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विश्व में महिलाओं के विरुद्ध बढ़ती हिंसा

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डॉ. मुनीश रायजादा

बढ़ती महिला हिंसा के खिलाफ एक कदम...

‘मैं जमीन में दफन होना नहीं चाहती। मां, तुम रोना मत, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं।' ‘काश! मैं मरते समय तुम्हें गले लगा पाती’। ये थे 27 वर्षीय ईरानी महिला रेहाना जब्बारी के अंतिम शब्द। जब्बारी को पिछले महीने ईरान में फांसी पर लटका दिया गया था। रेहाना जब्बारी पर एक व्यक्ति की हत्या के आरोप थे, जो कथित रूप से उससे बलात्कार का प्रयास कर रहा था।
 

 
अगर आपको यह अन्यायपूर्ण लग रहा है तो जरा इस घटना पर भी विचार कीजिए : ब्रिटिश मूल की एक ईरानी महिला को तेहरान में 1 साल कैद की सजा सुनाई गई। उसका अपराध? उसने पुरुषों के एक वॉलीबॉल मैच देखने का प्रयास किया था और यह ईरान में कबूल नहीं था। दुनिया के हर मुल्क में अलग-अलग रूपों मे महिलाओं के विरुद्ध हिंसा होती रहती है। मध्य-पूर्व के देश इन मामलों मे अग्रणी हैं।
 
प्रकृति ने स्त्री व पुरुष को अलग-अलग बनाया है। उन सभी व्यवसायों में, जहां कोमलता, दया व करुणा की जरूरत होती है, उदाहरणार्थ नर्सिंग। महिलाएं वहां प्राकृतिक तौर पर उन्हें आयाम देती हैं। प्रकृति ने महिलाओं को प्रजनन का भी वरदान दिया है और इसी कारण इन्हें पुरुषों से अधिक नाजुक बनाया है। लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसे शारीरिक व मानसिक विभेदों के चलते महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा हिंसा का अधिक शिकार भी होती हैं।
 
 
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संयुक्त राष्ट्र ने 25 नवंबर से 10 दिसंबर तक ‘ओरेंज युअर नेबरहुड’ नामक एक प्रोग्राम का आह्वान किया है। यह महिला हिंसा के खिलाफ एक जनजागृति अभियान है। 25 नवंबर का दिन विश्वभर में महिला हिंसा के उन्मूलन दिवस के रूप में मनाया जाता है, वहीं 10 दिसंबर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस है। 16 दिवसीय इस अभियान में लोग अपने पड़ोस व सार्वजनिक स्थानों पर नारंगी रंग के बैनर व पोस्टर लगाएंगे तथा महिला हिंसा के खिलाफ एकजुटता का प्रदर्शन करेंगे।

आज जब हमने ब्रह्माण्ड व मानवता के बहुत से जटिल रहस्य सुलझा लिए हैं, तब भी दुनियाभर में ऐसी आदिम बुराई का पाया जाना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। दुनियाभर में लगभग 35% महिलाओं को अपने जीवनकाल में एक न एक बार शारीरिक अथवा यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है।
 
इससे भी अधिक भयावह आंकड़ा यह है कि आज भी पूरे विश्व में लगभग सवा करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें बचपन में जननांगों के खतने जैसी दर्दनाक व खतरनाक प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। यह अमानवीय परंपरा अफ्रीका व मध्य-पूर्व के लगभग 30 देशों में प्रचलित हैं। यूनिसेफ के अनुसार आने वाले दशक में लगभग 3 करोड़ महिलाओं को इस यातनापूर्ण प्रक्रिया से गुजरना पड़ सकता है।


 

अमेरिकन ब्यूरो ऑफ जस्टिस स्टेटिस्टिक्स (बीजेएस) के सन् 2003-12 के आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका में हो रहे कुल अपराधों का 21% हिस्सा घरेलू हिंसा है। घरेलू हिंसा की श्रेणी में अंतरंग साथियों, परिवारजनों व रिश्तेदारों द्वारा की गई साधारण मारपीट से लेकर यौन हिंसा व बलात्कार तक शामिल हैं।

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हालांकि यहां पिछले 2 दशकों में घरेलू हिंसा के मामलों में कमी आई हैं, वहीं सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) के अनुसार यहां हर मिनट लगभग 20 व्यक्ति अपने अंतरंग साथी द्वारा शारीरिक हिंसा का शिकार होते हैं। हर 5 में से 1 पुरुष व हर 2 में से 1 महिला ने अपने जीवनभर में कम से कम एक बार यौन हिंसा (बलात्कार इस आकड़े में शामिल नहीं) का अनुभव किया होता है।
 
