पीछे कोई छिपा हुआ एजेंडा है? लेकिन इसका असली कारण है भारत के बारे में चीनियों का ज्ञान। 
 
भारत के बारे में चीन का ज्ञान : चीन ने पहली बार कुछ साल पहले चाइना डेवलपमेंट बैंक (सीडीबी) ने क़रीब 10 अरब डॉलर का लोन रिलायंस कम्यूनिकेशन को दिया था। उसके बाद इस बैंक ने कई भारतीय कंपनियों को लोन दिया। बैंकर किसी देश की खूबी और खामी को बहुत बारीकी से समझते हैं। वे कारोबारी खाता-बही के अंदर भी झांक लेते हैं। उन्हें पता होता है कि किस राजनीतिक निर्णय का किसी कंपनी की सफलता या विफलता पर क्या असर होगा।
 
सीडीबी चीन का सरकारी नियंत्रण वाला बैंक है। भारत के बारे में उसकी गहरी जानकारी का लाभ चीनी नीति निर्माताओं को सीधे मिला है और अब तो बैंक क्या बहुत सारी चीनी कंपनियां भारतीय कारोबारियों को ऐसे आकर्षक प्रस्ताव देती हैं कि भारतीय कारोबारी उन्हें मना नहीं कर पाते। इसलिए लाख टके का सवाल है कि क्या हम चीन के साथ मुकाबला करने की स्थिति में हैं? या फिर 'मेक इन ‍इंडिया' और 'मेक इन चाइना' के विलय जैसे आत्मघाती कदम का स्वागत करने को तैयार हैं? शायद इसीलिए कहा जाता है कि नकल में भी अकल की जरूरत होती है।

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