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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी मंदी से लड़खड़ाई

- सुनंदा राव

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2006 में रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने भारतीय रेल की सफलता से पूरी दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया था। सबसे अधिक आश्चर्य तब हुआ जब उन्हें मैनेजमेंट छात्रों के गुरु के तौर पर पेश किया गया। चुनाव में हार चुके लालू के हाथों अब रेल मंत्रालय की बागडोर नहीं है लेकिन संसद सत्र में वे खुद को गुरु जरूर कहते हैं।

और हो भी क्यों न- दुनिया के कई नामीगिरामी लोग, राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी, दुनिया के सबसे जाने-माने विश्वविद्यालय यानी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को संबोधित करने का केवल ख्वाब देख सकते हैं और लालू जी दुनिया के बेहतरीन कॉलेज के छात्रों को मैनेजमेंट और अपनी सफलता के राज बता चुके हैं।

वहाँ के छात्रों को मैनेजमेंट के गुर समझा-सीखा चुके हैं लेकिन आज जिसके नाम पर लालू यादव और वे लोग जो उनकी तरह वहाँ के छात्रों के सामने व्याख्यान देने के कारण गर्व से फूले नहीं समाते, वही विश्वविद्यालय दिवालिया होने के कगार पर है। बोस्टन ग्लोब नामक संस्था की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सबसे अमीर हार्वर्ड विश्वविद्यालय को लाखों डॉलर का घाटा हुआ है जिसका असर अब वहां पढ़ाए जाने वाले विषयों पर पड़ रहा है।

असल में आर्थिक मंदी के कारण पिछले साल हार्वर्ड को मिल रहे दान और चंदे में 30 प्रतिशत की कमी आई। अमेरिका के कॉलेज ज्यादातर दान और चंदों पर चलते हैं और हार्वर्ड का एक-तिहाई खर्च इसी से चलता है। इतिहास में पहली बार हार्वर्ड में इस साल सबसे बड़ी मात्रा में चंदों और दान में कटौती देखी गई। अनुमान है कि देश में सबसे अधिक राशि का दान हासिल करने वाले हार्वर्ड में 30 प्रतिशत दान कम हुआ है। पिछले साल यह राशि 37अरब डॉलर थी। इसके अलावा अनुमान है कि हार्वर्ड में कुल 11 अरब डॉलर के निवेश की कटौती की जाएगी।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय की खस्ता हालत का असर अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों पर सबसे ज्यादा पड़ सकता है और इन्हीं कोर्सों के शिक्षकों की नौकरियां खतरे में हैं। कई प्रोफेसरों का मानना है कि पैसे की कमी के कारण कई कोर्स अब हार्वर्ड में उपलब्ध नहीं करवाए जा सकेंगे। खासकर इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट के नामी सेमिनारों में भी भारी कटौती की जाएगी। इसके अलावा कई प्रोफेसर भी बेहतर तनख्वाह पाने के लिए विश्वविद्यालय छोड़ चुके हैं और इन जगहों को फिर से नहीं भरा गया है। नए प्रोफेसरों की नियुक्ति नहीं की गई। जो हैं, उन्हीं से काम चलाया जा रहा है ।

हार्वर्ड के अधिकारियों का कहना है कि आर्थिक मंदी के कारण संस्था के हर स्तर पर असर पड़ा है। कुछ कर्मचारियों का यह भी मानना है कि जब हार्वर्ड जैसे विश्वविद्यालयों के पास पैसा था तो उन्होंने इमारतें और आधारभूत संरचना के लिए जरूरत से ज्यादा पैसा खर्च किया। मनमाने ढंग से विस्तार योजनाएँ बनाई गईं। उन्हें पूरा करने के लिए उधार लिया गया था और अब उसे चुकाने का समय भी आ गया है।

