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डेनमार्क में हुआ 'वेयर डू आई बिलांग' का विमोचन

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हमें फॉलो करें अर्चना पैन्यूली
GN

विगत 21 मई 2014 को इंटरनेशनल प्रेस सेंटर, डेनमार्क में अर्चना पैन्यूली के उपन्यास 'वेयर डू आई बिलांग' के अंग्रेजी संस्करण का विमोचन किया गया है। शैक्षिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और पत्रकारिता पृष्ठभूमि से संबंधित एक अंतरराष्ट्रीय जनसमूह कार्यक्रम में उपस्थित था। भारतीय दूतावास की भी उपस्थिति कार्यक्रम में रही। विभिन्न देशों के छह वक्ताओं ने पुस्तक पर अपने विचार प्रस्तुत किए। अन्य बहुश्रुत और मुखर आलोचकों ने भी अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत किए।

अर्चना पैन्यूली ने 'वेयर डू आई बिलांग' उपन्यास लिखने का उद्देश्य, कथावस्तु व पात्रों पर व्यापक व स्पष्ट रूप से अपना वक्तव्य दिया। सवाल-जवाब सत्र में अर्चना पैन्यूली ने प्रतिभागियों की तरफ से आए प्रश्नों का धैर्य से जवाब दिया।

उल्लेखनीय है कि 'वेयर डू आई बिलांग' उपन्यास 2010 में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा हिन्दी में प्रकाशित हुआ था। इसकी विशिष्टता यह है कि डेनिश समाज पर हिन्दी में लिखा यह प्रथम उपन्यास है।

इसके अतिरिक्त, डेनमार्क निवासी एशियाई आप्रवासियों के नजरिए से भी इसमें अनेक बिम्ब मौजूद हैं। हिन्दी में दो संस्करणों की सफल यात्रा के बाद, अब उपन्यास मार्च 2014 में रूपा प्रकाशन द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ है।

विदेशी भूमि पर बसे आप्रवासियों के संघर्षों, कामयाबियों व दुविधाओं को दर्शाता 'वेयर डू आई बिलांग' एक वैश्विक व सामाजिक उपन्यास है, जो डेनमार्क में भारतीय प्रवासियों के जीवन की एक मार्मिक कथा है।

उपन्यास एक भारतीय अप्रवासी की तीसरी पीढ़ी की युवती रीना व उसके शांडिल्य परिवार पर केंद्रित है, जो विदेश में जीवन की वास्तविकताओं से स्वयं को समा‍योजित करने के लिए सदैव प्रयासशील है।

इस अवसर पर लेखक व पत्रकार क्रिस्टन पुरेजन ने कहा कि जिस तरह संयुक्त राज्य अमेरिका में झुम्पा लाहिड़ी ने अपने उपन्यास 'इंटरप्रेटर ऑफ मेलेडीज के जरिए साहित्यिक अमेरिका का ध्यान भारतीयों की ओर आकर्षित किया, उसी तरह डेनमार्क में अर्चना पैन्यूली ने यह किया है।

इससे पहले कभी भी डेंस को कोपेनहेगन में भारतीय परिवारों के बंद दरवाजों के पीछे जाने को नहीं मिला, जो 'वेयर डू आई बिलांग' को पढ़ने के बाद मिला। यह उपन्यास विषय और भाषा दोनों के लिहाज से साहित्य का एक उत्कृष्ट नमूना है।

उपन्यास की कहानियां शुगर-कोटेड (शकर से लेपित) नहीं हैं। खुशी किसी के लिए भी सुनियोजित नहीं है, विदेशी वातावरण में रह रहे भारतीयों के लिए भी नहीं जिन्होंने विस्तारित परिवार और पारंपरिक मूल्यों की सराहना करनी कभी से बंद कर दी है।

उपन्यास की प्रशंसा करते हुए क्रिस्टन पुरेजन ने यह भी आक्षेप लगाया कि उपन्यास में प्रयुक्त कुछ डेनिस वाक्यों में त्रुटियां हैं।

प्रस्तुति : चांद शुक्ला हेदियाबादी

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