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आलिंगन

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- डॉ. रामकुमार त्रिपाठी 'शिवा'

उत्तरप्रदेश के जयमलपुर जनपद इटावा में जन्म। बी.एस-सी. गोल्ड मैडल के साथ, बायोकेमेस्ट्री में एम.एस-सी. तथा एम्स, नई दिल्ली से बायोफिजिक्स एवं बायोकेमेस्ट्री में पी.एच-डी.। पिछले अठारह बरसों से अमेरिका में रह रहे हैं। दर्जनों वैज्ञानिक शोधपरक लेख अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक जनरलों में प्रकाशित हो चुके हैं। वैज्ञानिक के रूप में प्रतिष्ठित होने के बाद करियर बदला और कम्प्यूटर साइंस में प्रशिक्षण हासिल किया। कविताएँ विश्वा, सौरभ और विश्व-विवेक आदि में प्रकाशित हो चुकी हैं। टीवी एशिया, अमेरिका से 'अभी तो मैं जवान हूँ' कार्यक्रम में कविताएँ प्रसारित हो चुकी हैं

GN
कुछ लिपट गए, कुछ सिमट गए
कुछ आकर यूँ ही चले गए
कुछ रुककर दिल में समा गए
उन पलों में थी विह्वल थिरकन
जब हुआ था तुमसे आलिंगन...
मन-से-मन का उस आँगन में
तन-से-तन का उस कानन में
खनके थे बाँहों के कंगन
उन पलों में थी एक थिरकन
जब हुआ था तुमसे आलिंगन...
दिल-ही-दिल में इक स्पंदन
अधरों पे धरा मीठा चुम्बन
तब हार गई मेरी चितवन
उन पलों से उपजी थी थिरकन
जब हुआ था तुमसे आलिंगन...
अधरों का वह सुखद मिलन
स्पर्श उरोजों का पाकर
दिल में भर आई थी सिहरन
आँखों का मेरी मुंद जाना
मदहोश हुई हर-एक धड़कन
उन पलों में थी एक थिरकन
जब हुआ था तुमसे आलिंगन...

महका के गए वो अपना मन
सदा दे गए मन के दर्पण
माधुर्य प्रीति का आलिंगन
ऐसा था तेरा आलिंगन
प्रिये! ऐसा ही तेरा आकर्षण...
कर दिया सब कुछ तुझको अर्पण
उन पलों में थी एक थिरकन
जब हुआ था तुमसे आलिंगन...

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