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न्यूज़ीलैंड में दिवाली आयोजन

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न्यूज़ीलैंड से रोहित कुमार 'हैप्पी'


 
न्यूज़ीलैंड। न्यूज़ीलैंड के ऑकलैंड की क्वींस स्ट्रीट के 'आओटिआ सक्वेयर' में गत सप्ताहांत हजारों की संख्या में लोग दिवाली आयोजन में सम्मिलित हुए। यह आयोजन हर वर्ष आयोजित किया जाता है जिसमें न्यूज़ीलैंड के कलाकारों के अतिरिक्त भारत से आमंत्रित विभिन्न कलाकार भी भाग लेते हैं।
 
दिवाली आयोजन में खाने के भारतीय स्टॉल, संगीत, नृत्य, फैशन-शो, प्रदर्शनियां, बच्चों के लिए रंगोली-कार्यशालाएं सब कुछ उपलब्ध है। दिवाली अब भारतीयों के लिए ही नहीं बल्कि न्यूज़ीलैंड के जन-साधारण के लिए भी एक विशेष समारोह बन गया है। हजारों की संख्या में आने वाले लोगों में सैकड़ों गैर-भारतीय भी सम्मिलित होते हैं जो इस समारोह के माध्यम से भारतीय संस्कृति व कला से परिचित होते हैं। 

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इस वर्ष भारत से लावणी नृत्य समूह 'मुद्रा क्रिएशन' व पुरस्कृत 'कठपुतली' कलाकार ‘महीपत कवि’ दिवाली आयोजन के विशेष आकर्षण रहे। ‘मुद्रा क्रिएशन’ महाराष्ट्र के लोक नृत्यों के लिए सुप्रसिद्ध है। इस समूह की दस नृत्यांगनाएं ऑकलैंड व वेलिंग्टन में 'लावणी नृत्य' प्रस्तुत करेंगीं। लावणी महाराष्ट्र की लोक नाट्य-शैली है। इसे महाराष्ट्र की सर्वाधिक लोकप्रिय लोक नृत्य शैली के रूप में जाना जाता है।
 
 
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भारत से आए अन्य कलाकार 'महीपत कवि' कठपुतली के उस्ताद हैं, वे गुजरात से हैं। पिछले 50 वर्षों से इस लोक-कला से जुड़े हुए हैं। उनका पूरा परिवार इस लोक-कला को समर्पित है। 
 
न्यूज़ीलैंड में अपने अनुभव को साझा करते हुए वे कहते हैं, 'हमारे कार्यक्रम की लोगों ने बहुत सराहना की। यहां के लोग मुझे बहुत अच्छे लगे। वे हर समय मुस्कराते हुए मिले।'

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ऑकलैंड निवासी ‘जूडी’ पहली बार अपने बच्चों सहित दिवाली आयोजन में आई हैं। 'हमें ‘पपेट शो’ व ‘रंगोली वर्कशॉप’ बहुत अच्छी लगी। मैं इंडियन लैंग्युएज़ नहीं समझती फिर भी ‘डांस अच्छा लग रहा है।' 
 
यहां पर विभिन्न प्रकार के स्टॉल लगे थे जिनमें सबसे अधिक भीड़ खाने वाले स्टॉलों पर थी। इनके अतिरिक्त हिना, कपड़े व कृत्रिम आभूषणों के स्टॉलों पर भीड़ थी।

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‘रोनल्ड’ पिछले कई वर्षों से दिवाली आयोजन देखने आते हैं। उन्हें भारतीय व्यंजन बहुत भाते हैं, 'संगीत, नृत्य और स्वादिष्ट भोजन और इससे अधिक क्या कामना की जा सकती है?'
 
न्यूज़ीलैंड में दिवाली का आयोजन 'दिवाली मेला' के रूप में 1998 में आरंभ हुआ था। इसकी शुरुआत भारत-दर्शन हिंदी पत्रिका व एक स्थानीय न्यूज़ीलैंडर ने मिलकर की थी। यह आयोजन इतना सफल रहा कि बाद में ऑकलैंड सिटी कौंसिल ने इसका आयोजन संभालने की जिम्मेदारी उठा ली। 2002 से ऑकलैंड कौंसिल व एशिया फाउंडेशन इसका आयोजन करती हैं। 

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