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महाकवि और कलाकार का मिलन

-प्रस्तुति : रोहित कुमार 'हैप्पी'

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आज स्व. पृथ्वीराज कपूर की जयंती है। पृथ्वीराज कपूर का जन्म 3 नवंबर, 1906 को पंजाब (जो अबपाकिस्तान में है) में हुआ था।
 
पृथ्वीराज जब अपनी नाटक मंडली के साथ प्रयाग आए थे तो उन्होंने महाकवि निराला के भी दर्शन किए थे। कवि और कलाकार का मिलन एक गोष्ठी बन गया था। 23 नवंबर 1957 को  दारागंज स्थित छोटे राय साहब की दुतल्ली पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था।
 
इस हाल में चुने हुए 100 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। इससे पहले भी महाकवि निराला के आदेश से पृथ्वीराज कपूर को यहीं पर प्रीतिभोज दिया गया था। इस अवसर का लाभ आकाशवाणी वालों ने भी उठाया। रेडियो के टेप रिकार्डर पहुंच गए मगर आयोजकों को भय था कि निरालाजी शायद बोलने को राजी न हों।
 
निरालाजी को सहारा देकर ऊपर ले जाया गया। जहां निरालाजी और पृथ्वीराज कपूर के बैठने की व्यवस्था थी वहीं नीचे टेपरिकार्डिंग मशीन छिपा कर रखी गई थी।
 
अब पान का दौर चला। निरालाजी ने पान की तश्तरी सामने रख ली और उनके पास पृथ्वी थियेटर का प्रत्येक कलाकार जाता, पान प्राप्त करता और पृथ्वीराज उनका परिचय महाकवि निराला को देते जाते।
 
परिचय के बाद नवोदित कवियों ने अपनी रचनाएं सुनाई फिर बारी आई फिराक गोरखपुरी (रघुपति सहाय) की। फिराक साहब ने एक अतुकांत छंद में लिखा गीत सुनाया। अब पृथ्वीराज के अनुरोध पर 'निराला' ने पूछा कि क्या सुनना चाहेंगे? सभी का एक स्वर में उत्तर आया, 'राम की शक्तिपूजा'।
 
महाकवि ने पुन: बात को दोहराया कहा अनुरोध पृथ्वीराज का है, समर्थक आप लोग, किंतु कपूर क्या सुनना चाहते हैं।
 
पृथ्वीराज ने कहा पंडित जी मैं भी वही सुनना पसंद करूंगा जो सब सुनना चाहें। फर्क इतना है कि मुझे सुनाकर अमल में लाने का आशीर्वाद भी दीजिएगा।
 
फिर महाकवि का कंठ फूट पड़ा। राम की शक्तिपूजा का अंतिम चरण सुनाते-सुनाते महाकवि भाव-विभोर हो गए।
 
पृथ्वीराज ने कहा, "मुझे गर्व है कि मैं उस देश में जन्मा हूँ जहां भवभूति आदि के पश्चात मेरे समय में भी निराला जैसी दिग्गज हस्ती मौजूद है, जिनमें रन्तिदेव की दानशीलता, गौतमबुद्ध की सी आत्मशुचिता और प्रह्लाद का सा पावनतप निहित है।"
 
पृथ्वीराज कपूर की जयंती पर 'बिस्मिल इलाहाबादी' की एक दुर्लभ रचना
 
कलाकारों के सरताज
यही तो हैं कलाकारों के सरताज,
जिसे कहती है दुनिया पृथ्वीराज।
 
अदा सज-धज है, क्या इनकी निराली,
कि हिन्दी मंच की बुनियाद डाली।
 
दिखावो तो कोई ऐसा कहीं है,
जवाब इनका जमाने में नहीं है।
 
जमा लें रंग जिस महफिल में आ जाएं,
वो शक्ति हैं जहां चाहे ये छा जाएं।
 
सुनो सदबान बिस्मिल की कलम से,
सर ऊंचा देश का है इनके दम से।

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