हार्वर्ड एकमात्र विश्वविद्यालय नहीं है जिसके बजट और विस्तार में कटौती की गईहो। अमेरिका के दूसरे विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं पर भी गाज गिरी है। जैसे 15 सितंबर, 2008 को, लेहमैन ब्रदर्स के दिवालिया होने की स्थिति आने पर वहाँ की योजनाओं और कार्यक्रमों को काँटा-छाँटा गया । येल और प्रिंस्टन जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों में भी दान और चंदे कम हुए। लेकिन हार्वर्ड में तो कमाल ही हो गया । वहाँ संकट इतना गहराया कि मैनेजमेंट ने घबराकर अचानक विश्वविद्यालय की संपत्ति बेचनी शुरू कर दी जिससे हार्वर्ड की छवि को और नुकसान हुआ उसकी साख गिरने लगी ।

हार्वर्ड ने 1.5 अरब डॉलर के प्राइवेट एक्विटी बॉन्ड्स बेचने का फैसला किया, जिससे उस पर कर्ज और बढ़ गया है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय की अध्यक्ष ड्रू फॉस्ट ने जब 2007 में पद संभाला था, तब वहाँ आर्थिक मंदी या धनाभाव का नामोनिशान नहीं था। विस्तार योजनाओं के चलते कई नई इमारतें खड़ी की गईं और छात्रवृत्ति के लिए खुल कर पैसा दिया गया लेकिन अब संकट गहराने पर प्रबंधन को किफायतशारी और कटौती का रास्ता अपनाना पड़ा है ।

हाल ही में एक इंटरव्यू में फॉस्ट ने कहा कि हमें अब चुनना होगा कि हमें क्या चाहिए-हम चॉकलेट, वनिला और स्ट्रॉबेरी- सब कुछ एक साथ नहीं खा सकते। जब संकट सामने हो तो हमें कठोर फैसले करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए।विश्वविद्यालय परिसर में एक अरब से ज्यादा की लागत वाली विज्ञानशास्त्र की इमारत के निर्माण पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। यही नहीं, वहाँ घटते दान के कारण 275 नौकरियाँ खत्म करने की घोषणा की गई। इसके अलावा 40 अन्य कर्मचारियों के काम के घंटे भी कम किए जाएंगे।

कई प्रोफेसरों, अधिकारियों और कर्मचारियों की तनख्वाह रोक दी गई है। छात्रवृत्ति पाने वाले छात्रों को भी चेतावनी दे दी गई है कि शायद कॉलेज उनकी पढ़ाई की फीस नहीं भर सकेगा। इस ऐतिहासिक विश्वविद्यालय के प्रांगण में जहां तस्वीरें खीचने के लिए पर्यटकों की होड़ लगी रहती थी, वहां अब नाराज कर्मचारी प्रदर्शन करते देखे जा रहे हैं।

यह शिकायत भी है कि हार्वर्ड की अध्यक्ष फॉस्ट ने पढ़ाई के स्तर को बेहतर बनाने के बजाय इमारतों की खूबसूरती पर ज्यादा ध्यान दिया जो सही नीति नहीं थी। साथ ही, आलोचकों का कहना है कि हार्वर्ड के आला पदों पर बैठे कर्मचारियों की तनख्वाह में भी कटौती की जानी चाहिए जो इस बीच 20 लाख से 65 लाख डॉलर की सालाना पा रहे हैं। केवल वर्तमान अध्यक्ष फॉस्ट ही नहीं, पूर्व अध्यक्ष लैरी समर्स को भी हार्वर्ड की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

हार्वर्ड में पढ़ रहे कुछ पूर्व छात्रों का कहना है कि समर्स ने अपने कार्यकाल के दौरान फीस में भारी रियायतें दीं, और दीर्घकालीन लक्ष्यों पर ध्यान नहीं दिया। दिलचस्प बात यह है लैरी समर्स इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के वित्तीय सलाहकारों में से एक हैं। फिलहाल नुकसान की भरपाई स्टाफ को करनी पड़ रही है। ऐसे में लालू यादव को अगर एक बार फिर पैसा बचाने और मुनाफा कमाने के लिए हार्वर्ड बुलाया जाए ‍तो बेशक हार्वर्ड को कुछ फायदा पहुँच सकता है।

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