Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

साहिर लुधियानवी रोमांटिक कवि

- तेजेन्द्र शर्मा

Advertiesment
हमें फॉलो करें साहिर लुधियानवी
PR

'साहिर लुधियानवी मूलतः एक रोमांटिक कवि थे। प्रेम में बार-बार मिली असफलता ने उनके व्यक्तित्व पर कुछ ऐसे निशान छोड़े जिसके नीचे उनके जीवन के अन्य दुःख दब कर रह गए। अपनी प्रेमिका की झुकी आँखों के सामने बैठ साहिर उससे मासूम सवाल कर बैठते हैं- ‘प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी, तूँ बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ।' यह कहना था कथाकार एवं कथा यू.के. के अध्यक्ष तेजेन्द्र शर्मा का। अवसर था लंदन के नेहरू सेन्टर में एशियन कम्युनिटी आर्ट्स एवं कथा यू.के. द्वारा आयोजित कार्यक्रम- साहिर लुधियानवी एक रोमांटिक क्रांतिकारी।

इससे पहले बीबीसी उर्दू सेवा के रजा अली आबिदी ने साहिर लुधियानवी (मूल नाम अब्दुल हैय) के बचपन, जवानी, साहित्यिक शायरी और फिल्मी नगमों की चर्चा की। साहिर के मुंबई में बसने पर आबिदी ने कहा कि किसी शहर के रंग में रंग जाना बहुत सहज होता है मगर साहिर ने मुंबई को अपने रंग में रंग दिया। उन्होंने साहिर के गीत 'हम आप की जुल्फों में इस दिल को बसा दें तो?' (फिल्म - प्यासा) में ‘तो' शब्द की अलग से व्याख्या करते हुए कहा कि उर्दू शायरी में इस शब्द का ऐसा प्रयोग कभी इससे पहले या बाद में नहीं किया गया।

तेजेन्द्र शर्मा ने चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन, फिल्मकार मुज्जफर अली एवं संसद सदस्य वीरेन्द्र शर्मा की उपस्थिति में अपने पॉवर-पाइन्ट प्रेजेन्टेशन की शुरूआत फिल्म हम दोनों के भजन अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम से करते हुए कहा कि ईद और गणेश चतुर्थी का त्योहार हैं, तो चलिए हम अपना कार्यक्रम एक नास्तिक द्वारा लिखे गए एक भजन से करते हैं।

एशियन कम्युनिटी आर्ट्स की अध्यक्षा काउंसलर जकीया जुबैरी ने ईद के कारण कार्यक्रम में शामिल न होने पर खेद प्रकट करते हुए श्रोताओं के लिए संदेश भेजा कि जो श्रोता आज ईद मना रहे हैं उनको गणेश चतुर्थी की बधाई और जो गणेश चतुर्थी मना रहे हैं उन्हें ईद की मुबारकबाद। इस तरह जकीया जी ने कार्यक्रम की शुरूआत में ही एक सेक्युलर भावना से दर्शकों के दिलों को सराबोर कर दिया।

webdunia
PR
अपने प्रेजेन्टेशन में तेजेन्द्र शर्मा ने साहिर की एक संपूर्ण रोमांटिक कवि की छवि स्थापित करने के लिए उनके जो फिल्मी गीत और गजलें पर्दे पर दिखाए उनमें शामिल थे 'फिर न कीजे मेरी गुस्ताख निगाही का गिला (फिर सुबह होगी -1958), तुम अगर मुझ को न चाहो (दिल ही तो है - 1963), जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा (ताजमहल - 1961), चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों (गुमराह - 1963), और तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमको.. (दीदी - 1959)। साहिर ने अपने एक ही गीत में गुस्ताख निगाही और यूँ ही सी नजर जैसे विशेषणों का इस्तेमाल कर फिल्मी गीतों को साहित्यिक स्तर प्रदान किया है।

यहाँ से शुरू हुआ साहिर का क्राँतिकारी रूप और इस रूप के लिए जिन गीतों का इस्तेमाल किया गया उनमें शामिल थे चीनो अरब हमारा (फिर सुबह होगी - 1958), ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है और जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ है (प्यासा - 1957)। साहिर की विशेषता है कि वे सत्ता से सवाल भी करते हैं; हालात पर टिप्पणी भी करते हैं, और दुनिया को जला कर बदलने की बात भी करते हैं।

webdunia
PR
उन्होंने आगे बताया कि साहिर ने फिल्मों में जो भी लिखा वो अन्य फिल्मी गीतकारों के लिए एक चुनौती बन कर खड़ा हो गया। उनका लिखा हर गीत जैसे मानक बन गए। उन्होंने फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ कव्वाली न तो कारवाँ की तलाश है (बरसात की रात), सर्वश्रेष्ठ हास्य गीत सर जो तेरा चकराए (प्यासा), सर्वश्रेष्ठ देशप्रेम गीत ये देश है वीर जवानों का (नया दौर), सूफी गीत लागा चुनरी में दाग छिपाऊँ कैसे (दिल ही तो है)। यहाँ तक कि शम्मी कपूर को नई छवि देने में भी साहिर का ही हाथ था जब उन्होंने तुम सा नहीं देखा के लिए गीत लिखा 'यूँ तो हमने लाख हसीं देखे हैं..' लिखा।

कार्यक्रम की शुरूआत में नेहरू केन्द्र की निदेशक मोनिका मोहता ने अतिथियों का स्वागत किया। तेजेन्द्र शर्मा ने कथाकार महेन्द्र दवेसर, गजलकार प्राण शर्मा एवं जमशेदपुर की विजय शर्मा को धन्यवाद दिया जिन्होंने इस कार्यक्रम की तैयारी में कुछ सामग्री भेजी। इस कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त नसरीन मुन्नी कबीर, प्रो. अमीन मुगल, गजल गायक सुरेन्द्र कुमार, शिक्षाविद अरुणा अजितसरी, दिव्या माथुर एवं उच्चायोग के जितेन्द्र कुमार भी शामिल थे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi