सिंदूरी शाम कवियों के नाम
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देवी नागरानी
सत्यनारायण मंदिर, वुड साइड, न्यूयार्क में 11 नवंबर 2007 को विद्याधाम की तरफ से बहुभाषी कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। डॉ. सरिता मेहता जो विद्याधाम की निर्देशिका हैं, की बदौलत यह जनरंजन आयोजन साकार हो सका। यह सफल कवि सम्मेलन एक तरह से कविओं का गुलशन 'सिंदूरी शाम-कवियों के नाम' एक पैगाम ले आया, क्योंकि इसमें बहु-भाषी पंजाबी, बंगाली, सिंधी, अवधी और अँग्रेजी भाषा के कवियों ने भाग लिया, ज्ञान का दीपक जलाते हुए पंडित त्रिपाठी जी अपने मन में जड़े हुए काव्य प्रेम, राष्ट्र प्रेम, देश के प्रति भावनाएँ अपने तरीके से छंदों में व्यक्त करते हुए कहा कि अपने संस्कारों के रूप में, वसीयत स्वरूप जो हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार सरिता जी सत्यनारायण मंदिर में बखूबी करती रही हैं, वह उल्लेखनीय है।कवि गोष्ठी में राम बाबू गौतम, आनंद आहुजा, अशोक व्यास, अनुराधा चंदर, गुरबंस कौर गिल, पूर्णिमा देसाई, बिंदेश्वरी अग्रवाल, अनंत कौर, सुषमा मल्होत्रा, वी.के. चौधरी, मंजू राय, अनूप भार्गव, सीमा खुराना, देवी नागरानी और नीना वाही आदि कविगण उपस्िथत थे। डॉ. सरिता मेहता ने कविता के जरिए कहा कि- फैलाया है मैंने अपना आँचल/इस धरती से उस अंबर तक/ हम सब मिल एक हो जायें/विश्व में अमन शांति का ध्वज फहरायें/ये ख्वाब है मेरा, सच हो जाए/ये मुश्किल है असंभव तो नहीं। वर्जीनिया से आई प्रख्यात कवियत्री गुरबंस कौर गिल ने अपने काव्य तथा साजो-आवाज से पंजाबी की रचना सुनाकर महफिल को अपनी गिरफ्त में बाँध रखा।अशोक व्यास ने अपनी बात यूँ कही कि मेरी आँखों में वो सवेरा है/जिसको देखूँ वो शख्स मेरा/ कभी किरणों के झूले पर इठलाती है/तब पानिहारिन प्यास बुझाती है।अनूप भार्गव की कविता में सत्य का सूरज चमकता हुआ दिखाई दिया-कब तक लिए बैठी रहोगी मुट्ठी में धूप को लेकर/जरा हथेली को खोलो तो सवेरा हो।बिंदेश्वरी अग्रवाल ने अवधी में हास्य रचना के जरिए पहली बार अमरीका में पाँव रखने का तर्जुबा सुनाया और माहौल हास्यमय हो गया।
पूर्णिमा देसाई ने कहा कि- आओ मानव बनें अब तन मन से। राम बाबू गौतम ने समाँ बाँधने वाली रचनाएँ सुनाईं, खासकर छेड़खानी करती-सी जवान और शोख अंदाज की रचना को सभी ने सराहा।
आनंद आहूजा ने कहा कि- न मंजिल न मंजिल की राह चाहता हूँ/ तुम्हारी निगाहें आनंद जिसमें सब कुछ है शामिल/मैं बस तुमसे वो निगाह चाहता हूँ।
सुषमा मल्होत्रा शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं, कविता के बाद भाषा की प्रगति के बारे में उन्होंने कई दृष्टिकोण उजागार किए। जानकर खुशी हुई कि अमरीका में पंजाबी भाषा का चलन अपने पाँव रख चुका है। हिंदुस्तान की बहुभाषाएँ यहाँ अब आम बोल चाल की भाषाएँ होती जा रही हैं और यही हिन्दी भाषा का असली प्रचार-प्रसार है।
मंजू राय अपनी कविता के जरिए आशावादी पैगाम लेकर आईं-मत कहो कभी अँध्रियारा/मैं साथ रहूँगी बन साया। सीमा खुराना ने कहा कि- तुम्हें ने मिलूँगा कभी/ये फैसला मेरा था, अनंत कौर जिनकी रचनाओं का विस्तार अनंत है, अपने शायराने अंदाज में हिन्दी और पंजाबी भाषा में सुरमई गज़ल सुनाती रही। एक रचना यूँ थी कि- तेरे लिए तो इंतिहान नहीं हूँ मैं/मैं जानती हूँ अब तेरी जाँ नहीं हूँ मैं।
देवी नागरानी जो मूलत: सिंधी भाषी हैं अपनी एक सिंधी रचना का पाठ किया- बेरुखी बेसबब थींदी आ/प्यार में बेकसी ब थींदी आ। साथ में हिन्दी की एक गज़ल भी पेश की जिसके अल्फ़ाज़ हैं- बचपन को छोड़ आए थे, लेकिन हमारे पास/ता उम्र खेलती हुई अम्राइयाँ रहीं।
कवि सम्मेलन के अंत में बीना ओम ने मंत्र-मुग्ध करने वाली अँग्रेजी में कविता सुनाई जिससे लोग चिंतन-मनन के द्वार पर एक अलौकिक आनंद लेते रहे।