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अमेरिकी भारतीयों का डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर झुकाव

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डॉ. मुनीश रायजादा

अमेरिका में लगभग 34 लाख भारतीय रहते हैं। इनमें से काफी लोग उच्च शिक्षा व कामकाज के नाते वीसा पर रहते हैं, लेकिन लगभग एक तिहाई लोग ग्रीन कार्ड हासिल कर अमेरिका की नागरिकता लेते हैं।
 
2012 के राष्ट्रपति चुनावों में एक अनुमान के अनुसार लगभग 10 लाख भारतीय मूल के मतदाता थे। यह प्रश्न अक्सर आप लोगों के मन में उठता होगा कि यह प्रवासी भारतीय अमेरिका में किस राजनैतिक विचारधारा का समर्थन करते हैं। 
 
अमेरिका में राजनैतिक दल:- 
 
अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी व रिपब्लिकन पार्टी, दो प्रमुख राजनैतिक दल हैं। कुछ नए उभर रहे राजनैतिक समूहों में लिबरटेरियन पार्टी (मुक्तिवादी दल) नाम उभर कर आता है। यह पार्टी दोनों विचारधाराओं का मिश्रण है अर्थात लिबरटेरियन पार्टी सामाजिक मुद्दों पर उदारवादी व आर्थिक मुद्दों पर रूढिवादी रूख रखते हैं। अगर दूसरे शब्दों में कहें तो यह न्यूनतम शासन (सरकारी हस्तक्षेप) व अधिकतम स्वतंत्रता के पक्षधर हैं। अन्य देशों से आए प्रवासियों की भांति ही यहां भारतीय लोग भी मुख्यत: डेमोक्रेटिक विचारधारा के ही समर्थक हैं। प्यू रिसर्च सेंटर के आंकड़ों के अनुसार लगभग 65% अमेरिकी भारतीय या तो डेमोक्रेट हैं या डेमोक्रेटिक विचारधारा की ओर झुकाव रखते हैं।
 
डेमोक्रेटिक पार्टी सामाजिक मुद्दों पर उदारवादी रूख रखने वाली वामपंथी पार्टी है, जबकि दक्षिणपंथी रुझान वाले रिपब्लिकन सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर रूढिवादी रूख अपनाते हैं। 1824 में स्थापित डेमोक्रेटिक पार्टी सामाजिक न्याय के सिद्धांत पर चलती है। इसके शासन में विभिन्न योजनाओं में वृहद स्तर पर सरकारी नियंत्रण रहता है। अपनी इस समाजवादी बाध्यताओं के कारण ही डेमोक्रेटिक नीतियों में समाज सेवा से जुड़ी योजनाओं जैसे- समानता, सबके लिए स्वास्थ्य बीमा, पर्यावरण संरक्षण, श्रमिक अधिकार संरक्षण की प्रमुखता रहती हैं। यह लोग सामाजिक व नैतिक मूल्यों पर उदार रूख रखते हैं।

इसी कारण यह समलैंगिक अधिकारों से जुड़े मामलों में अधिक संवेदी रूख अपनाते है, समलिंगी शादियों का समर्थन करते है व गर्भपात (कानूनसम्मत) पर प्रतिबंध नहीं लगाते। आम जनता को हथियारों के लाइसेंस देने में डेमोक्रेट कम विश्वास रखते हैं। अपने सामाजिक न्याय व समावेशी नीतियों के कारण डेमोक्रेटिक पार्टी गरीब व मध्यमवर्गीय लोगों के अलावा प्रवासियों को भी आकर्षित करती है। वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा के अलावा बिल क्लिंटन, जिमी कार्टर, जॉन एफ कैनेडी व फ्रेंक्लिन रुजवेल्ट भी डेमोक्रेट थे।
 
गर्भपात, शादियों व समलैंगिकों के अधिकारों के मामले में रिपब्लिकन रूढिवादी विचार रखते हैं। परिवार व शादी से संबंधित मामलों में रिपब्लिकन लोग पारंपरिक ईसाई मूल्यों व मान्यताओं को मानते हैं। इसी कारण यह गर्भपात, समलिंगी शादियों व समलैंगिकों के अधिकारों का विरोध करतें हैं। यह लोग व्यक्तिगत स्वतंत्रता व न्यूनतम राजकीय हस्तक्षेप के समर्थक हैं। अपनी इन्हीं नीतियों के चलते यह आमजन के हथियार रखने के अधिकार की वकालत करतें हैं। 

रिपब्लिकन पार्टी में मुख्यत: श्वेत लोगों का प्रभुत्व है व प्रवासी लोग अक्सर इनसे दूरी बनाए रखते हैं। 1854 में बनी रिपब्लिकन पार्टी को ग्रांड ओल्ड पार्टी (जी.ओ.पी:) के नाम से भी जाना जाता है। रिपब्लिकन पार्टी व डेमोक्रेटिक पार्टी के शुभंकर क्रमशः हाथी व गधा है। इसी प्रकार नीला रंग डेमोक्रेटिक पार्टी का व लाल रंग रिपब्लिकन पार्टी का संकेतक है। पूर्व राष्ट्रपति जार्ज एच. डब्ल्यू. बुश (पिता), जार्ज डब्ल्यू. बुश (पुत्र), रोनाल्ड रीगन व अब्राहम लिंकन रिपब्लिकन थे।
 
