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यात्रा अनुभव : होम स्वीट होम

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रेखा भाटिया

आज अरसे बाद घर लौटी हूं। घर जी हां, घर अपना घर, वफादार घर जिसकी छत के नीचे आकर एक अजीब-सा अपनापन महसूस होता है। अभी-अभी धूप की तेजी बढ़ने के साथ ध्यान गया, रौशनी चारों और फैलने से घर का भीतर स्पष्ट नजर आ रहा है। चारों और अभी भी पिछले साल के सजाए गए दिवाली और क्रिसमस के डेकोरेशन, तोरण, झालर, फूल मालाएं, फूलदान सजे हुए जगमगा रहे हैं, आंगन में लटकती तूफान में तीतर-बितर हो चुकी रंगबिरंगी रौशनी की मालाएं सजीं हैं और स्वागत कर रही हैं मेरा !! पुकार-पुकार कर स्वागत कर कह रही हैं हमें इंतजार था, स्वागत है। 
 
मानो कह रहीं हों तूफान में भी हम डटी रहीं तेरे लिए। समय आगे सरक गया, दुनिया के लिए साल बदल गया लेकिन घर पर अभी भी कैलेंडर पुरानी तारीख पर लटका पड़ा चुगली कर रहा है इसी दिन तुम मुझे अकेला छोड़ कर गई थीं न ? घर पर समय कभी बदला ही नहीं, वह रुका ही रहा, वहीं मेरे इंतजार में जहां उसे छोड़कर गई थी। 
 
कितना अजीब है न हम पूरी दुनिया में घूमते रहते हैं, आनंद के लिए, उल्लास के लिए, रिश्तों के लिए, अनुभवों के लिए, आदर्शों के लिए, अपनों के लिए, सपनों के लिए, उम्मींदों के लिए, बदलाव के लिए और बदलाव भी किससे चाहते हैं घर से और घर........ क्या कभी बदलता है हमारे लिए! जन्मदिन मनाकर लौट आने से मैं भी नंबरों में थोड़ी पुरानी हो गई और घर भी और हमारा रिश्ता भी और क्या कर गहरा महसूस हो रहा है। 
 
अनुभवों की बात करें तो आसमान, समुद्र, पहाड़, जंगल, रेगिस्तान, शहर, मीलों का सफर, देश के एक छोर से दूसरे छोर तक लंबा अनुभव........। अनगिनत रेस्टोरेंट, अनगिनत स्वाद, खिली धूप, बारिशें, सर्दियां, बर्फ..... लिखने बैठूं तो कई दिनों तक लिखती रहूं लेकिन दिमाग की नसों पर जोर डालूं तो हर पल, हर कोना यात्रा का एक धुंधली छवि ही है, जिसे ताजा रखने के लिए अनगिनत क्षण कैमरे में कैद किए हैं लेकिन 8 हजार फीट की ऊंचाई पर हड्डियां जमाती बर्फ में भी घर से दूर घर के किसी एक अंधेरे कोने में क्लोसेट के अंदर एक अलमारी के ड्रॉवर में साइड में सुकून से रखा एक पिंक जुराब याद आया था। 
 
आज घर पर पुराना रखा दूध फट गया चाय बनाते वक्त, खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं है। काढ़ा पीकर कड़कड़ाती ठंड में गला गर्म किया है, फिर भी तृप्त कर देने वाले सुकून का रसपान किया है। भूख पेट में शोर मचाकर भी दुबक कर शांत हो गई है।


पर्दे हटाकर पीछे आंगन में बाहर का मंजर देख रही हूं। तूफान के कारण आंगन का बड़ा-सा झूला मेरी शरणा स्थली मुंह के बल धाड़ से दूर जा औंधे मुंह गिरा पड़ा है, कई गमलों को अपनी चपेट में लील चुका है, फिर भी खिली धूप में गमलों में उगे-कुचले पौधे इधर-उधर से रास्ता बनाते फिर से उगने की कोशिश कर रहे हैं।  
 