अमेरिकी सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए समय-समय पर विभिन्न कानून पारित किए हैं। अमेरिकी सरकार द्वारा प्रायोजित ‘नेशनल डोमेस्टिक वायोलेंस हॉटलाइन’ सप्ताह के सातों दिनों 24 घंटे चालू रहती है। इस हेल्पलाइन पर घरेलू हिंसा के शिकार लोगों के लिए हर समय 170 भाषाओं में सहायता उपलब्ध रहती है।
 
अगर दुनियाभर के महिला हिंसा से संबंधित आंकड़ों की तुलना करें तो भारत यहां भी अग्रणी है। भारत के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार यहां हर 3 मिनट में किसी न किसी महिला के खिलाफ अपराध होता हैं।
 
महिला हिंसा के कुछ रूप जैसे शारीरिक हिंसा, यौन हिंसा दुनियाभर में देखे जा सकते हैं, वहीं इसके कुछ भयावह रूप सिर्फ भारत व कुछ अन्य तीसरी दुनिया के देशों में देखने को मिलते हैं। कन्या भ्रूण हत्या, नवजात कन्या शिशुओं की हत्या, एसिड अटैक, मानव तस्करी, ऑनर किलिंग व दहेज से संबंधित हिंसा व शोषण इनमें प्रमुख हैं।
 
एक ओर जहां यौन हिंसा व ऑनर किलिंग की घटनाएं सुर्खियां बटोर रही हैं, वहीं एक अन्य बड़ी समस्या ‘मानव तस्करी’ की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा। हर साल बिहार, झारखंड व छतीसगढ़ से लाकर हजारों लड़कियां बड़े शहरों में बेच दी जाती हैं। इन्हें या तो घरेलू नौकरों के रूप में काम में लिया जाता है या फिर देह-व्यापार के दल-दल में धकेल दिया जाता हैं।
 
पड़ोसी देश नेपाल व बांग्लादेश से सर्कस में काम करने के लिए हजारों लड़कियां हर साल अवैध रूप से भारत लाई जाती हैं। नेपाल सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस प्रकार की लड़कियों की अनुमानित संख्या 5,000-10,000 प्रतिवर्ष है। 
 
बाहर से देखने पर लगता है कि घरेलू नौकरों के रूप में इन लड़कियों को बड़े-बड़े घरों में रहने को मिल रहा है, पर वास्तविकता यह है कि यहां भी शारीरिक, मानसिक व यौन-शोषण की आशंका बनी रहती है।
 
पिछले कुछ वर्षों में देश में महिलाओं पर तेजाबी हमले (एसिड अटैक) की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई हैं। गाड़े तेजाब की खुलेआम हो रही बिक्री व इन मामलों के लिए कठोर कानून का अभाव इसका मूल कारण है।
 
भारत में महिलाओं पर हुए एसिड अटैक हालिया वर्षों में सुर्खियों में रहे हैं। इसके अलावा राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश व झारखंड जैसे राज्यों में सामने आ रही ‘ऑनर किलिंग’ की घटनाएं भारतीय समाज पर एक और धब्बा हैं। सबसे भयावह बात यह है कि अक्सर इन ऑनर किलिंग्स को परिवारजनों व गांव वालों का मूक समर्थन रहता है।
 
इस निरंतर बढ़ती समस्याओं के निराकरण हेतु बहुत से कानून बनाए गए हैं। इनमें ‘प्री-कॉन्सेप्शन एंड प्री नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक एक्ट 1944 (जन्म से पूर्व लिंग निर्धारण को रोकने के लिए), डोमेस्टिक वायोलेंस एक्ट 2005 (महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा रोकने हेतु) व इम्मोरल ट्रैफिक (प्रिवेंशन) एक्ट (मानव तस्करी रोकने हेतु) मुख्य हैं।
 
हालांकि यह कहना न्यायोचित नहीं होगा कि ये सब कानून अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में पूर्ण असफल रहे हैं, परंतु जिस प्रकार समय के साथ महिला हिंसा के नए-नए आयाम उभरकर सामने आ रहे हैं, उसी के अनुसार हमें अपने कानूनों, पुलिस व न्यायपालिका को सक्षम बनाना होगा अन्यथा हम इन मानवता के शत्रुओं के खिलाफ जंग नहीं जीत पाएंगे।
 
हालांकि साथ ही साथ हमारे समाज को और अधिक शांति व संयम का परिचय देना होगा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ‘महिलाओं के खिलाफ हिंसा अपरिहार्य नहीं है व इसकी रोकथाम संभव है’।
 
लेखक शिकागो (अमेरिका) में नवजात शिशुरोग विशेषज्ञ तथा सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणीकार हैं।

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