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अनुराधा चंदर
भारतीय महाविद्यालय मोरशी (महाराष्ट्र) से बीए और कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी में डिप्लोमा। अमेरिका के सभी शहरों में कवि सम्मेलन में कविता पाठ। 'कुछ कहता है मेरा मन' काव्य संग्रह प्रकाशित। न्यूयॉर्क में स्थायी निवास।
आँखों से है तुम्हारा नाता...
मन से है तुम्हारा रिश्ता
तो कभी छा गए, सूने मन में
मीठे-मीठे सपने-सुनहरे रंग-बिरंगे सपने
अच्छे-बुरे सपने
कभी छू गए मन को
तो कभी अधूरे ही बिखर गए
थकी आँखों में कुछ साकार सपने
कभी लगे तुम मेरे अपने
कभी धुँधला से गए
बादल बन
आँख खुली तो उड़ गए पंछी बन
कभी रहे जीवन के संग
कभी हुए तुम साकार
कभी हुए निराकार
कौन तुम्हें समझ है पाता
जीवन से क्या है नाता
बस एक सपना
सपना बनके रह जाता।
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जब चाहा पहुँच पाते
अपना देश सदा दिल में बसता है
विदेश में रहकर भी कभी उसे भुला नहीं पाते
उसकी खुशबू सात समंदर पार
यादों में बिखेरती है
काश! जब भी चाहा पहुँच पाते
अपनों को गले लगाने
कितना आसान है कहना
पर विदेश में रहकर ये बात
हम समझ पाते हैं
सदा खुले हैं द्वार अपने वतन के हमारे लिए
फिर भी जब मन चाहा तब
क्यों नहीं पहुँच पाते?
- डॉ. अंजना संधीर द्वारा संपादित 'प्रवासिनी के बोल' से साभार
- गर्भनाल से साभार