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अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी को हम कुछ कुछ भारत की भारतीय जनता पार्टी के समान मान सकते हैं, हालांकि इन दोनों की तुलना तर्कसंगत नहीं है।
इन सब अंतरों के अलावा डेमोक्रेटिक तथा रिपब्लिकन पार्टी की नीतियों में मुख्य विभेद तो वास्तव में आर्थिक मुद्दों पर है। अमेरिका एक पूंजीवादी राष्ट्र है, जहां मुक्त बाजार की अवधारणा को बढा़वा दिया जाता है। रिपब्लिकन, डेमोक्रेट की अपेक्षा अधिक पूंजीवादी सोच रखते है। 

रिपब्लिकन सरकारों का आकार छोटा होता है। यह सरकारें व्यापार को बढा़वा देती है एवं कर (टैक्स) में कमी करती है (धनवान लोगों के लिए भी)। इसके विपरीत डेमोक्रेट लोग व्यापक सरकारी नियंत्रण को अधिक महत्व देते हैं, इसी कारण इनकी सरकारों का आकार बड़ा होता है। यह लोग आय के अनुसार करों की दर में बढो़तरी करने व न्यूनतम मजदूरी या भत्ता जैसी योजनाएं  लागू करने में विश्वास रखतें हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो यह लोग अपनी सामाजिक योजनाओं के लिए धन जुटाने हेतु धनी लोगों पर अधिक कर लगाने में विश्वास रखतें हैं। तो जाहिर-सी बात है, डेमोक्रेटिक नीतियां गरीब तबके व मध्यम वर्ग को अधिक आकर्षित करेंगी, जबकि धनी लोग ग्रांड ओल्ड पार्टी की ओर खिंचेंगे।
 
एक आम धारणा यह भी है कि डेमोक्रेटिक पार्टी जातीय व नस्लीय स्तर पर अधिक विविधता रखती है, जबकि रिपब्लिकन पार्टी मूल रूप से श्वेत नस्ल की प्रमुखता व ईसाईयत का प्रतिनिधित्व करती है। काकेशियन लोगों के बाद अश्वेत व हिस्पेनिक समुदाय अमेरिका के दो सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग हैं। हिस्पेनिक लोगों को लेटिनो भी कहा जाता है। स्पेनिश भाषी इन लोगों के पूर्वज दक्षिण अमेरिका से आए थे। 

प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा 2012 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक 31% लेटिनो प्रवासी जो अमेरिका के नागरिक या वैध प्रवासी नहीं हैं (संभव है, यह यहां अवैध रूप से आए हो), इनमें से मात्र 4% लोगों को छोड़कर बाकी सभी डेमोक्रेटिक विचारधारा का समर्थन करते हैं। नेशनल इलेक्शन पूल के आंकड़ों के अनुसार 2012 के राष्ट्रपति चुनावों में 71% लेटिनो वोटरों ने बराक ओबामा को वोट डाला जबकि मात्र 27% ने रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी को समर्थन दिया। इसी प्रकार एशियन अमेरिका जस्टिस सेंटर द्वारा 2012के चुनाव के बाद किए गए एक सर्वे में पाया गया कि लगभग दो तिहाई एशियन अमेरिकी लोगों ने डेमोक्रेट बराक ओबामा के पक्ष में मतदान किया। इसी सर्वे के मुताबिक लगभग 88% अमेरिकी-भारतीयों ने ओबामा को वोट दिया।
 
 

अमेरिका में भारतीय समुदाय:- 

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अमेरिकी जनगणना विभाग भारतीय समुदाय को एशियन अमेरिकी की श्रेणी में रखता है। अमेरिका में भारतीय सबसे तेजी से बढ़ते हुए जातीय समूहों में से एक हैं। अमेरिकी जनसंख्या का मात्र 1% भाग बनाने वाले भारतीयों ने यहां हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त की है। एक अमेरिकी भारतीय की सालाना मध्य घरेलू आय लगभग 88000$ है, जो मूल अमेरीकी नागरिक की 55000$ की मध्य घरेलू आय की तुलना में कहीं ज्यादा है। प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक भारतीयों ने शिक्षा के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय औसत से अच्छा प्रदर्शन किया है। 

