बी.बी.सी. रेडियो हिन्दी की वर्तमान अध्यक्ष डॉ. अचला शर्मा ने चुटकी लेते हुए कहा कि तेजेन्द्र की अच्छाइयों के बारे में इतना कुछ कहा जा चुका है कि वे तेजेन्द्र की किसी कमज़ोरी की तरफ़ इशारा करना चाहेंगी। उन्होंने तेजेन्द्र शर्मा के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए उनके पत्रकार रूप की चर्चा की।
तेजेन्द्र शर्मा के नवीनतम कहानी संग्रह बेघर आँखें का ज़िक्र करते हुए अचलाजी का कहना था कि तेजेन्द्र अब एक सधे हुए कथाकार हैं। क़ब्र का मुनाफ़ा, एक बार फिर होली, मुझे मार डाल बेटा, कोख का किराया, पापा की सज़ा आदि कहानियों में वे ब्रिटेन के भारतीय, पाकिस्तानी एवं गोरे चरित्रों का बख़ूबी चित्रण करते हैं। तेजेन्द्र एक सशक्त कहानीकार, नाटककार, अभिनेता और पत्रकार होने के साथ-साथ एक सफल आयोजक भी हैं जो अपने व्यक्तित्व की सहजता के कारण सभी को अपने साथ लेकर चलने की क्षमता रखते हैं।
उर्दू के मूर्धन्य विद्वान प्रोफ़ेसर अमीन मुग़ल ने तेजेन्द्र के कहानीकार रूप की बहुत गहराई से पड़ताल की, 'वह (तेजेन्द्र) आपको दुःखों की दुनिया की सैर करवाता है। सैर, जो दिल्ली के फूल वालों की सैर नहीं है बल्कि एक सफ़र है जहाँ रास्ते के हर दरीचे (खिड़की) में सलीबें गड़ी हुई हैं, पत्थरों पर चलना पड़ता है और राह में कोई कहकशाँ (आकाश गंगा) नहीं है।... तेजेन्द्र एक पैदायशी कहानीबाज़ है। बड़े रिसान से बात कहना और किरदारों की सोच के धारे के साथ बहना और पढ़ने वालों को बहा ले जाना उसका कमाल है।'
सनराइज़ रेडियो के महानायक रवि शर्मा ने अपने विशिष्ट अंदाज़ में तेजेन्द्र को एक दाई की संज्ञा दे डाली। उनका कहना था कि तेजेन्द्र स्वयं तो लिखते ही हैं बल्कि जो लोग बिलकुल भी नहीं लिखते, उन्हें लिखने को प्रेरित भी करते हैं। उन्हें दूसरे का लिखा देख प्रसन्नता महसूस होती है, जलन नहीं।
मशहूर पत्रकार, मंच कलाकार एवं निर्देशक परवेज़ आलम ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानी कैंसर का ड्रामाई अन्दाज़ में पाठ कर श्रोताओं से वाहवाही लूटी। सोनी टेलीविज़न से जुड़ी यासमीन क़ुरैशी ने कार्यक्रम का दक्ष संचालन किया।
तेजेन्द्र शर्मा की ऑडियो बुक (यानी कि बोलने वाली किताब) सी.डी. का विमोचन 81 वर्षीय नेत्रहीन हिन्दी प्रेमी श्री मदनलाल खण्डेलवाल ने किया। उनका कहना था कि एम.पी. 3 तरीके से रिकॉर्ड की गई इन कहानियों को स्वर देने वाले कलाकारों ने कहानियों को जीवन्त बना दिया है। उन्होंने ज़कीया ज़ुबैरीजी को धन्यवाद दिया कि उन जैसे लोगों के लिए कम से कम लन्दन के हिन्दी जगत में किसी ने सोचा तो। उन्होंने कहानियों को ब्रेल पद्धति में प्रकाशित करवाने का सुझाव भी दिया।
कार्यक्रम में शिरक़त कर रहीं हुमा प्राइस ने टिप्पणी की, 'जब वक्ताओं ने तेजेन्द्र के विषय में बात करनी शुरू की तो यह साफ़ ज़ाहिर होता जा रहा था कि इस इंसान को बहुत लोग प्यार करते हैं- पुरुष, महिलाएँ, हिन्दू, मुसलमान, भारतीय, पाकिस्तानी, सभी। कुछ ही समय में वातावरण में फैल गई ऊष्मा से यह ज़ाहिर होता था कि लोग अपनी भाषाई और धार्मिक भिन्नताओं से कहीं ऊपर उठकर इस एक व्यक्ति की उपलब्धियों के गीत गा रहे हैं। उनके आपसी मतभेद उन्हें तेजेन्द्र और ज़कीया पर अपना प्यार उंडेलने से नहीं रोक पाए।
तेजेन्द्र की कुछ ग़ज़लों को बहुत सुरीली और क्लासिकल बन्दिशों में प्रस्तुत किया श्री सुभाष आनन्द (एम.बी.ई. ) ने, हवा में आज जो उनसे थी मुलाक़ात हुई / तपते सहरा में जैसे प्यार की बरसात हुई (राग केदार), शमील चौहान (उपाध्यक्ष- एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स) - घर जिसने किसी ग़ैर का आबाद किया है एवं बहुत से गीत ख़्यालों में सो रहे थे मेरे... सुरेन्द्र कुमार ने। सुरेन्द्र कुमार ने एक सरप्राइज़ आइटम के तौर पर ज़कीया ज़ुबैरी का लिखा एक पुरबिया गीत (जाए बसे परदेस हो सइयाँ, दिल को लागा रोग) भी प्रस्तुत किया जिसे श्रोताओं ने बहुत सराहा।
कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त श्री माधव चन्द्रा (मंत्री - भारतीय उच्चायोग), श्री मधुप मोहता (काउंसलर- भारतीय उच्चायोग), डॉ. कृष्ण कुमार, सोहन राही, रिफ़त शमीम, हुमा प्राइस, जगदीश मित्तर कौशल, कृष्ण भाटिया, सफ़िया सिद्दीक़ी, बानो अरशद, आसिफ़ जिलानी, मोहसिना जिलानी, डॉ. नज़रुल इस्लाम बोस, अशफ़ाक अहमद, राज चोपड़ा, मन्जी पटेल वेखारिया, तनवीर अख़तर, कौसर काज़मी, इन्द्र स्याल, स्वर्ण तलवार, अनुराधा शर्मा, वेद मोहला, भारत से पधारे डॉ. जे.सी. बत्रा, और पाकिस्तान से आए सरायकी भाषा के विद्वान जनाब ताज मुहम्मद लंगा एवं सलीम अहमद ज़ुबैरी उपस्थित थे।