हिन्दी के माध्यम से हो विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बात
विगत माह 'विश्व की प्रगति में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का योगदान' विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ। यह सम्मेलन 'डेसीडॉक' रक्षा वैज्ञानिक सूचना तथा प्रलेखन केंद्र तथा रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा आयोजित किया गया था। दिल्ली के भव्य मेटकॉफ हाउस के प्रशस्त प्रांगण में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पहले दिन सुबह 9 बजे पंजीकरण के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। सुव्यवस्था का पहला ही साक्षात्कार इस अवसर पर हुआ। भारतीय आतिथ्य के बीच बड़ी संख्या में पंजीकरण सुचारु रूप से संपन्न हुआ। रक्षा उपकरणों और संबद्ध विषयों पर प्रकाशित पुस्तकों की प्रदर्शनी देखते हुए भारत के विभिन्न प्रांतों से उपस्थित प्रतिभागी संतुष्ट भाव से सम्मेलन के उद्घाटन कार्यक्रम स्थल 'भगवन्तम सभागार' में पहुंचे।मधुर सरस्वती वंदना और दीप प्रज्वलन के बाद विशिष्ट संबोधनों का दौर शुरू हुआ जिसमें इस आयोजन की रूपरेखा, तैयारी और इस सम्मेलन में व्यक्ति विशेष और संस्थागत सहयोग का उल्लेख किया गया।सम्मेलन की विशेषता यह थी कि इस अवसर पर विभिन्न सभागारों में की जाने वाली प्रस्तुतियों के अतिरिक्त पोस्टर भी प्रदर्शित किए गए। 300 प्रस्तुतियां हुईं, जहां सत्र की अध्यक्षता करने वाले विद्यतजन महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक, टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान मुंबई, आईआईटीएम ग्वालियर, नागरी प्रचारिणी सभा दिल्ली, इंदौर मेडिकल कॉलेज, इनमास जैसी संस्थाओं से संबद्ध थे।विषयगत विविधता का अनुमान शीर्षकों को पढ़कर सहज ही किया जा सकता है। जिनमें से कुछ हैं : हिमालयी औषधीय पौधों के संरक्षण एवं औषधीय उत्पादों के विकास में रक्षा, जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान का योगदान, विश्व प्रगति में एंटीना का योगदान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और भूमंडलीकरण की चुनौतियां, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण : संदर्भ गांधी, हिन्दी में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का साहित्य।समापन समारोह में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूतिनारायण राय मुख्य अतिथि थे। उनके अतिरिक्त केंद्रीय हिन्दी संस्थान के निदेशक प्रोफेसर मोहन, वैज्ञानिक और कम्प्यूटर पर हिन्दी के विशेषज्ञ ओम विकास और विभागीय अधिकारी रत्नाकर अवस्थी और सुरेश कुमार जिंदल मौजूद थे। इस अवसर पर आयोजन सचिव फूलदीप कुमार ने संचालन का दायित्व बखूबी निभाया।सम्मेलन का सार निरंतर यह निकलता रहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लाभ को अपने देश में जन-जन तक पहुंचाने की कामना हिन्दी के माध्यम से ही साकार हो सकती है। आम आदमी तक अपनी भाषा के अतिरिक्त और किस भाषा के माध्यम से जाएं। और क्यों? सभी भारतीय भाषाएं इतनी समर्थ हैं कि वे विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों के ज्ञान को वहन कर सकती हैं। फिर बाधा क्या है? बाधित करने वाली मानसिकता को बदलना ही एकमात्र रास्ता है। सम्मेलन में एक स्वर से इस अनुगूंज को सुना जा सका।सूचित किया गया कि इस सम्मेलन में हिन्दी में लिखे गए कुल 650 विविधतापूर्ण आलेख और सारांश प्राप्त हुए। विशिष्ट समिति ने इनमें से 600 पूर्ण आलेखों का चयन किया और 11 संपादित पुस्तकों के रूप में इनका प्रकाशन हुआ। सर्वाधिक सुखद था पंजीकरण के दौरान अपने आलेख को पुस्तक रूप में पाना। लगभग सभी विद्वान वक्ताओं ने सम्मेलन की इस उपलब्धि को भरपूर सराहा और रेखांकित किया कि संभव है यह प्राप्त आलेखों की दृष्टि से अब तक का सर्वाधिक सफल आयोजन हो।प्रस्तुति : विजया सती