शिकागो से डॉ. मुनीश रायजादा
मुझे फिल्मों का कोई खास शौक नहीं है, पर मेरी पत्नी अक्सर मेरी रुचि व स्वभाव के अनुसार मुझे फिल्में सुझाती रहती है। कुछ सप्ताह पहले उसने मुझे एक नई रिलीज हुई पारिवारिक फिल्म के बारे में बताया तो हम लोग शिकागो के डाउनटाउन स्थित एएमसी (AMC) मल्टीप्लेक्स सिनेमा में 'मिलियन डॉलर आर्म' (Million Doller Arm) नामक फिल्म देखने पहुंचे।
एएमसी अमेरिका में सिनेमाघरों की एक प्रख्यात श्रृंखला है। अमेरिकन लोग भारत के बारे में जानने में रुचि रखते हैं और हमें हमारे डॉक्टरों, इंजीनियरों व आउटसोर्सिंग व्यापार के कारण तो अच्छा पहचानते हैं।
सत्य घटना से प्रेरित यह फिल्म एक ऐसे बेसबॉल एजेंट की कहानी है जिसे सही कीमतों पर अच्छे खिलाड़ी नहीं मिल पा रहे हैं। परेशान होकर वह भारत से कम कीमत पर युवा व अप्रशिक्षित किंतु प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को अमेरिका लाकर उन्हें प्रशिक्षण देकर व्यावसायिक बेसबॉल लीग में खेलने योग्य बनाने की योजना बनाता है।
जैसा कि आप जानते हैं कि बेसबॉल का खेल अमेरिका में उतना ही लोकप्रिय है जितना कि भारत में क्रिकेट। इन दोनों खेलों के बीच की समानताओं ने मुझे सदा ही आकर्षित किया है। मैंने अपने जीवन में बहुत क्रिकेट खेला है और अपने अमेरिका में पल-बढ़ रहे बेटे को बेसबॉल खेलते हुए देखना चाहता हूं।
सिनेमाघर लगभग आधा भरा हुआ था जिनमें कुछेक देसी लोगों को छोड़कर बाकी सभी स्थानीय (अमेरिकी) लोग थे। फिल्म काफी हद तक देसी रंग में रंगी हुई थी। बीच-बीच में हिन्दी के संवाद भी डाले हुए थे, फिर भी दर्शकों के ठहाके और तालियों की गड़गड़ाहट यह बता रही थी कि वे भारतीय भावनाओं व रंगों को न केवल समझ रहे थे बल्कि उनका पूर्ण आनंद भी ले रहे थे।
अमेरिकन जीवन की यही विशेषता है कि आप वहां पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय जीवन जीते हैं और यह चीज अमेरिकन राष्ट्रपति समय-समय पर दूसरे राष्ट्रों के मामलों में हस्तक्षेप कर सुनिश्चित भी करते रहते हैं! ( वियतनाम, अफगानिस्तान, इराक और कई अन्य)
* लेखक शिकागो में चिकित्सक (नवजात शिशुरोग विशेषज्ञ) हैं व सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखते हैं।