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अंत तक अकेले हैं सब यहां

- शैफाली गुप्ता

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कोई साथी नहीं अंतिम पड़ाव तक
कोई नहीं पकड़े रहता उंगली हमेशा

इस कठोर कर्मभूमि में किसान हम
अकेले ही बीज बोना अकेले ही पाना

कोई नहीं रहता साथ कर्मों के
जिम्मेदार हम स्वयं अपने लिए
अपनी खुशियां अपने आंसू के लिए।

विचारों और कार्यों के निर्माता हम
कोई कृष्ण सारथी बन नहीं आने वाला
अपना रथ खुद अग्रसर करना हमें

कोई साथ नहीं रहता दिल के
आत्मा की तो बात ही नहीं।

हां
अंत तक अकेले हैं सब यहां
कोई साथ नहीं इन सांसों के
इन जज्बातों के,
इन कर्मों के
हां
अंत तक अकेले हैं सब यहां।

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