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सिंगापुर की डायरी : करे कोई भरे कोई!

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- सन्ध्या सिंह

मौसम का जनाजा निकल रहा था इस बात को नकारना अपने अस्तित्व को नकारने के समान है। हर तरफ त्राहि-‍त्राहि मचती ही रहती है। कहीं गरमी ने कभी बेहाल किया तो कहीं ठंड ने हड्डियों को ऐसा ठिठुरा दिया कि कभी सीधी ही न हो पाएं।
 
सिंगापुर में रहते हुए कभी प्रचंडता को ज्यादा सहन नहीं करना पड़ा, पर पिछले तीन वर्षों से एक नए तरह का मौसमी बदलाव सामने आ गया है जिसने हमारी रोजमर्रा की जिंदगियों में खलल डाल दिया है।
 
सिंगापुर की सबसे बड़ी खासियत यहां का स्वच्छ-सुंदर वातावरण माना जाता है, पर आजकल इसको किसी की नजर लग गई है। इंडोनेशियाई आग ने अपने धुएं के प्रभाव रूप में जो धुंध बिखेरी है, वह घटने का नाम ही नहीं ले रही है। अब तो यह हर साल का क्रम बन गया है कि जब इंडोनेशिया में भूमि को साफ करने के लिए जंगलों में आग लगाई जाएगी तो उसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ेगा। इंडोनेशिया के खासतौर पर सुमात्रा और बोर्नियो के जंगलों में कृषि-भूमि को साफ करने का सबसे सस्ता व बेहतर तरीका जंगलों में आग लगा देना अख्तियार कर लिया गया है, जो शायद उनके लिए सस्ता व बेहतर हो। पर उसका पर्यावरण पर जो असर पड़ रहा है, उसकी भरपाई करना मुश्किल है। 2013 में इस धुंध ने जो आतंक फैलाया था, उसे आज तक कोई नहीं भूल पाया है और इस वर्ष पुन: उसका विकृत रूप हमारे जीवन पर साया बन मंडरा रहा है। 'हेज' यह शब्द हर सिंगापुरी के लिए घृणित बनता जा रहा है।
 
यह द्वीप शहर है अत: मौसम हमेशा थोड़ा गरम ही रहता है, पर 'हेज' ने तो जैसे जलन ही पैदा कर दी है। श्वास आदि रोगों से जूझते हुए लोगों को किन तकलीफों से गुजरना पड़ता होगा, यह तो समझना स्वाभाविक है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। बच्चे न तो बाहर खेल सकते हैं और न बड़े कसरत ही कर सकते हैं।
 
हवा में धुएं की मात्रा व ऐसे कण हैं, जो धूम्रपान करने वाले लोगों से भी खतरनाक साबित हो सकते हैं। 'हेज' के मद्देनजर एहतियात बरतने हेतु सिंगापुरी सरकार ने 24 सितंबर को सभी विद्यालयों को भी बंद कर दिया था। पर आखिर कितने दिन कोई स्कूल बंद करेगा, कितने दिन कोई घर में बैठा सड़ेगा। बाहर निकलकर शाम को टहलना अब शायद सपना ही लगता है।
 
सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर रही है, पर दूसरे देश पर उसका क्या बस! आखिर तब तक अपने पड़ोसी देश के इस कृत्य को हम भुगतेंगे?

साभार- गर्भनाल 
 

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