Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

'अभिशप्त' कहानी का मंचन

Advertiesment
हमें फॉलो करें अभिशप्त कहानी लंदन नेहरू सेंटर
WD
- तेजेंद्र शर्मा

9 जून 2008 की शाम तेजेन्द्र शर्मा की कहानी अभिशप्त का मंचन लंदन के नेहरू केन्द्र में आयोजित किया गया। कहानी को अपने अभिनय से सँवारा कृष्णकांत टण्डन (महेश), हिना बख़्शी (अंजु) एवं इनायत पटेल (मनोज) ने जबकि निर्देशन स्वयं तेजेन्द्र शर्मा का था।

पार्श्व में इस्तेमाल किए गए संवादों को आवाज़ दी बी.बी.सी. की ममता गुप्ता एवं निष्ठा चुघ ने। उपस्थित श्रोताओं में श्रीमती मोनिका मोहता (निदेशक - नेहरू केन्द्र), काउन्सलर, ज़किया ज़ुबैरी, कैलाश बुधवार, रिफ़त शमीम, इन्दर स्याल, सोहन राही, भानूभाई पण्डया, अतुल मोडा, निशि सिंह, दिव्या माथुर, सुरेन्द्र कुमार, किरण पुरोहित, सुरिन्दर मथारु, आशिक़ हुसैन आदि शामिल थे।

अभिशप्त कहानी है एक ऐसे नवयुवक महेश की जो अपने परिवार का जीवन स्तर ऊँचा उठाने की फ़िराक़ में अपनी प्रेमिका नेहा को पीछे छोड़ लंदन चला आता है। यहाँ उसे उसकी दूर की बहन और जीजा पूरी तरह उसका फ़ायदा उठाते हैं और दुकान का नौकर बनाकर रखते हैं।

webdunia
WD
अपने जीवन से असंतुष्ट महेश अपने से तीन वर्ष बड़ी अंजु से विवाह कर लेता है। हिन्दी मीडियम से बी.कॉम. महेश ब्रिटेन में लोडर का काम करने को मजबूर हो जाता है। उसकी पत्नी उसे घर के काम की मशीन बना देती है जिसका काम पैसा कमाना और अपनी पत्नी को शारीरिक सुख देना मात्र है।

महेश के मित्र मनोज की व्यथा दूसरी है। वह अपनी पत्नी का तीसरा पति है। उसे यही ख़्याल खाए जा रहा है। जब वह महेश को कहता है कि वह महेश से अधिक दुःखी है, तो महेश कह उठता है, ‘दोस्त चाहे कोई पाँचवीं मंजिल से नीचे गिरे या सातवीं से, चोट एक सी ही लगती है।’ कहानी के अंत में मनोज फिर कहता है, ‘महेश तुम वापस भारत नहीं जाओगे।

हाँ तुम रोज़ाना गिलास में शराब डालोगे उसमे सोडा और सोडे के बुलबुलों पर बैठकर तुम हर शाम भारत चले जाओगे। लेकिन सुबह होने तक ये बुलबुले शांत हो जाएँगे और तुम उठकर, मुँह-हाथ धोकर, ठंडा नाश्ता खाकर वापस काम पर चल दोगे। तुम यहीं रहोगे और एक दिन मर भी जाओगे। तुम्हारी वापसी संभव नहीं। तुम यह जीवन जीने के लिए अभिशप्त हो।’ कहानी के संवाद बहुत ही चुस्त और रोचक थे।

कलाकारों में तीनों अभिनेताओं ने उत्कृष्ट अभिनय का प्रदर्शन किया और चरित्रों की मानसिकता को बख़ूबी जीवित कर दिखाया। ममता गुप्ता ने पार्श्व में माँ के संवादों में जान डाल दी। कुल मिलाकर कथा यू.के. और नेहरू केन्द्र ने एक सार्थक शाम अपने श्रोताओं के नाम कर दी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi