लंदन। नेहरू केंद्र, लंदन में कविता और फिल्मी गीतों विशेष रूप से आयोजित एक कार्यक्रम में भारतीय सैनिकों को एक बहुत ही भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
नेहरू केंद्र की उपनिदेशक, विभा मेहदीरत्ता द्वारा गर्मजोशी से सभी का स्वागत करने के पश्चात 'वातायन' की संस्थापक दिव्या माथुर ने विशेष अतिथि डॉ. शांतनु दास का स्वागत किया, जो किंग्स कॉलेज, लंदन विश्वविद्यालय में युद्ध साहित्य पढ़ाते हैं।
दिव्या ने कहा कि यह कार्यक्रम न केवल सैनिकों के, बल्कि उनके परिवार के भी बलिदान को याद करने के लिए आयोजित किया गया है। खासकर युद्ध विधवाओं और उनके बच्चों के लिए, जो उनकी अनुपस्थिति में जीते हैं।
सैनिकों और उनके परिवार के सदस्यों को फूलों से सम्मानित किया गया, जो चुनाव, क्रिकेट मैच और खराब मौसम के बावजूद काफी संख्या में शामिल हुए, विशेषत: भारतीय सैनिकों, पुलिसकर्मियों और आरएएफ के अधिकारियों की उपस्थिति बेहद सौभाग्यपूर्ण और आनंददायक थी।
कार्यक्रम का शुभारंभ किया उत्तरा सुकन्या जोशी ने। उन्होंने अपनी सरस आवाज में दो यादगार गीत- 'ऐ मेरे वतन के लोगों...' और 'सरफरोशी की तमन्ना...' सुनाकर पूरे सदन को अभिभूत कर दिया। उत्तरा विशाल भारद्वाज जैसे कई बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं और संगीतकारों के साथ प्रतिष्ठित स्थानों पर अपने गायन का प्रदर्शन कर चुकी हैं।
प्रतिष्ठित लेखिका और समाजसेवी मंजू लोढ़ा को इस अवसर पर विशेष रूप से उनके द्वारा लिखित कविताएं पढ़ने के लिए आमंत्रित किया गया था। वे लोधा फाउंडेशन की अध्यक्ष भी हैं जिसका लक्ष्य जरूरत के आधार पर निवेश करके गरीब समुदायों में सुधार लाने का है।
ज्ञान गंगोत्री कविता मंच की संस्थापक श्रीमती लोढ़ा का उद्देश्य मुंबई स्थित गृहिणियों के साहित्यिक कौशल को विकसित करना है। उनकी नवीनतम पुस्तक परमवीर, महान भारतीय सैनिकों के शौर्य पर आधारित है। सैनिकों की पत्नियों और प्रेमिकाओं की भावनाओं पर आधारित उनकी कविताओं ने दर्शकों का मन मोह लिया।
तदंतर, प्रसिद्ध लेखक और कथा-यूके के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा द्वारा प्रदर्शित देशभक्ति के उनके गीत सुनकर दर्शक रोमांचित हो उठे- 'ये देश है वीर जवानों का, कंधों से मिलते हैं कंधे, वतन पे जो फिदा होगा, संदेशे आते हैं...' इत्यादि। दर्शक गीतों की प्रस्तुति के साथ सुर-ताल मिला रहे थे।
तेजेन्द्र शर्मा हिन्दी सिनेमा के विभिन्न विषयों पर इस तरह के पॉवर-पॉइंट प्रस्तुति के लिए अंतरराष्ट्रीय रूप से विख्यात हैं। प्रस्तुति के दौरान उन्होंने एक अहम बात कही कि भारत में अभी तक एक प्रामाणिक युद्ध-फिल्म बनाने की शुरुआत नहीं हुई है।
इस अवसर पर डॉ. पद्मेश गुप्त, जिन्हें हाल ही में भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा पुरस्कृत किया गया है, को मंच पर सम्मानित किया गया। उन्होंने अपनी एक अद्भूत कविता 'बर्लिन की दीवार' सुनाई। कार्यक्रम का समापन लेखक, ब्लॉगर और 'वातायन' की कोषाध्यक्ष शिखा वार्ष्णेय द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ किया गया।
श्रोताओं में जाने-माने लेखक, कवि, मीडियाकर्मी, संगीतज्ञ, चित्रकार और शिक्षक आदि भी शामिल हुए जिनमें शामिल थे- डॉ. ज्योति बचानी, डॉ. पद्मेश गुप्त, जय विश्वादेवा, कैलाश बुधवार, अरुणा और नंद अजित्सरिया, अजित राय, तोषी अमृता, नीलम और विष्णु सिंह, जया लायनल इत्यादि।
प्रस्तुति : शिखा वार्ष्णेय