तूफान आ कर गुजर गया और घर सुरक्षित है। सोचती हूं मीलों दूर जब मैं घर से दूर थी, तूफान में यह भारी झूला कांच की ऊंची खिड़कियों पर आकर गिरता, तब क्या होता ? उस वक्त तो बारिश भी बहुत तेज पड़ रही थी, हां तेज आंधी के साथ बर्फबारी भी हो रही थी। तूफान से याद आया कल एयरपोर्ट पर मैं परिवार समेत अपने शहर पहुंच गई, जिसकी उम्मीद कम थी।

समाचारों में तूफान के कारण हजारों फ्लाइट्स के कैंसल होने के समाचार कई दिनों से आ रहे थे, हजारों यात्री ओमीक्रोन (omicron) वायरस के विस्फोट के दौरान ही एयरपोर्ट्स पर फंस गए थे। देश में कई हाई-वे पर लोग घंटों तक बर्फबारी में फंसे हुए थे, कुछ कोक पीकर, कुछ सिर्फ ऑरेंजेस खाकर बचे रहे। हेलीकॉप्टर भी धुंध और बर्फ के कारण उड़ान नहीं भरते, यह तो हमारी यात्रा में मुझे समझ में आ गया था, जब बहुत महंगी हेलीकॉप्टर यात्रा से ग्रैंड कैनियन को देखने का टूर बुक किया और अंत में सब चौपट हो गया। 
 
मैं समय से नाराज हो गई, खुद से नाराज हो गई, हर रोज मौसम का हाल देखकर भी यात्रा जारी रखी थी। तीन दिन बर्फीले तूफान में फंसे रहे, बर्फ में घंटों ड्राइव किया, पागलपन की हद तक उल्लास में रिस्क लेते रहे, सुरक्षित निकल आए तो लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं है, अहसास यह होता रहा इतना गंभीर कुछ भी तो नहीं, समाचारों में हर बात बढ़ाचढ़ा कर की जाती है!! लेकिन कल रात एयरपोर्ट का नजारा देखकर मन उतर गया।


हजारों की तादाद में कई सौ कतारों में सूटकेस शरणार्थी बने एयरपोर्ट पर पड़े थे। एयरपोर्ट एक रेफुजी कैंप-सा प्रतीत हो रहा था। उसकी सुंदरता, मेरे शहर का स्वागत द्वार बहुत बिखरा-सा, उलट-पुलट बदसूरत दिखाई देता था। हड़बड़ाहट में कई यात्री आते और अनाथ शरणार्थी सूटकेसों की भीड़ में किसी सूटकेस पर अपना दावा ठोक थके से उसे घसीटते ले जा रहे थे, पता नहीं उनकी यात्रा समाप्त भी हुई या नहीं और अभी आगे की यात्रा कैसी होगी? 
 
खैर हमारी फ्लाइट और सूटकेस समय से पहले आ गए। हम घर समय से पहले पहुंच गए हैं। बाहर पक्षियों के बर्ड फीडर खाली पड़े हैं, बर्ड बाथ में पानी ख़त्म हो चुका है। आंगन से पंछी गायब हैं और इस सन्नाटे उनकी चहक के बिना घर-घर नहीं लगता। सुना है कल से फिर तापमान गिरने के साथ बारिश और बर्फीला तूफान आने वाला है।


मैं उठकर जरूरी सामान लाने की लिस्ट बना लेती हूं, पक्षियों का दाना भी जोड़ लूं लिस्ट में। बाहर झूला उठाकर सीधा करना है, गमले उठाकर रखने हैं, बर्ड बाथ में पानी भरना है। पड़ोसी को मदद के लिए आवाज देती हूं, वह भी इंडिया से कल रात ही वापस घर लौट चुके हैं, उनका टेक्स्ट आया था। घर आने की सुकून भरी यात्रा समाप्त हुई। कल स्कूल काम पर लौटना है, कई टीचर्स बीमार पड़े हैं, कई वापस समय पर लौट नहीं पाए हैं। अगली यात्रा शायद.... अभी तो वायरस का कहर बरस रहा है ....... होम स्वीट होम।

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