(18% के राष्ट्रीय औसत की तुलना में 32% भारतीय बैचलर डिग्री रखतें हैं)। अमेरिका में रह रहे भारतीयों में विवाहितों का प्रतिशत भी मूल अमेरिकियों से ज्यादा है। 51% अमेरिकी वयस्कों की तुलना में 71% भारतीय वयस्क विवाहित हैं। हालांकि भारतीय समुदाय में अंतरनस्लीय विवाह के मामले कम देखने को मिलते हैं, 86% भारतीयों ने यहां शादी के लिए भारतीयों को ही चुना है। अमेरीकियों की तुलना में भारतीय लोग पारिवारिक मूल्यों का अधिक सम्मान करतें हैं। यही कारण है कि परिवार, शादी व गर्भपात के मुद्दों पर भारतीयों का रूख कुछ हद तक पारम्परिक होता है। 
 
अब हम उस चीज की ओर चलतें है जो भारतीयों के अमेरिका की ओर आकर्षित होने का मूल कारण हैं। वह है अमेरिका में मिलने वाली आजादी व सफलता। भारत देश की शुरुआत नेहरूवादी समाजवाद से हुई थी और आज भी यहां आर्थिक सुधार अनमने रूप से ही लागू किए गए हैं। परिणामस्वरूप बाबुशाही, फीताशाही व आम जनजीवन में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। ऐसे देश से निकले इन भारतीयों ने अपनी क्षमता व मेहनत से अमेरिका में मिल रहे हर अवसर को सफलतापूर्वक भुनाया है। 

अमेरिका ने इनके विचारों व क्षमताओं को एक जमीन प्रदान की है। यह लोग जानते हैं कि यहां इन्हें सफलता मेहनत व योग्यता से मिलेगी ना कि संपर्क व जुगाड़ से। इन सब बातों को देखते हुए भारतीयों का डेमोक्रेटिक समर्थक होना विचित्र प्रतीत होता है। इन सब गुणों, मूल्यों व प्रवृतियों के आधार पर तो इन्हे रिपलिकन पार्टी का समर्थक होना चाहिए था। फिर भी भारतीयों का झुकाव डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर क्यों हैं?
 
क्या जाति अथवा नस्ल इस झुकाव का कारण है? माना कि रिपब्लिकन विचारधारा श्वेत नस्ल के प्रभुत्व में विश्वास रखती है, परन्तु क्या कभी किसी भारतीय को अमेरिका में नस्लीय भेदभाव का शिकार होना पड़ा है? (छुटपुट घटनाओं को छोड़कर), नहीं। इसी प्रकार से हो सकता है कि रिपब्लिकन पार्टी का ईसाईयत को अधिक महत्व देना भी इन्हें भारतीयों से दूर कर रहा हो। भारतीय मूल के दोनों रिपब्लिकन गवर्नर (लुसियाना से गवर्नर बॉबी जिंदल व साउथ केरोलिना से गवर्नर श्रीमती निकी रंधावा हेली), प्रवासी भारतीयों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन पाने में असफल रहे हैं। इन दोनों ने ईसाईयत को अपना लिया हैं व यह टी पार्टी मूवमेंट (रुढिवादी रिपब्लिकन समर्थकों का अभियान) के समर्थन से आगे बढे़ हैं।

इन दोनों नेताओं ने अल्पसंख्यक भारतीय समुदाय से दूरी बना रखी है। दूसरी ओर डेमोक्रेटिक पार्टी की तुलसी गेबार्ड को देखिए, हवाई प्रांत से कांग्रेस सदस्या तुलसी भारतीय समुदाय की चहेती हैं। क्या हम यह मान सकते हैं कि अमेरिका में भारतीय परंपरागत रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक रहे हैं तथा नए आ रहे भारतीय भी इसी लकीर का फकीर होकर इसी परंपरा का निर्वाह करते जा रहें हैं। मैं इस तर्क से सहमत हूं। 
 
भारत का उदाहरण ले लीजिए- जिस प्रकार यहां भारतीय जनता पार्टी एक समुदाय विशेष के लिए अछूत है, उसी प्रकार प्रवासी भारतीय बिना अधिक सोच-विचार किए ही रिपब्लिकन पार्टी को खारिज कर देते हैं। रिपब्लिकन मुख्यत: बाइबिल बेल्ट (ईसाई बहुल इलाका) में अपना प्रभुत्व रखते हैं। बड़े शहरों व प्रवासियों की बहुलता वाले क्षेत्रों में इनका प्रभाव कम है।
 
रिपब्लिकन पार्टी को प्रवासी समुदाय का विश्वास जीतने के लिए अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। उन्हें और अधिक विविध व समावेशी होने की जरूरत है। उदाहरण- 'डेमोक्रेटिक तथा रिपब्लिकन पार्टी में एक अंतर यही है कि जब बाजारी कम्पनियां इनके दरवाजे खटखटाती हैं, तो किस गति से कौन से पार्टी घुटने टेकती है? बस, यही फर्क है!” – राल्फ नेदर (लेखक तथा राजनितिक सक्रियतावादी)
 
(लेखक शिकागो, अमेरिका में नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ, तथा सामाजिक-राजनैतिक टिप्पणीकार हैं।) 

 

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